'मार दिया था 2009 में, DNA टेस्ट से कंफर्म भी किया था...', प्रभाकरण के जिंदा होने के दावे पर बोला श्रीलंका

वेलुपिल्लई प्रभाकरन को श्रीलंकाई तमिल गुरिल्ला और लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (LTTE) के संस्थापक के तौर पर जाना जाता है. उसके उग्रवादी संगठन का मकसद श्रीलंका के उत्तर और पूर्व में एक स्वतंत्र तमिल राज्य बनाना था जिसके लिए लिट्टे ने श्रीलंका में 25 साल से अधिक समय तक युद्ध लड़ा.

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LTTE चीफ प्रभाकरन (फाइल फोटो) LTTE चीफ प्रभाकरन (फाइल फोटो)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 14 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 12:27 PM IST

तमिल नेशनलिस्ट मूवमेंट के नेता पाझा नेदुमारन ने बीते दिन सोमवार को एक चौंकाने वाला दावा किया. पाझा नेदुमारन ने दावा किया कि लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम यानी LTTE का चीफ प्रभाकरन जिंदा है. इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि प्रभाकरन जल्द ही दुनिया के सामने आएगा. नेदुमारन ने दावा किया, प्रभाकरन जिंदा है. वह स्वस्थ भी है, और हमें भरोसा है कि इससे उनकी मौत की अफवाहों पर विराम लगेगा. वह जल्द ही दुनिया के सामने आएगा. लेकिन दूसरी तरफ श्रीलंका की सेना ने इस दावे को 'यह एक मजाक है' कहते हुए सिरे से ख़ारिज कर दिया है. 

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दरअसल सोमवार को तमिल नेशनलिस्ट मूवमेंट के नेता पाझा नेदुमारन ने तंजावुर में मीडिया से बातचीत में कहा कि लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) के नेता अच्छा काम कर रहे हैं और उनके सामने आने के लिए अनुकूल माहौल बना हुआ है. जिसे अब श्रीलंका के रक्षा मंत्रालय ने नेदुमारन के दावे को मजाक बताकर खारिज कर दिया.

श्रीलंका के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल नलिन हेराथ ने कहा, 'इस बात की पुष्टि हो गई है कि वह 19 मई 2009 को मारा गया था, और डीएनए ने भी इसे साबित कर दिया है.

बता दें कि 1983 में शुरू हुए एक कड़े संघर्ष वाले अभियान में, श्रीलंका की सेना ने मई 2009 में लिट्टे के नेताओं को मारकर राष्ट्र में लगभग तीन दशक के क्रूर गृहयुद्ध को समाप्त कर दिया. लिट्टे श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी प्रांतों में तमिलों के लिए एक स्वतंत्र राज्य के लिए लड़ रहा था. हालांकि श्रीलंकाई सेना द्वारा प्रभाकरन की मौत की सटीक तारीख ज्ञात नहीं थी, लेकिन फिर भी प्रभाकरन की मृत्यु की घोषणा 19 मई, 2009 को की गई थी.

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तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने 18 मई, 2009 को 26 साल के युद्ध की समाप्ति की घोषणा की, जिसमें 1,00,000 से अधिक लोग मारे गए और लाखों श्रीलंकाई, मुख्य रूप से अल्पसंख्यक तमिलों को देश और विदेश में शरणार्थियों के रूप में विस्थापित किया गया. 

 

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