संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने 17 अगस्त, 2024 को एक विज्ञापन जारी किया, जिसमें केंद्र सरकार के 24 मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के 45 पदों पर लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती कि लिए योग्य उम्मीदवारों से आवेदन मांगे गए. राज्य और केंद्रशासित प्रदेश सरकारों, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (PSUs), रिसर्च इंस्टीट्यूट और यूनिवर्सिटी और यहां तक कि प्राइवेट सेक्टर में काम करने का अनुभव रखने वाले ऐसे लोग जो उचित योग्यता रखते हैं, लेटरल एंट्री के तहत आवेदन करने के पात्र हैं. दिव्यांग कैंडिडेट भी सभी पदों के लिए आवेदन कर सकते हैं.
ब्यूरोकेसी में अहम पदों पर लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती करने के लिए विपक्षी दल केंद्र सरकार की तीखी आलोचना कर रहे हैं. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने X पर एक पोस्ट में लिखा, 'लेटरल एंट्री दलित, ओबीसी और आदिवासियों पर हमला है. भाजपा संविधान को नष्ट करना और बहुजनों से आरक्षण छीनना चाहती है.' बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि अगर एससी, एसटी और ओबीसी को इन नियुक्तियों में उनके निर्धारित कोटा के तहत प्रतिनिधित्व नहीं मिला, तो यह सीधा-सीधा संविधान का उल्लंघन होगा. आइए समझते हैं आखिर लेटरल एंट्री के पीछे का विचार क्या है और यह कैसे अस्तित्व में आया...
कब आया लेटरल एंट्री कॉन्सेप्ट और क्या है इसका मतलब?
कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार सबसे पहले लेटरल एंट्री कॉन्सेप्ट लेकर आयी थी. साल 2005 में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (Admin Reforms Commission) का गठन किया गया और वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली इस आयोग के अध्यक्ष थे. ‘कार्मिक प्रशासन का नवीनीकरण-नई ऊंचाइयों को छूना’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में आयोग की एक प्रमुख सिफारिश यह थी कि उच्च सरकारी पदों जिसके लिए विशेष ज्ञान और कौशल की आवश्यकता होती है, उन पर लेटरल एंट्री शुरू की जाए, .
आयोग ने लेटरल एंट्री को लेकर 5 बिंदुओं पर जोर दिया था
विशेषज्ञता की आवश्यकता: आयोग के अनुसार, कुछ सरकारी भूमिकाओं के लिए विशिष्ट ज्ञान और कौशल की आवश्यकता होती है, जो पारंपरिक सिविल सेवा के अधिकारियों में हमेशा उपलब्ध नहीं होती. आयोग ने इस कमी को पूरा करने के लिए ब्यूरोक्रेसी में लेटरल एंट्री के जरिए निजी क्षेत्र, शिक्षा और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से पेशवरों की भर्ती की सिफारिश की थी.
टैलेंट पूल का निर्माण: आयोग ने प्रोफेशनल्स के एक टैलेंट पूल के निर्माण का प्रस्ताव रखा था, जिन्हें अल्पकालिक या संविदा के आधार पर सरकार में शामिल किया जा सकता है. आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा था कि ये प्रोफेशनल्स इकोनॉमी, फाइनेंस, टेक्नोलॉजी और पब्लिक पॉलिसी जैसे सेक्टर में नया दुष्टिकोण और विशेषज्ञता लाएंगे.
पारदर्शी चयन प्रक्रिया: आयोग ने लेटरल एंट्री से नियुक्त होने वाले अधिकारियों के लिए पारदर्शी और योग्यता-आधारित चयन प्रक्रिया पर जोर दिया और उनके रिक्रूटमेंट और मैनेजमेंट की देखरेख के लिए एक डेडिकेटेड एजेंसी स्थापित करने का सुझाव दिया.
परफॉर्मेंस मैनेजमेंट सिस्टम: आयोग ने लेटरल एंट्री से भर्ती होने वालों को उनके काम के लिए जवाबदेह बनाने और उनके योगदान का नियमित रूप से आकलन करने के लिए एक मजबूत परफॉर्मेंस मैनेजमेंट सिस्टम विकसित करने की सिफारिश की थी.
सिविल सेवाओं के साथ इंट्रीग्रेशन: आयोग ने मौजूदा सिविल सेवाओं में लेटरल एंट्री से नियुक्त होने वालों को इस तरह से इंटीग्रेट करने के महत्व पर जोर दिया था कि इससे सिविल सर्विस सिस्टम को भी बनाए रखा जा सके और लेटरल एंट्री के जरिए पेशवरों की विशेषज्ञता और कौशल का लाभ उठाया जा सके.
ब्यूरोक्रेसी में लेटरल एंट्री की शुरुआत कब हुई?
नीति आयोग ने 2017 में अपने तीन-वर्षीय एक्शन एजेंडा पर प्रस्तुत रिपोर्ट में केंद्र सरकार में मध्य और वरिष्ठ स्तर पर लेटरल एंट्री के जरिए नियुक्ति की सिफारिश की थी. इसमें कहा गया था कि लेटरल एंट्री के जरिए नियुक्त होने वाले अधिकारी केंद्रीय सचिवालय का हिस्सा होंगे. लेटरल एंट्री के तहत होने वाली नियुक्तियां 3 साल के कॉन्ट्रैक्ट पर होंगी, जिसे कुल मिलाकर 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है. उस समय तक केंद्रीय सचिवालय में सिर्फ करियर डिप्लोमैट (सिविल सेवा के अधिकारी) ही नियुक्त होते थे.
लेटरल एंट्री के तहत नियुक्ति की लिए पहली बार 2018 में आवेदन मंगाया गया. लेकिन यह भर्ती सिर्फ संयुक्त सचिव स्तर के पदों के लिए थी. निदेशक और उप सचिव स्तर के पद लेटरल एंट्री के लिए बाद में खोले गए. कैबिनेट की नियुक्ति समिति (Appointments Committee of the Cabinet) द्वारा नियुक्त एक संयुक्त सचिव, किसी विभाग में तीसरा सबसे बड़ा पद (सचिव और अतिरिक्त सचिव के बाद) होता है, और उक्त विभाग में एक विंग के प्रशासनिक प्रमुख के रूप में कार्य करता है. निदेशक का पद संयुक्त सचिव से एक रैंक नीचे आता है, और उप सचिव का पद निदेशक से एक रैंक नीचे होता है. हालांकि अधिकांश मंत्रालयों में, वे समान कार्य करते हैं. निदेशक/उप सचिवों को किसी विभाग में मध्य स्तर का अधिकारी माना जाता है. संयुक्त सचिव वह पद होता है जहां निर्णय लिए जाते हैं.
लेटरल एंट्री के पीछे केंद्र सरकार का तर्क
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने 2019 में राज्यसभा को बताया था कि 'लेटरल एंट्री का उद्देश्य ब्यूरोक्रेसी में नई प्रतिभाओं को लाने के साथ-साथ मैनपावर की उपलब्धता सुनिश्चित करने के दोहरे उद्देश्यों को प्राप्त करना है. राज्यसभा में 8 अगस्त, 2024 को एक प्रश्न का उत्तर देते हुए जितेंद्र सिंह ने कहा, 'प्रोफेशनल्स की उनके कार्य क्षेत्र में विशेषज्ञता और कौशल को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार में संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के स्तर पर लेटरल एंट्री के जरिए उनकी नियुक्ति की जाएगी.'
लेटरल एंट्री के पीछे की सोच यह है कि सरकार ऐसे व्यक्तियों की विशेषज्ञता और कौशल का उपयोग करना चाहती है, जिनके पास किसी विशेष क्षेत्र में कार्य करने का लंबा अनुभव हो, फिर भले ही वे कैरियर डिप्लोमैट हों या न हों. इस विचार के अनुरूप, पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न केंद्रीय सिविल सेवाओं के अधिकारियों को केंद्रीय सचिवालय में सेवा करने का अवसर दिया गया है, जिसे हमेशा आईएएस-प्रभुत्व वाला माना जाता था.
लेटरल एंट्री से अब तक कितनी भर्तियां हुईं हैं?
लेटरल एंट्री के तहत पहले दौर की भर्ती 2018 में शुरू हुई. तब सरकार को संयुक्त सचिव स्तर के पदों के लिए कुल 6,077 आवेदन प्राप्त हुए थे. यूपीएससी द्वारा चयन प्रक्रिया पूरी करने के बाद, 2019 में नौ अलग-अलग मंत्रालयों/विभागों में नियुक्ति के लिए नौ प्रोफेशनल्स के नामों की सिफारिश की गई थी. 2021 में लेटरल एंट्री के लिए दूसरी बार आवेदन मंगाए गए थे. फिर मई 2023 में लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती का विज्ञापन यूपीएससी की ओर से जारी किया गया था. जितेंद्र सिंह ने इस साल 9 अगस्त को राज्यसभा में बताया था कि, 'पिछले पांच वर्षों में लेटरल एंट्री के माध्यम से 63 नियुक्तियां की गई हैं. वर्तमान में, 57 प्रोफेशनल्स केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों में विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं.'
लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती की आलोचना क्यों?
कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों द्वारा लेटरल एंट्री की इस आधार पर आलोचना की जा रही है कि ऐसी भर्तियों में एससी, एसटी और ओबीसी उम्मीदवारों के लिए कोई कोटा निर्धारित नहीं है. यूपीएससी के हालिया विज्ञापन पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, 'लेटरल एंट्री एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है और भाजपा जानबूझकर नौकरियों में ऐसी भर्तियां कर रही है ताकि एससी, एसटी, ओबीसी श्रेणियों को आरक्षण से दूर रखा जा सके.' राष्ट्रीय जनता दल के नेता और बिहार विधानसभा में लीडर ऑफ अपोजिशन तेजस्वी यादव ने केंद्र सरकार के इस कदम की निंदा करते हुए इसे 'भद्दा मजाक' बताया. उन्होंने कहा कि अगर ये 45 नियुक्तियां सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से की जातीं, तो लगभग आधे पद एससी, एसटी और ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित होते.'
लेटरल एंट्री में क्यों नहीं है आरक्षण का प्रावधान?
डीओपीटी ने 15 मई, 2018 के एक सर्कुलर में कहा था कि 'केंद्र सरकार के पदों और सेवाओं में 45 दिन या उससे अधिक समय तक चलने वाली नियुक्तियों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों के लिए आरक्षण होगा.' हालांकि 29 नवंबर, 2018 को जब लेटरल एंट्री का पहला दौर चल रहा था, तब डीओपीटी की अतिरिक्त सचिव सुजाता चतुर्वेदी ने यूपीएससी सचिव राकेश गुप्ता को एक पत्र लिखा, जिसमें कहा गया, 'लेटरल एंट्री के लिए राज्य सरकारों, पब्लिक सेक्टर, स्वायत्त निकायों, वैधानिक निकायों, विश्वविद्यालयों में कार्य का अनुभव रखने वाले आवेदकों पर विचार किया जाना है.
पत्र में आगे कहा गया, 'इन्हें इनके कार्यक्षेत्र से संबंधित विभागों में डेप्यूटेशन (किसी कर्मचारी को दूसरे विभाग में काम करने के लिए अस्थायी नियुक्ति) पर लिया जाएगा. डेप्यूटेशन पर नियुक्ति में आरक्षण व्यवस्था लागू करने संबंधी कोई निर्देश नहीं हैं. इन पदों को भरने की वर्तमान व्यवस्था (लेटरल एंट्री) को डेप्यूटेशन के करीब माना जा सकता है, जहां एससी/एसटी/ओबीसी के लिए अनिवार्य आरक्षण आवश्यक नहीं है. हालांकि, यदि एससी/एसटी/ओबीसी उम्मीदवार लेटरल एंट्री के लिए आवेदन करते हैं, और वे जरूरी योग्यताएं पूरी करते हैं तो उनकी नियुक्ति पर विचार किया जाना चाहिए और उनका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए समान स्थिति वाले मामलों में ऐसे उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जा सकती है.'
aajtak.in