संघ से सरकार का अलग स्टैंड... समाजवादी-सेकुलर शब्द प्रस्तावना से हटाने पर क्या बोले कानून मंत्री?

संविधान की प्रस्तावना से समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने पर संघ और सरकार का नजरिया अलग-अलग है. आरएसएस सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने पिछले दिनों दोनों शब्दों को हटाने की वकालत की थी, लेकिन कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्यसभा में साफ कर दिया कि सरकार का फिलहाल ऐसी कोई राय नहीं है.

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'समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष' हटाने पर काूनन मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और दत्तात्रएय होसबोले की राय अलग-अलग (Photo-ITG)  'समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष' हटाने पर काूनन मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और दत्तात्रएय होसबोले की राय अलग-अलग (Photo-ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 25 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 9:18 AM IST

भारतीय संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष' शब्द हटाने को सरकार तैयार नहीं है. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने गुरुवार को राज्यसभा में इस बात को स्वीकार किया कि कुछ लोग संविधान की प्रस्तावना से जरूर 'समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटाने की वकालत कर रहे हैं, लेकिन फिलहाल सरकार का ऐसा कोई भी इरादा नहीं है और न ही कोई प्लान है.

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बता दें कि पिछले दिनों आरएसएस सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवादी और पंथ-निरपेक्ष' शब्द को हटाने पर चर्चा होनी चाहिए. इन दो शब्दों का मतलब क्या है? इस बात को लेकर ही समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन ने कानून मंत्री से सरकार के नजरिए को जाने की कोशिश की है.

सपा सांसद रामजी लाल सुमन ने राज्यसभा में कानून मंत्री से सवाल पूछा था कि सरकार संविधान की उद्देशिका में समाजवादी और पंथ-निरपेक्ष के उपयोग पुनर्विचार करने की दिशा में क्या अग्रसर है. या फिर इस संबंध में कुछ सामाजिक संगठनों के द्वारा माहौल बनाया जा रहा. साथ ही उन्होंने इस मुद्दे पर सरकार के दृष्टिकोण जानने का सवाल पूछा था.

'समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष' पर सरकार की राय

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कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सपा सांसद रामजी लाल के द्वारा उठाए सवाल पर जवाब देते हुए कहा है कि भारत सरकार ने संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने की कोई कानूनी और संवैधानिक प्रक्रिया औपचारिक रूप से अभी शुरू नहीं की है.

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हालांकि, मेघवाल ने साथ ही कहा कि कुछ सार्वजनिक या राजनीतिक हलकों में इस मुद्दे पर चर्चा और बहस हो रही हो, लेकिन भारत सरकार ने इन दोनों शब्दों में संशोधन को लेकर कोई औपचारिक निर्णय या प्रस्ताव अब तक घोषित नहीं किया है. केंद्र सरकार का इस तरह का कोई इरादा भी नहीं है. कानून मंत्री का यह बयान संघ के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबले के बयान देने के एक महीने बाद आया है.

होसबले ने दोनों शब्दों के हटाने की मांग उठाई थी

आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि कांग्रेस सरकार ने संविधान प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द जोड़े थे. अब इस पर विचार करना चाहिए कि ये शब्द रहने चाहिए या फिर नहीं.

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होसबले ने कहा कि बाबा साहेब आंबेडकर ने जो संविधान बनाया, उसकी प्रस्तावना में ये शब्द कभी नहीं थे. आपातकाल के दौरान जब मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए, संसद काम नहीं कर रही थी, न्यायपालिका पंगु हो गई थी, तब ये दोनों शब्द जोड़े गए. इसीलिए इन शब्दों की प्रासंगिकता पर चर्चा होनी चाहिए.

आरएसएस और सरकार की अलग-अलग राय

दत्तात्रेय होसबले के द्वारा संविधान की प्रस्तावना से समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने की मांग उठी तो बीजेपी के कई नेता खुलकर समर्थन में उतर आए थे. असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने इस मुद्दे पर बयान देते हुए कहा था कि 'समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष' शब्द को हटाने का यह सुनहरा समय है.

तत्कालीन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी संविधान की प्रस्तावना से इन दोनों शब्दों को हटाने के पक्ष में बयान दिया था. इससे यह मुद्दा गर्मा गया था. बीजेपी और विपक्ष एक दूसरे के सामने आए थे, जिसे लेकर ही सपा सांसद रामजी लाल सुमन ने सरकार से राय जानने के लिए राज्यसभा में सवाल पूछा.

आरएसएस नेता और बीजेपी नेताओं के नजरिए से सरकार के रुख को अंतर करते हुए कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने जरूर कहा कि कुछ सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों द्वारा बनाए गए माहौल के संबंध में, यह संभव है कि कुछ लोग अपनी राय व्यक्त कर रहे हों या इन शब्दों पर पुनर्विचार की वकालत कर रहे हों. ऐसी गतिविधियां इस मुद्दे पर सार्वजनिक चर्चा या माहौल बना सकती हैं, लेकिन ये जरूरी कि सरकार की आधिकारिक स्थिति या कार्रवाई को दर्शाते हों. इस तरह से उन्होंने साफ कर दिया कि सरकार का नजरिया अलग है.

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कानून मंत्री ने दिया कोर्ट के फैसला का हवाला

कानून मंत्री ने नवंबर 2024 में डॉ. बलराम सिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने 42वें संविधान संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था. मेघवाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट किया कि भारतीय संदर्भ में 'समाजवाद' एक कल्याणकारी राज्य का प्रतीक है. निजी क्षेत्र के विकास में वह बाधा नहीं डालता, जबकि 'धर्मनिरपेक्षता' संविधान के मूल ढांचे का अभिन्न अंग है.

सरकार के रुख को स्पष्ट करते हुए कानून मंत्री ने कहा कि सरकार का आधिकारिक रुख यह है कि संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्षता' शब्दों पर पुनर्विचार करने या उन्हें हटाने की कोई योजना या इरादा नहीं है. प्रस्तावना में संशोधन के संबंध में किसी भी चर्चा के लिए गहन विचार-विमर्श और व्यापक सहमति की आवश्यकता होगी, लेकिन अभी तक सरकार ने इन प्रावधानों को बदलने के लिए कोई औपचारिक प्रक्रिया शुरू नहीं की हैय

संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवाद-धर्मनिरपेक्ष

आजादी के बाद देश में संविधान लागू हुआ तो संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द का उल्लेख नहीं था. संविधान सभा ने 26 नवंबर, 1949 को भारत का संविधान अपनाया और 26 जनवरी, 1950 से संविधान देश में लागू हुआ. संविधान की प्रस्तावना के सबसे शुरूआती शब्द इस तरह थे. 'हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए. इसके आगे बाकी लक्ष्यों और उद्देश्यों की बात है.

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संविधान की मूल प्रस्तावना में भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने का लक्ष्य था, लेकिन इंदिरा गांधी सरकार में लगे आपातकाल के दौरान 1976 में संविधान में एक बड़ा संशोधन किया गया. इसे 42वें संविधान संशोधन कर संविधान की प्रस्तावना में दो शब्द जोड़े गए. समाजवादी यानी सोशलिस्ट और पंथ-निरपेक्ष यानी सेकुलर और तब से ही इन शब्दों को जोड़ने को लेकर विरोध और समर्थन का सिलसिला चलता आ रहा है.

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