भारतीय सेना ने चीन सीमा के नजदीक बनाया 'फॉरेन ट्रेनिंग नोड', ऊंचाई पर युद्धाभ्यास के लिए सटीक

चीन सीमा से मात्र 100 किलोमीटर की दूरी पर भारतीय सेना ने फॉरेन ट्रेनिंग नोड बनाया है. यह नोड 9500 फीट की ऊंचाई पर है. यहां पर 15 नवंबर से 2 दिसंबर तक इंडियन और अमेरिकी आर्मी के जवान युद्धाभ्यास करेंगे. यानी हाई एल्टीट्यूड वाले इलाके में पहली बार इस तरह का सैन्य अभ्यास किया जाएगा.

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उत्तराखंड के औली में चीन सीमा से मात्र 100 किलोमीटर दूर बनाया गया है फॉरेन ट्रेनिंग नोड. (फोटोः AFP) उत्तराखंड के औली में चीन सीमा से मात्र 100 किलोमीटर दूर बनाया गया है फॉरेन ट्रेनिंग नोड. (फोटोः AFP)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 08 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 12:19 PM IST

चीन लगातार लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) के पास नापाक हरकतें करता रहता है. खासतौर से पूर्वी लद्दाख की तरफ. इसलिए अब भारतीय सेना ने उत्तराखंड के औली में हाई एल्टीट्यूड फॉरेन ट्रेनिंग नोड (FTN) बनाया है. इस जगह पर मित्र देशों के साथ युद्धाभ्यास किया जाएगा. फिलहाल इस नोड पर पहली बार भारतीय सेना और अमेरिकी आर्मी के जवान 15 नवंबर से 2 दिसंबर तक सैन्य अभ्यास करने वाले हैं. 

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अमेरिकी सैनिक के साथ युद्धाभ्यास में शामिल भारतीय जवान. (फाइल फोटोः यूएस आर्मी)

औली में बना फॉरेन ट्रेनिंग नोड LAC से मात्र 100 किलोमीटर दूर है. यहां पर हमेशा 350 जवान रहेंगे. चाहे वह भारतीय हों या फिर ट्रेनिंग के समय आए हुए विदेशी मेहमान सैनिक. इस जगह पर सैनिकों के रहने और ट्रेनिंग की पूरी व्यवस्था की गई है. पहली बार यहां पर भारत और अमेरिका के जवान युद्धाभ्यास करने जा रहे हैं. यह नोड 9500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. 

युद्धाभ्यास में युद्ध रणनीति के अलावा नई तकनीकों की जानकारियों को भी साझा किया जाता है. (फाइल फोटोः मरीन कॉर्प्स लांस कार्पोरल डेंजेलो यानेज)

सेना ने बताया कि FTN का आइडिया सेंट्रल आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल योगेंद्र डीमरी का है. इस जगह पर भारत और अमेरिका की सेना अपना 15वां युद्धाभ्यास करने जा रहे हैं. यह एक संयुक्त सैन्य अभ्यास होगा. यहां पर भारतीय सेना ऊंचाई वाले इलाकों में युद्ध की रणनीतियों और तकनीकों का प्रदर्शन करेगी. जिसे माउंटेन वॉरफेयर कहते हैं. 

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सैन्य अभ्यास लगातार होते रहने से सेना हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहती है. (फाइल फोटोः यूएस आर्मी)

वहीं, दूसरी तरफ अमेरिकी सेना अपनी आधुनिक तकनीकों का प्रदर्शन करेगी. इन तकनीकों का इस्तेमाल युद्धाभ्यास के दौरान पहाड़ों पर किया जाएगा. ताकि युद्ध में सफलता हासिल की जा सके. युद्धाभ्यास की शुरुआत साल 2004 में हुई थी. पिछली बार यह सैन्य अभ्यास राजस्थान के बीकानेर स्थित महाजन फील्ड रेंज में हुआ था. 

ऊंचाई पर युद्ध करने के मामले में भारतीय सेना से ज्यादा दक्ष सेना किसी देश के पास नहीं है.  

इसके अलावा भारतीय सेना और अमेरिकी सेना मिलकर एक और युद्धाभ्यास करती है. जिसका नाम है वज्र प्रहार. जो इसी साल अगस्त में हिमाचल प्रदेश के बकलोह में किया गया था. ऊंचाई वाले इलाकों में युद्ध के दौरान भारतीय सेना जितनी महारत हासिल रखती है, उतनी किसी देश की सेना के पास नहीं है. 

ढाई साल पहले जब चीन ने लद्दाख के पूर्वी इलाके में घुसपैठ की थी, तब भारतीय सेना ने उत्तराखंड की तरफ से कैलाश रेंज की चोटियों पर कब्जा करके, चीनियों को झुकने पर मजबूर कर दिया था. भारतीय सेना के इस कदम से चीनी सैन्य अधिकारी बातचीत के लिए टेबल पर आए थे. इसलिए यह फॉरेन ट्रेनिंग नोड बेहद जरूरी है. 

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