महाराष्ट्र में हिंदी भाषा विवाद में एक नया राजनैतिक अध्याय शुरू होने वाला है. पहली कक्षा से हिंदी पढ़ाने के विरोध में अब शिवसेना उद्धव गुट और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी कि राज़ ठाकरे एक साथ आ गए हैं. मतलब ये हुआ कि मराठी अस्मिता के नाम पर दोनों भाई ठाकरे बंधु राज़ और उद्धव अबे के मंच से सरकार के विरुद्ध आवाज बुलंद करेंगे, लेकिन बीजेपी इसे नाटक बता रही है.
बाला साहेब का उत्तराधिकारी बनने की लड़ाई में एक समय दो अलग रास्तों को चुनने वाले ठाकरे बंधु अब एक साथ मंच पर आने को तैयार है और इसकी वजह है मराठी भाषा की अस्मिता को बचाने की दलील. निकाय चुनाव से पहले महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हो गया है.
पहले भाषा विवाद पर शिवसेना उद्धव गुट और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी एमएनएस 6 और 7 जुलाई को अलग अलग रैली निकालने वाले थे, लेकिन इस विरोध को और भी ज्यादा धारदार बनाने के लिए. उद्धव और राज़ ठाकरे दोनों 5 जुलाई को एक साथ मंच पर दिखेंगे.
शिवसेना यूबीटी के नेता संजय राउत ने कहा, 'ये भाषा का विषय भी है और भी कुछ है तो इस बारे में राज़ ठाकरे ने 6 जुलाई को एक आंदोलन की घोषणा की थी और उद्धव ठाकरे ने घोषणा 7 जुलाई को आंदोलन की घोषणा की थी. दो अलग-अलग मोर्चे निकल रहे थे. एक ही विषय पर तो एमएनएस चीफ राज़ ठाकरे ने कल मुझे फ़ोन पर बताया भैया ये ठीक नहीं लगता है. विषय एक है हमारा और मराठी मनुष्य के दो दो बड़े मोर्चे निकलेंगे तो उससे मैसेज ठीक नहीं जाएगा. हमको एक साथ मोर्चा निकालना है. और सबको इसमें शामिल करना है तो मैंने इस बारे में मान लेने उद्धव से बात की. उद्धव ने भी हां कहा कि ये बात सही है. अलग-अलग मोर्चे निकालना सही नहीं होगा. अभी हम दोनों पांच तारीख़ को मोर्चा निकालेंगे'.
यह भी पढ़ें: महाराष्ट्र में भाषा विवाद... हिंदी विरोध में साथ आए उद्धव-राज, ठाकरे ब्रदर्स को क्यों दिख रहा सियासी मौका
एमएनएस का कहना है कि ये रैली सिर्फ एक विरोध प्रदर्शन मात्र नहीं बल्कि मराठी अस्मिता की एक नई चिंगारी है.
एक तरफ ठाकरे बंधु साथ आ रहे हैं तो दूसरी तरफ सत्ता पक्ष इस पूरे आंदोलन को ड्रामा बता रहा है. बीजेपी और शिवसेना दोनों ने सवाल खड़े किए हैं कि जब उद्धव खुद मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने हिंदी को क्यों मंजूरी दी थी?
इस बीच शिवसेना शिंदे गुट के नेता गजानन कीर्तिकर ने एक बड़ा बयान दिया है. उनका कहना है कि अखंड शिवसेना का सपना साकार करने के लिए ये एक सुनहरा मौका है. राज़ और उद्धव ठाकरे के साथ एकनाथ शिंदे को भी इस आंदोलन में भाग लेना चाहिए.
गजानन ने मीडिया से बात करते हुए कहा, ' ये मराठी लोगों की शिवसेना, उनके हित के लिए काम करने वाली शिवसेना और ये सब नेतृत्व बालासाहब ठाकरे ने अपने जीवन कार्य में किया. उनके साथ काम करने वाला मैं एक कार्यकर्ता, ये शिवसेना का डिवीज़न हो गया, विभाजन हो गया इसलिए ताकत कम हो गई शिवसेना की और ये इकट्ठा आएंगे तो शिवसेना की ताकत बढ़ेगी. ये दोनों भाई इकट्ठा आना चाहिए. एकनाथ शिंदे उनके साथ जुड़ना चाहिए. अखंड शिव सेना होनी चाहिए, ये इच्छा है'.
लेकिन इस सबके बावजूद महाविकास अघाड़ी के दूसरे दलों ने इस आंदोलन को खोलकर समर्थन नहीं दिया है. महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल का कहना है कि वो उनका उनका दल है. कौन सी पार्टी किसके साथ जाना उनका अधिकार है? रही बात कांग्रेस की तो हम भारत जोड़ों वाले हैं. कोई जब जुड़ता है तो हमें कोई ऐतराज नहीं है.
यह भी पढ़ें: 'हिंदी को अनिवार्य बनाना भी ठीक नहीं, इग्नोर करना भी...', शरद पवार ने बताया भाषा विवाद पर बीच का रास्ता
मराठी मानुष, मराठी अस्मिता और मराठी भाषा अब इन तीनों शब्दों को लेकर राज़ और उद्धव ठाकरे साथ खड़े हैं. 5 जुलाई को मुंबई की सड़कों पर जब हजारों की भीड़ उमड़ेगी तो ये सिर्फ एक विरोध नहीं होगा. निकाय चुनाव के पहले ये महाराष्ट्र की राजनीति में एक नए समीकरण की शुरुआत होगी जो राज्य के आगे की सियासी जंग के लिए नई दिशा भी तय कर सकता है.
इनपुट: ऋत्विक भालेकर
आजतक ब्यूरो