अदालत में केस का फैसला सुनाने वाली जज यदि पत्नी हो और कानूनी दांव-पेच लगाने वाला पति सरकारी वकील हो तो जरा सोचिए इनकी जोड़ी कितनी सजग और समझदार होगी. लेकिन ऐसा नहीं है. क्योंकि महिला चाहे जज हो या फिर आम नागरिक, उसे अपने हक के लिए लड़ना ही पड़ता है. ऐसा ही एक मामला राजस्थान की राजधानी जयपुर शहर फैमिली कोर्ट संख्या-1 में सामने आया है. जहां जज पत्नी ने अपने बच्चों के भरण भोषण के लिए फैमिली कोर्ट में प्रार्थना पत्र लगा रखा था, जिस पर कोर्ट ने सरकारी वकील से बच्चों के अंतरिम भरणपोषण के लिए हर महीने 24 हजार रुपए दिलवाए जाने का निर्देश दिया है.
श्रीगंगानगर के श्रीकरणपुर में कार्यरत एडीजे इंदिरा बनेरा ने जयपुर शहर फैमिली कोर्ट संख्या-1 प्रार्थना पत्र दिया था. जिसमें कहा गया था कि 24 नवंबर 2007 को उनकी शादी जयपुर के भारत अजमेरा से हुई थी. साल 2010 में दंपती की एक बेटी और साल 2015 में एक बेटा हुआ. दोनों बच्चे अपनी मां के साथ रहे और पति ने उन्हें कभी भी नहीं रखा.
शादी होने के समय पति रोजगार के लिए कोशिश कर रहा था तो पत्नी ने आर्थिक सहयोग दिया. जिसके चलते पति अजमेर में सहायक अभियोजन अधिकारी पद पर सेवारत हो गया. लेकिन पति और उसके परिजनों का व्यवहार उसके और बच्चों के प्रति सही नहीं रहा और यहां तक कि बच्चों की परवरिश में भी उसने कोई जिम्मेदारी नहीं निभाई. इसलिए उसे बच्चों के लिए भरणपोषण राशि दिलवाई जाए.
वहीं, इसके बाद कोर्ट ने दूसरे पक्ष को सुना. जिसके जवाब में वकील पति के अधिवक्ता डीएस शेखावत ने कहा, प्रार्थिनी का वेतन ही 2 लाख रुपए से ज्यादा है. उसने खुद ही तलाक का प्रार्थना पत्र दायर कर रखा है. वह खुद ही बच्चों का भरण-पोषण करने में सक्षम है, जबकि अप्रार्थी का वेतन 75 हजार रुपए है. इसलिए प्रार्थना पत्र खारिज किया जाए.
लेकिन कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनकर पीठासीन अधिकारी अरुण कुमार दुबे ने अप्रार्थी पति को दोनों बच्चों के लिए 12-12 हजार रुपए महीने भरणपोषण भत्ता देने के आदेश दिए हैं. साथ ही भरण-पोषण राशि 20 दिसंबर 2021 से देने के लिए कहा है.
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विशाल शर्मा