अमेरिका और कनाडा में भारतीय छात्रों की संख्या घट रही है. लेकिन क्या इसका मतलब है कि भारतीय छात्र अब विदेश में उच्च शिक्षा के लिए रुचि नहीं रखते, या सिर्फ कुछ देशों से बच रहे हैं? आइए जानते हैं कि आखिर इस नये बदलते ट्रेंड की क्या वजह है.
विदेश में पढ़ रहे 18 लाख से ज्यादा छात्र
मई 2025 में विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में 18 लाख से ज्यादा भारतीय छात्र विदेशों में पढ़ाई कर रहे हैं, जो सिर्फ दो साल पहले 13 लाख थे. सांसदों के मानसून सत्र में दिए गए जवाब के मुताबिक, 2019 में लगभग 5.9 लाख भारतीय छात्र विदेश में थे. कोविड-19 महामारी के कारण यह संख्या 2020 में 2.6 लाख तक गिर गई, फिर 2021 में बढ़कर 4.4 लाख हुई.
यह संख्या 2022 में 7.5 लाख तक बढ़ी और 2023 में 8.9 लाख पर पहुंची, लेकिन 2024 में फिर 7.6 लाख रह गई. इसका मतलब है कि कुल मिलाकर भारतीय छात्रों की संख्या विदेशों में बढ़ी है, लेकिन नए छात्रों के बाहर जाने की सालाना संख्या में हाल के वर्षों में उतार-चढ़ाव देखा गया है.
छात्रों के पसंदीदा देश और हाल की स्थिति
पिछले तीन वर्षों में भारतीय छात्रों के पसंदीदा गंतव्य बड़े पैमाने पर अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, रूस और जर्मनी ही रहे, सबसे ज्यादा छात्रों को आकर्षित करते रहे. हालांकि अमेरिका अभी भी शीर्ष गंतव्य बना हुआ है, लेकिन वहां छात्रों की संख्या 2023 में 2.3 लाख से घटकर 2024 में 2.04 लाख हो गई, ये सिर्फ एक साल में लगभग 13 प्रतिशत की गिरावट है.
कनाडा में यह गिरावट और भी ज्यादा थी, 2023 से 2024 के बीच 41 प्रतिशत से अधिक, जबकि यूके में इसी अवधि में 28 प्रतिशत की गिरावट देखी गई. लेकिन अन्य प्रमुख गंतव्यों के विपरीत, जर्मनी और रूस में 2021 से भारतीय छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है.
यूरोप और एशिया की ओर रुझान
डेटा से पता चलता है कि भारतीय छात्र अब यूरोप और नजदीकी क्षेत्रों की ओर बढ़ रहे हैं. 2023 से 2024 के बीच, जर्मनी में छात्रों की संख्या में 49 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि रूस में 34 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई. इसी तरह अन्य यूरोपीय देशों में भी वृद्धि देखी गई. आयरलैंड में 30 प्रतिशत, फ्रांस में 14 प्रतिशत, और स्पेन व इटली में क्रमशः 6 और 7 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई.
एशिया के कुछ हिस्सों में भी सकारात्मक रुझान दिखाई दिया. उज्बेकिस्तान में छात्रों की संख्या में 50 प्रतिशत की तेज वृद्धि हुई, जबकि जापान और मलेशिया में क्रमशः 24 और 28 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई.
नई पसंद के कारण
ये बदलाव यह दिखाते हैं कि जहां अमेरिका, कनाडा और यूके जैसे पारंपरिक गंतव्य गिरावट देख रहे हैं, वहीं यूरोप और एशियाई देश तेजी से मजबूत विकल्प बनकर उभर रहे हैं. ये देश कम लागत, अधिक कार्यक्रम विकल्प और लचीली वीजा नीतियां प्रदान कर रहे हैं.
अंकिता तिवारी