पांच अगस्त को उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली में अचानक आई बाढ़ ने भारी तबाही मचाई. मिट्टी और मलबे की दीवार ने घर, होटल और सड़कें बहा दीं. राष्ट्रीय और राज्य आपदा राहत बल, भारतीय सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस कई दिनों से हेलिकॉप्टर, रोपवे और अस्थायी पुलों के जरिए सड़कें साफ करने और जिंदगी को पटरी पर लाने में जुटी है.
उत्तराखंड में आपदाएं: कोई नई बात नहीं
उत्तराखंड, जिसे ‘देवभूमि’ कहा जाता है, यहां के लिए ऐसी आपदाएं कोई नई बात नहीं हैं. उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के आंकड़ों के मुताबिक पिछले आठ सालों में 25,000 से ज्यादा आपदा की घटनाएं दर्ज की गईं. 2018 सबसे भयानक साल था जिसमें 5,056 घटनाएं हुईं. उस साल जुलाई में 1,398 और अगस्त में 1,716 घटनाएं दर्ज की गईं.
इस साल का हिसाब
इस साल 10 अगस्त तक 679 आपदा की घटनाएं हो चुकी हैं. साल भर आपदाएं आती हैं लेकिन मॉनसून के महीने खास तौर पर खतरनाक होते हैं. सिर्फ जुलाई में 209 घटनाएं दर्ज हुईं. अगस्त का आधा महीना भी नहीं बीता और अब तक 61 आपदाएं हो चुकी हैं.
सिर्फ आंकड़े नहीं, जान-माल का नुकसान
आपदाओं की संख्या पूरी कहानी नहीं बताती. पिछले आठ सालों में प्राकृतिक आपदाओं से 3,554 लोगों की जान गई और करीब 6,000 लोग घायल हुए. साल 2018 में सबसे ज्यादा 720 मौतें और 1,207 लोग घायल हुए.
इस साल 10 अगस्त तक 209 मौतें और 491 लोग घायल हो चुके हैं. टिहरी गढ़वाल (45 मौतें) और नैनीताल (38 मौतें) सबसे ज्यादा प्रभावित जिले रहे. वहीं, हरिद्वार (2), बागेश्वर (6) और चमोली (9) में कम मौतें हुईं. अल्मोड़ा, उधम सिंह नगर और रुद्रप्रयाग में कोई मौत दर्ज नहीं हुई.
घर और सड़कें तबाह
भारी बारिश, भूस्खलन और अचानक बाढ़ ने इस साल 476 घरों को नुकसान पहुंचाया या पूरी तरह तबाह कर दिया. बागेश्वर में 122 घर प्रभावित हुए, जो सबसे ज्यादा है. इसके बाद पिथौरागढ़ (112) और उत्तरकाशी (107) का नंबर है. बाढ़ ने जरूरी सार्वजनिक ढांचे को भी बर्बाद किया, जिससे रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित हुई. इस साल दो बड़ी सड़कें, तीन पावरलाइन और 13 पानी की योजनाएं प्रभावित हुईं.
शुभम सिंह