AMU में मुस्लिम छात्र ज्यादा क्यों, समान अवसर क्यों नहीं? पूर्व कुलपति जमीरुद्दीन ने दिया ये जवाब

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को लेकर बनी कई धारणाओं को तोड़ा है. उन्होंने नाम को लेकर चल रहे विवाद पर भी दो टूक जवाब दिया है और वहां ज्यादा मुस्लिम छात्रों के पढ़ने का भी कारण बताया है.

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रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 17 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 2:31 PM IST

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में बतौर पूर्व कुलपति अपने विचार साझा किए हैं. उन्होंने इस यूनिवर्सिटी के नाम से लेकर वहां एक वर्ग को मिल रही ज्यादा तवज्जो तक, हर मुद्दे पर स्पष्ट जवाब दिया है. उन्होंने यहां तक कहा है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी कोई मदरसा नहीं है, बल्कि यहां सेकुलर तरीके से मॉर्डन पढ़ाई होती है.

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नाम को लेकर विवाद, क्या बोले पूर्व वीसी?

नाम को लेकर चल रहे विवाद पर दो टूक कहते हुए जमीरुद्दीन शाह ने कहा कि लोगों को कई बार इस यूनिवर्सिटी के नाम से ही दिक्कत हो जाती है क्योंकि इसमें मुस्लिम आता है. जबकि देश में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी भी है, हिंदू कॉलेज भी है, खालसा कॉलेज भी है. ये सभी नाम देश की विविधता को दर्शाते हैं. कुछ लोगों को ऐसा लगता होगा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी कोई मदरसा जैसा काम करता होगा. लेकिन मैं साफ कहना चाहता हूं कि ये एक मॉर्डन सेकुलर यूनिवर्सिटी है.

AMU में ज्यादा मुस्लिम छात्र क्यों?

अब नाम को लेकर चल रहे विवाद पर तो उन्होंने जवाब दिया ही, उन्होंने ये भी साफ कर दिया कि AMU में मुस्लिम छात्र ज्यादा इसलिए पढ़ते हैं क्योंकि जो कोर्स पढ़ाए जा रहे हैं, उनमें उनकी ज्यादा दिलचस्पी है. इस बारे में वे कहते हैं कि लोग सवाल जरूर कर सकते हैं कि मुस्लिम ज्यादा क्यों यहां पढ़ते हैं, इसका एक ही जवाब है कि यहां पर उर्दू, फारसी, अरेबिक जैसे विषयों पर भी पढ़ाई होती है और इन कोर्स में मुस्लिम ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं. मैं चाहता हूं कि दूसरे समुदाय के बच्चे भी आएं, लेकिन अभी वो इन कोर्स के लिए आगे नहीं आते हैं.

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एक और किस्से का जिक्र करते हुए जमीरुद्दीन शाह ने बताया कि जब वे AMU के कुलपति बने थे, तब छात्रों के मन में डर रहता था कि नौकरी के समय उनके साथ भेदभाव होगा. मैंने तब कहा था कि भेदभाव इंसानी फितरत है. लेकिन ये उनके साथ होता है, जो कम पढ़े लिखे होते हैं. उस वर्ग में ये ज्यादा देखने को मिलता है.

सेना का कैसा अनुभव?

वैसे इसके अलावा बातचीत के दौरान जमीरुद्दीन शाह ने अपने सेना के दिनों को भी याद किया. उन्होंने बताया कि मैंने अपनी सर्विस के दौरान सेना में कभी भी सांप्रदायिकता नहीं देखी. मुझे इस बात का काफी गर्व भी है.अनेकता में एकता सेना का मूल मंत्र है और वो हमेशा उसी सिद्धांत पर चलती है. एक किस्से का जिक्र करते हुए वे बताते हैं कि लोंगेवाला की जंग के दौरान उनकी जो रेजिमेंट थी, उसमें 16 ऑफिसर थे. उसमें दो मुस्लिम, दो सिख, एक ईसाई, एक ज्यू. सभी ने साथ मिलकर वो जंग लड़ी थी. वो भारत की असल ताकत है. तब किसी ने मुझसे मेरा धर्म नहीं पूछा था, रेजिमेंट के सम्मान को बनाए रखना ही हमारा उदेश्य था.

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