तस्वीर में खाने की थाली हाथ में लिए युवक कोई शेफ नहीं है, दरअसल ये तो खाने की इन थालियों को सजाकर अपने गांव को संवारना चाहता है. विकास के रास्ते पर आगे ले जाना चाहता है. 31 साल के इस युवक का नाम अजय कुमार है. अजय मर्चेंट नेवी में इंजीनियर हैं और बिहार के रहने वाले हैं.
‘माँ के एक आइडिया ने पहुँचा दिया शहर’
अजय बिहार के कैमूर जिले के भुईफोर गांव के रहने वाले हैं. बताते हैं कि उनके गांव और आसपास का माहौल पढ़ाई लिखाई का बिलकुल नहीं था. गांवों में बेहद गरीबी थी, पिता की भले ही सरकारी नौकरी पुलिस में लग गई थी लेकिन परिवार इतना बड़ा था जिम्मेदारियों के चलते अजय और उनके भाई को गांव में ही रहना पड़ता था, जहां पर पढ़ाई के लिए कोई अच्छा स्कूल नहीं था लेकिन एक बार अजय की मां बीमार हुई और पिता को इलाज के लिए उन्हें शहर लेके जाना था.
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मां ने अजय को समझाया कि अगर तुम्हें पिता जी शहर लेकर न चलें तो तुम रोना शुरू कर देना ताकि उन्हें तुम्हें भी शहर लेकर जाना पड़े. अजय ने यही किया और शहर पहुंचते ही कुछ दिन बाद पिता ने उनका एक ठीक-ठाक स्कूल में एडमिशन करवा दिया.
‘अच्छे नंबर के प्रेशर में एग्जाम के पहले हुए बीमार’
अजय बताते हैं कि मां की बीमारी के बहाने वो गांव से शहर पहुंच गए. स्कूल में एडमिशन करा लिया लेकिन वह गांव के इकलौते पहले ऐसे लड़के थे जो गांव से बाहर शहर में पढ़ाई कर रहा था. इसके चलते गांव और परिवार के लोगों की बहुत उम्मीदें हो गई कि ये लड़का जीवन में जरूर कुछ अच्छा करेगा. एग्जाम में भी अच्छे नंबर लेकर आएगा. अजय बताते हैं कि इस प्रेशर के चलते टेंथ के एग्जाम के एक पहले उनकी तबियत बेहद खराब हो गई जिससे उनके एग्जाम में अच्छे नंबर नहीं आए.
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‘जब पता चला इंजीनियरिंग में अच्छे पैसे मिलते हैं’
अजय बताते हैं कि टेंथ में अच्छे नंबर तो नहीं आए थे लेकिन पढ़ने का मन बहुत था. पहले परिवार और खुद अजय के सोच थी कि पढ़-लिखकर सेना या पुलिस का हिस्सा बनना है लेकिन फिर अजय को अपने दोस्तों से बीटेक के बारे में पता चला. फिर ये पता चला कि इंजीनियर की तनख़्वाह बहुत अच्छी होती है. पैसे बहुत मिलते हैं. इसके बाद से अजय ने इंजीनियर बनने की ठान ली लेकिन घर वालों के पास उन्हें कोटा भेजने के पैसे नहीं थे. ऐसे में किसी ने उन्हें आनंद सर की क्लास के बारे में बताया और वो वहाँ पहुंच गए.
‘रेस्टोरेंट के जरिए गांव की महिलाओं को देंगे रोजगार’
अजय आज सफल हैं. उनकी नौकरी अच्छी चल रही है लेकिन फिर भी उन्होंने नोएडा में बिहार-ए-बनारस नाम का एक रेस्टोरेंट शुरू किया है, जहां पर बनारस की कचौड़ी और बिहार के लिट्टी चोखा का ओरिजनल स्वाद मिलता है लेकिन इससे बढ़कर इस रेस्टोरेंट का एक ख़ास मक़सद है. अजय बताते हैं कि इस रेस्टोरेंट में वो अपने गांव की महिलाओं को नौकरी देंगे.
इसके लिए उन्होंने अपने गांव में अपने घर पर ही महिलाओं की ट्रेनिंग शुरु कर दी है. गांव में स्किल्ड होने के बाद उन्हें शहर में लाकर अजय के ही रेस्टोरेंट में नौकरी दे दी जाएगी. अजय का मकसद है कि अपनी इस सैलरी से महिलाएं अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाएंगी. अच्छे स्कूल भेज पाएंगी. यही इस रेस्टोरेंट का उद्देश्य है.
मनीष चौरसिया