पाटीदारों के गढ़ में प्रयोग करने से क्यों नहीं कतराती बीजेपी?: दिन भर, 23 नवंबर

पाटीदार बहुल मेहसाणा बीजेपी के लिए कितना अहम है? क्यों ये इलाक़ा बीजेपी की पॉलिटिकल प्रयोगशाला है? असम और मेघालय का सीमा विवाद क्यों नहीं सुलझ पा रहा है? भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल गांधी को कितना बदल दिया और इससे राहुल गांधी के लिए क्या बदल गया? और चीफ़ इलेक्शन कमिश्नर के तौर पर टीएन शेषन क्यों एक नज़ीर हैं, सुनिए आज के 'दिन भर' में जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से.

Advertisement
PM modi rally mehsana PM modi rally mehsana

कुमार केशव / Kumar Keshav

  • ,
  • 23 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 11:39 PM IST

पाटीदारों के गढ़ में खिलेगा कमल?

गुजरात में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार ज़ोर शोर से चल रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, जेपी नड्डा जैसे बड़े नेताओं ने बीजेपी के लिए प्रचार की कमान संभाली. वहीं आम आदमी पार्टी के लिए भगवंत मान, संजय सिंह और राघव चड्ढा जैसे नेताओं ने अपना दम झोंका. प्रधानमंत्री मोदी ने आज ताबड़तोड़ चार रैलियां कीं. इसकी शुरुआत आज उन्होंने मेहसाणा से की. मेहसाणा प्रधानमंत्री का गृह जिला भी है. उन्होंने कहा कि चारों तरफ बीजेपी को ज़बरदस्त समर्थन मिल रहा है और ये चुनाव नरेंद्र मोदी या भूपेंद्र पटेल नहीं बल्कि जनता लड़ रही है. उन्होंने कांग्रेस पर भी ख़ूब निशाना साधा और भ्रष्टाचार, भाई-भतीजाबाद और परिवारवाद जैसे मुद्दों पर पार्टी को जमकर कोसा.

Advertisement

मेहसाणा, गुजरात का एक पाटीदार डोमिनेटेड ज़िला है और इसलिए 2015 के पाटीदार आंदोलन का गढ़ रहा था. लेकिन दो साल बाद 2017 में हुए चुनाव में बीजेपी यहाँ की 7 में से 5 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. इस बार वहां क्या एक्वेशन बन रहे हैं और बीजेपी किस तरह इस इलाके को एक पॉलिटिकल लेबोरेट्री की तरह इस्तेमाल करती है? प्रधानमंत्री ने मेहसाणा में आज कांग्रेस को वंशवाद और परिवारवाद के मुद्दे पर भी घेरा. जेपी नड्डा ने भी कांग्रेस के ऊपर परिवारवाद को आगे बढ़ाने के आरोप लगाए. लेकिन क्या बीजेपी ने इस चुनाव में अपने नेताओं के बेटे-बेटियों को टिकट नहीं दिया है, सुनिए 'दिन भर' की पहली ख़बर में.

भारत जोड़ो यात्रा से कितने बदले राहुल?

कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का आज सतहत्तरवां दिन है. सात सितंबर को कन्याकुमारी से शुरु हुई ये यात्रा अब तक तकरीबन 1700 किलोमीटर तय कर चुकी है. इस यात्रा को राहुल गांधी लीड कर रहे हैं और उनके प्रेजेंस से पार्टी को उम्मीद है कि राज्यों में कमज़ोर पड़ चुके, ज़ंग खाए कैडर और कार्यकर्ताओं के गिरते हुए कॉनफिडेंस को एक किस्म का रिवाइवल मिलेगा.  हालांकि बीजेपी ने अपनी सियासी टिप्पणियों में इसे राहुल के री-लांच की कोशिश बताया. पर अगर पॉलिटिकल बयानबाज़ी से इतर इस यात्रा में राहुल की बॉडी लैंगवेज की बात करें, जिसे लेकर खूब चर्चा हो भी रही है... तो राहुल इस सफर में अपनी चाल के ज़रिए कुछ अग्रेशन ज़ाहिर करने की कोशिश करते हुए लगते हैं. सफेद टी-शर्ट, बादामी ट्राउज़र, स्पोर्ट शूज़ और बढ़ी हुई दाढ़ी में राहुल तेज़ कदम बढ़ाते हुए पालिटिक्स के एंग्री यंग मैन बनने की कोशिश में दिखाई देते हैं. सरकार के खिलाफ सात साल की एंटी-इंकंबेंसी, मंहगाई, बेरोज़गारी के मुद्दों पर आम जनता के असंतोष की एक तस्वीर बनाने की कोशिश में राहुल जिस तरह साथ आए लोगों का हाथ मज़बूती और उतनी ही सहजता से थामकर आगे बढ़ते हैं, वो उन तस्वीरों से अलग लगती है जिसमें किसी पार्टी का एक नेता जब चलता है तो बाकियों को पीछे कर दिया जाता है. तो क्या ये वाकई राहुल का कम बैक है और नज़दीक से इस यात्रा को कवर करने वाले इस सफर के दौरान राहुल में क्या किसी तरह के बदलाव और राजनीतिक समझ की मच्योरिटी को देख रहे हैं? साथ ही जनता में उनके परसेप्शन को लेकर क्या किसी तरह के बदलाव को आप महसूस कर रही हैं जो चुनाव में कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है, सुनिए 'दिन भर' की दूसरी ख़बर में.

Advertisement

 

 

असम-मेघालय विवाद की जड़ में क्या है?


आज से पचास बरस पहले 1972 में मेघालय को असम से अलग किया गया. अमूमन भारत में जितने भी राज्य अलग हुए हैं उनका गठन भाषा के आधार पर हुआ, लेकिन पूर्वोत्तर में राज्य का गठन पहाड़ियों की स्थितियों को ध्यान में रख कर किया गया. जब मेघालय को असम से अलग किया गया तो बंटवारे की रेखा 'खासी और गारो' समुदाय की आबादी के बीच से होकर गुजरी और इसके बाद से ही इन लोगों के विकास को लेकर विवाद की जंग छिड़ गई जो आजतक जारी है.

अभी महाराष्ट्र का कर्नाटक के साथ सीमा विवाद शुरू हो गया है और इसी कड़ी में कल ही एक घटना और घटी असम मेघालय के बॉर्डर पर हुई. बताया गया है कि सीमा से सटे जंगल से कुछ लोग ट्रक से तस्करी करके लकड़ी ले जा रहे थे. असम पुलिस और फॉरेस्ट विभाग ने उन्हें पश्चिम जयंतिया हिल्स के पास रोका तो फायरिंग शुरू हो गई. फिर असम पुलिस की ओर से जवाबी कार्रवाई में 6 लोग मारे गए जिसमें 5 मेघालय के नागरिक और एक फॉरेस्ट गार्ड शामिल हैं. ऐसा दावा मेघालय पुलिस ने किया है.

ख़बर फैलते ही मेघालय के 7 जिलों में हिंसा भड़क गई जिसके बाद मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा ने 7 जिलों में 48 घंटे के लिए इंटरनेट बंद करने के आदेश दिए.  हाल ही में सीमा विवाद को लेकर दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री और गृह मंत्री अमित शाह की मुलाकात भी हुई थी जिसमें अमित शाह का बयान था कि असम- मेघालय सीमा विवाद 70 फीसदी तक सुलझ चुका है. ऐसा लगा कि मामला अब सुलझ जाएगा मगर अब तस्करी से जुड़े मसले ने एक मर्तबा फिर सीमा विवाद का रूप ले लिया है. तो सबसे पहले मेघालय और असम के सीमा विवाद को समझते हैं, क्या है ये और इसकी शुरुआत कैसे हुई? इसका समाधान कैसे होगा, सुनिए 'दिन भर' की तीसरी ख़बर में.

Advertisement

चुनाव आयोग का सबसे दबंग चीफ़

देशभर में चुनाव कराने की ज़िम्मेदारी जिस संस्था के पास है, उसका नाम चुनाव आयोग है. चुनाव आयोग के जो चीफ़ होते हैं, उन्हें चीएफ़ इलेक्शन कमीश्नर या मुख्य चुनाव आयुक्त कहा जाता है. मंगलवार को चुनाव आयोग की ऑटोनोमी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बेंच सुनवाई कर रही थी. जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता में हुई इस सुनवाई के दौरान एक शख़्स का ज़िक्र आया, उनका नाम है तिरुनेल्लई नारायण अय्यर शेषन, शॉर्ट में टीएन शेषन. आपने भी इनका नाम सुना ही होगा. तो सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कल कहा कि 'देश में कई चीफ इलेक्शन कमिश्नर रह चुके हैं, पर टी एन शेषन कभी-कभार ही होते हैं.' देखा जाए तो 1950 में चुनाव आयोग के गठन के बाद से आज तक 25 चीफ इलेक्शन कमिश्नर हुए हैं, सुकुमार सेन इनमें पहले थे. हमने जीके की किताबों में पढ़ा है. लेकिन जब जब चुनाव आयोग का ज़िक्र होता है, टीएन शेषन का नाम आप ही आप क्यों आ जाता है? उन्हें नज़ीर की तरह पेश क्यों किया जाता है  और क्या उस वक्त की सरकारों के साथ उनके टकराव या मतभेद हुए थे, सुनिए 'दिन भर' की आख़िरी ख़बर में.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement