अयोध्या के भव्य राम मंदिर में प्रभु श्रीराम की अलौकिक प्रतिमा पूरे विधि-विधान के साथ स्थापित हो गई है. रामलला की प्रतिमा की पहली झलक जैसे ही सामने आई उसका वीडियो और तस्वीरें तुरंत वायरल हो गईं. रामलला की प्रतिमा में सबसे ज्यादा ध्यान उनकी आंखें खींच रही हैं. जो भी उन्हें देखता है सम्मोहित हुए बिना नहीं रह पाता. वे लोग जिन्होंने मथुरा में बांके बिहारी और तिरुपति में बालाजी के दर्शन किए हैं, वे उन दो अलौकिक प्रतिमाओं के नेत्र से भी भगवान श्रीराम के इन नेत्रों की तुलना कर रहे हैं.
बांके बिहारी मंदिर में रहता है पर्दा
वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में हर थोड़ी देर में पर्दा लगता है. इसकी भी वजह है. दरअसल बिहारी जी कि छवि इतनी मनोरम है कि देखने वाला एकटक देखता रह जाता है. भागवताचार्य अपनी कथाओं में बताते हैं कि एक बार एक भक्त बांके बिहारी के दर्शन करने आया और उनमें ही खो गया और उसकी सुध चली गई.
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उसने सांसारिकता का त्याग कर दिया. कुछ लोग मृत्यु और मोक्ष भी बताते हैं. यही वजह है कि हर थोड़ी देर में बांके बिहारी मंदिर में पर्दा लगा दिया जाता है. बांके बिहारी मंदिर में आरती के समय कोई घंटा, घड़ियाल, शंख आदि भी नहीं बजाए जाते क्योंकि भगवान की सेवा एक बच्चे के रूप में की जाती है तो भाव ये है कि लाला छोटा है तो इनकी कर्कश आवाज से डर जाएगा
तिरुपति में ढंके रहते हैं प्रभु के नेत्र
तिरुपति मंदिर में भगवान को लगे तिलक यानी नामम को लेकर भी ऐसा ही है. तिरुपति बालाजी के मुख मंडल पर बड़ा सा तिलक लगा होता है. इससे उनकी आंखें ढंकी रहती हैं. ये तिलक कर्पूर के शुद्धतम रूप से बना होता है. असंख्य भक्तों ने मंदिर प्रशासन से कहा कि नामम का आकार छोटा कर दिया ताकि भक्त अपने भगवान की आंखें देख सकें.
मंदिर के प्रबंधकों से इस बाबत कहा भी गया और कोशिशें भी हुईं, लेकिन ऐसा करते ही मंदिर में अचानक हादसे हुए. जिनके बाद फिर प्रशासन ने भी इसमें बदलाव करने की बात छोड़ ही दी.
भगवान राम हैं कमलनयन
श्रीराम की शोभा का वर्णन करते हुए आंखों के वर्णन पर बार-बार और बहुत बारीकी से जोर दिया गया है. कवियों ने अपनी कविताओं में श्रीराम को कमललोचन और राजीवनयन कहा है. इन दोनों ही शब्दों का अर्थ कमल की पंखुड़ी जैसी आंखों वाला है.
एक चौपाई में उन्हें राजीवनयन कहकर पुकारा जाता है.
राजीवनयन धरें धनु सायक.
भगत बिपति भंजन सुखदायक.
राम स्तुति में भी उन्हें नवकंज लोचन कहा जाता हैं. जिसकी आंख नए खिले कमल की विकसित पंखुड़ी जैसी हैं.
श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन
हरण भवभय दारुणं .
नव कंज लोचन कंज मुख
कर कंज पद कंजारुणं॥
असल में इन सारे रूपकों का प्रयोग राम को सांकेतिक रूप में विष्णु अवतार बताने के लिए कहा गया है. क्योंकि विष्णुजी को भी कमलनयन और राजीवनयन कहा जाता है. जब पुष्पवाटिका में सीताजी श्रीराम को पहली बार देखती हैं तो यहां भी तुलसीदास ने उनके मुख का पूरा वर्णन किया है. ऐसा करते हुए वह नव सरोज लोचन का प्रयोग करते हैं, जो कि कमल की ही पर्याय है.
भाल तिलक श्रम बिन्दु सुहाए. श्रवन सुभग भूषन छबि छाए॥
बिकट भृकुटि कच घूघरवारे. नव सरोज लोचन रतनारे॥2॥
माथे पर तिलक और पसीने की बूंदें शोभायमान हैं. कानों में सुंदर भूषणों की छवि छाई है. टेढ़ी भौंहें और घुंघराले बाल हैं. नए लाल कमल के समान रतनारे (लाल) नेत्र हैं.
'राम की शक्ति पूजा' काव्य मे राजीव नयन का वर्णन
एक कथा, किवदंतियों में और शाक्त परंपरा के पुराणों में खूब कही जाती है कि श्रीराम ने दुर्गा जी की आराधना की थी और अपने नेत्र उन्हें अर्पित करने जा रहे थे, लेकिन तभी देवी प्रगट हो गईं और उन्होंने ऐसा करने से रोक दिया. कृतिवास रामायण में इसका उल्लेख मिलता है, लेकिन मानस में तुलसीदास ने ऐसा वर्णन नहीं किया है. बंगाल की शाक्त परंपरा और देवी भागवत कथाओं में भी यह कथा सुनाई जाती है. कविवर सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने तो इस पर पूरा एक काव्य रचा है, जो कि 'राम की शक्ति पूजा' नाम से प्रसिद्ध है.
‘राम की शक्ति पूजा’ में सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ ने श्रीराम की सेना को तो पराजय के भय से शंकित और आक्रांत दर्शाया ही है, साथ ही खुद श्रीराम भी चिंतित दिखते हैं. इसकवा वर्णन देखिए वह कैसे करते हैं...
लौटे युग-दल ! राक्षस-पद-तल पृथ्वी टलमल’
विंध महोल्लास से बार –बार आकाश विकल
वानर वाहिनी खिन्न,लख-निज-पति-चरण-चिह्न
चल रही शिविर की ओर स्थविर-दल ज्यों विभिन्न
है अमा निशा: उगलता गगन घन अंधकार
खो रहा दिशा का ज्ञान स्तब्ध है पवन चार
अप्रतिहत गरज रहा पीछे अम्बुधि विशाल
भूधर ज्यों ध्यान मग् केवल जलती मशाल.
कथा के अनुसार रावण को था मां दुर्गा का वरदान
लंकेश रावण को महाशक्ति का वरदान है, यही कारण है कि राम के समस्त शस्त्र विफल हुए जा रहे हैं. यह दृश्य राम को निराशा के भंवर में डूबने उतरने जैसी हालत हो गई है. जामवन्त की सलाह है कि तपस्या में अद्भुत शक्ति है. आप प्रयास करें कि महाशक्ति आपके वश में हों. राम तप सिद्धि के अंतिम कगार पर पहुंच कर भी किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहे हैं. आसन पूजा के क्षण में छोड़ते नहीं बन रहा है. अंतिम कमल का फूल का न मिलना राम को व्यथित किए जा रहा है. रावण आदि शक्ति देवी के वरदान से गर्वोन्मत हो रहा है.
इधर श्रीराम के निराशा और अवसाद से घिरे मानस पटल पर बार-बार सीता की छवि दिखाई दे रही है. राजा जनक का उपवन, सीता की प्रथम दृष्टि की झलक की यादें, ये सारे भाव निराला की लेखनी में चलचित्र की तरह उतर आए हैं. सीता की यादें राम को रोमांचित कर जाती हैं. शिव धनुष तोड़ने की शक्ति की यादों से प्रफुल्लित तन मन पुलकित हो जाता है. सीता की यादें राम की आशा, विश्वास रूपी मुस्कान में परिवर्तित होने लगती है. इसके बाद भी राम को विजय को लेकर शंका होती है तो वह अपने दल में मंत्रणा करते हुए अपनी स्थिति स्पष्ट करते हैं.
देखा है महाशक्ति रावण को लिए अंक
लांछन को लेकर जैसे शशांक नभ में अशंक;
हत मंत्र –पूत शर सम्वृत करती बार-बार
निष्फल होते लक्ष्य पर छिप्र वार पर वार
विचलित लख कपिदल क्रुद्ध, युद्ध को मै ज्यो-ज्यो ,
झक-झक झलकती वह्नि वामा के दृग त्यों –त्यों
पश्चात् ,देखने लगी मुझका बंध गए हस्त
फिर खिंचा न धनु , मुक्त ज्यों बंधा मैं, हुआ त्रस्त !
इसके बाद जाम्बवंत कहते हैं कि जो शक्ति रावण ने अर्जित की है वही राम भी अर्जित करें. जाम्बवंत का यह विचार सभी को पसंद आता है. तब राम ने देवी का ध्यान किया और महिषासुर मर्दिनी की आराधना का संकल्प किया. उन्होंने कहा कि मां, मैं आपका संकेत समझ गया हूं, अतः अब इसी सिंह भाव से आपकी आराधना करूंगा. तब राम ने देवी के सभी स्वरूपों की आराधना और व्रत अनुष्ठान करते हैं.
‘माता, दशभुजा, विश्व-ज्योति; मै हूँ आश्रित;
हो विद्ध शक्ति से है महिषासुर खल मर्दित;
जन-रंजन–चरण–कमल-तल, धन्य सिंह गर्जित;
यह मेरा प्रतीक मातः समझा इंगित;
मैं सिंह, इसी भाव से करूंगा अभिनंदित.
राम अपनी शक्ति पूजा शुरू कर देते हैं, और इसी कड़ी में एक दिन उन्होंने निश्चय किया कि वह देवी को 108 कमल पुष्प चढ़ाएंगे. नवमी के दिन लिए गए इस संकल्प पर देवी दुर्गा उनकी परीक्षा लेने लगती हैं. मंत्रों के साथ राम एक-एक कमल पुष्प अर्पित करते जाते हैं. देखते हैं कि माला का एक बीज बाकी है और पुष्प समाप्त हो चुके हैं यानी सिर्फ 107 कमल ही अर्पित हुए. राम फिर से कमल चढ़ाना शुरू करते हैं और इस बार भी एक कमल कम निकलता है.
निराला काव्य के केंद्रीय भाव में श्रीराम की राजीवनयन वाली छवि
इस तरह नौ बार यह प्रक्रिया दोहराने के बाद राम बाण उठा लेते हैं. कहते हैं कि उन्हें भी कमल नयन कहते हैं तो क्यों न 108वें कमल की जगह अपना एक नेत्र अर्पण कर दूं. यह संकल्प देख देवी खुद प्रकट होती हैं और राम का हाथ पकड़ लेती हैं. उनकी निष्ठा से प्रसन्न होकर देवी उन्हें विजयश्री का आशीष देती हैं और उनकी शक्ति श्रीराम में समाहित हो जाती है. 'राम की शक्ति पूजा' काव्य में निराला ने राम की राजीव नयन वाली छवि को केंद्र में रखकर ही कथानक गढ़ा है.
‘यह है उपाय’ कह उठे राम ज्यों मन्द्रित घन-
“कहती थी माता मुझे सदा राजीव नयन.
दो नील कमल हैं शेष अभी यह पुरश्चरण
पूरा करता हूँ देकर मातः एक नयन.
कहकर देखा तूणीर ब्रह्म –शर रहा झलक
ले लिया हस्त वह लक-लक करता महाफलक;
ले अस्त्र थामकर दक्षिण कर दक्षिण लोचन
ले अर्पित करने को उद्दत हो गए सुमन.
बच्चों के स्कूल जाकर मुस्कान पर किया रिसर्च
वहीं, प्रभु श्री राम की प्रतिमा को गढ़ने वाले मूर्तिकार अरुण योगीराज ने बताया कि मंदिर ट्रस्ट ने रामलला की मूर्ति को बनाने के लिए कुछ पैरामीटर्स दिए थे. मूर्तिकारों को कहा गया था कि रामलला चेहरे पर मुस्कान होनी चािए, दिव्य आभा होनी चाहिए और प्रतिमा 5 साल के बच्चे जैसी होनी चाहिए जिसमें युवराज जैसा आकर्षण हो.
मूर्ति बनाने की दिशा में पहला कदम इन विशेषताओं को कागज पर उतारना था. चेहरे की विशेषताओं में आंखें, नाक, ठुड्डी, होंठ, गाल आदि को गढ़ने के लिए शिल्प शास्त्र का सहारा लिया गया.
अरुण योगीराज ने चेहरे और शरीर विशेषताओं को जानने के लिए मानव शरीर की बनावटों का अध्ययन किया.
अरुण योगीराज बालक स्वरूप का अध्ययन करने और उनकी मुस्कुराहटों को समझने के लिए रिसर्च किया, छोटे-छोटे बच्चों के स्कूल गए और उनकी मुस्कुराहटों पर गौर किया फिर उन्हें अपनी कृति में उतारा.
संजय शर्मा / विकास पोरवाल