मणिपुर में शांति बहाली के लिए 10 राजनीतिक दलों ने गवर्नर को लिखा पत्र, PM मोदी के लिए कही ये बात

कांग्रेस विधायक दल के नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री ओ इबोबी सिंह की अगुवाई वाले एक दल ने राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंपा था. ज्ञापन में कहा गया था कि प्रधानमंत्री मोदी के हस्तक्षेप के बिना राज्य में शांति बहाल नहीं की जा सकती.

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मणिपुर में असामान्य हालात मणिपुर में असामान्य हालात

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 20 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 4:13 PM IST

पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में शांति बहाली के लिए दस राजनीतिक दलों ने राज्यपाल को पत्र लिखा है. इस पत्र में मांग की गई है कि मणिपुर में शांति के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात कराई जाए. 

इस पत्र में कहा गया है कि मणिपुर में छह महीने से अधिक समय से संघर्ष की स्थिति बनी हुई है. इस हिंसा में कई लोगों की जानें गई हैं और संपत्ति का भी नुकसान हुआ है. हिंसा में दोनों समुदायों के 60000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं. राहत शिविरों में रह रहे लोगों की स्थिति बहुत ही अमानवीय है.

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पत्र में आगे कहा गया कि समाज के हर वर्ग की सामाजिक और आर्थिक स्थिति बदतर हो गई है. लोगों में अभी भी बहुत अविश्वास है.
केंद्र सराकर की ओर से गठित शांति समिति ने अभी तक ऐसा कोई काम नहीं किाय है, जिससे मणिपुर में शांति और सौहार्द की बहाली हो सके. राज्य में संघर्ष की जटिलताओं को ध्यान में रखते हुए सिर्फ केंद्र सरकार ही शांति बहाली के लिए कोई स्थाई समाधान खोज सकती है. हमे लगता है कि राज्य में शांति बहाली के लिए प्रधानमंत्री ही उम्मीद की एकमात्र किरण हैं. 

इन दस राजनीतिक दलों में आम आदमी पार्टी, एआईएफबी, तृणमूल कांग्रेस,भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, आरएसपी और एसएस(यूबीटी) शामिल है.

इससे पहले इन राजनीतिक दलों ने मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके से राज्य में शांति बहाली और हालात सामान्य करने के लिए दो समुदायों के बीच शांति वार्ता की पहल का अनुरोध किया था. 

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कांग्रेस विधायक दल के नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री ओ इबोबी सिंह की अगुवाई वाले एक दल ने राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंपा था. ज्ञापन में कहा गया था कि प्रधानमंत्री मोदी के हस्तक्षेप के बिना राज्य में शांति बहाल नहीं की जा सकती. दो समुदायों के बीच शांति वार्ता के लिए तत्काल पहल की मांग की गई ताकि जारी संघर्ष का स्थाई समाधान निकाला जा सके. 

6 महीने से जल रहा है मणिपुर

तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला. ये रैली चुरचांदपुर के तोरबंग इलाके में निकाली गई. 

ये रैली मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के खिलाफ निकाली गई थी. मैतेई समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा देने की मांग हो रही है. 

इसी रैली के दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे. शाम तक हालात इतने बिगड़ गए कि सेना और पैरामिलिट्री फोर्स की कंपनियों को वहां तैनात किया गया.

मैतेई क्यों मांग रहे जनजाति का दर्जा?

मणिपुर में मैतेई समुदाय की आबादी 53 फीसदी से ज्यादा है. ये गैर-जनजाति समुदाय है, जिनमें ज्यादातर हिंदू हैं. वहीं, कुकी और नगा की आबादी 40 फीसदी के आसापास है.

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राज्य में इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में ही बस सकते हैं. मणिपुर का 90 फीसदी से ज्यादा इलाकी पहाड़ी है. सिर्फ 10 फीसदी ही घाटी है. पहाड़ी इलाकों पर नगा और कुकी समुदाय का तो घाटी में मैतेई का दबदबा है.

मणिपुर में एक कानून है. इसके तहत, घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में न बस सकते हैं और न जमीन खरीद सकते हैं. लेकिन पहाड़ी इलाकों में बसे जनजाति समुदाय के कुकी और नगा घाटी में बस भी सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं.

पूरा मसला इस बात पर है कि 53 फीसदी से ज्यादा आबादी सिर्फ 10 फीसदी इलाके में रह सकती है, लेकिन 40 फीसदी आबादी का दबदबा 90 फीसदी से ज्यादा इलाके पर है.

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