क्या सब कुछ ठीक है? आखिरी वक्त पर टला उद्धव-राज के गठबंधन का ऐलान, 'ठाकरे ब्रांड' बचाने की चुनौती कितनी बड़ी

महाराष्ट्र में बीएमसी सहित 29 नगर निगम चुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया मंगलवार से शुरू हो रही है. राज्य के बदले हुए सियासी माहौल को देखते हुए उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे आपसी दुश्मनी भुलाकर एक साथ आने के लिए तैयार थे, लेकिन फिर अचानक क्ताया हुआ कि मंगलवार को होने वाली प्रेस कॉफ्रेंस टल गई.

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ब्रांड ठाकरे को बचाने के लिए उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे साथ आए (Photo-PTI) ब्रांड ठाकरे को बचाने के लिए उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे साथ आए (Photo-PTI)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 23 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:00 PM IST

महाराष्ट्र में 288 नगर परिषद और नगर पंचायत के चुनाव नतीजे 'ब्रांड ठाकरे' के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ है. यही वजह है कि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे आपसी दुश्मनी भुलाकर एक साथ मिलकर बीएमसी सहित 29 नगर निगम के चुनाव लड़ने का फैसला किया है, लेकिन अचानक एक मोड़ आ गया. उद्धव की शिवसेना (यूबीटी) और राज ठाकरे की मनसे के गठबंधन का औपचारिक ऐलान मंगलवार को टल गया है.

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उद्धव ठाकरे भले ही 2019 में बीजेपी से अलग होकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो गए थे, लेकिन शिवसेना और 'ब्रांड ठाकरे' को बचाकर नहीं रख पाए. एकनाथ शिंदे ने बीजेपी के साथ मिलकर उद्धव ठाकरे की सारी सियासत खत्म कर दी है. पहले विधानसभा की सियासी बाजी अपने नाम की और अब नगर परिषद व नगर पंचायत के चुनाव जीतकर उद्धव के लिए सियासी संकट खड़ा कर दिया है.

महाराष्ट्र के 246 नगर परिषद और 42 नगर पंचायत के लिए हुए चुनाव में 70 प्रतिशत से अधिक नगर अध्यक्ष बीजेपी के नेतृत्व वाले महायुति के जीतकर आए हैं. उद्धव ठाकरे की शिवसेना सिंगल डिजिट में सीमित रह गई तो राज ठाकरे की पार्टी का खाता नहीं खुला.

अब बीएमसी सहित 29 नगर निगम का चुनाव 'ठाकरे ब्रांड' का फाइनल इम्तिहान उद्धव के लिए बन गया है. मुंबई के बीएमसी पर ठाकरे परिवार का करीब 30 साल कब्जा है, जिसको बचाने के लिए 20 साल का सियासी दुश्मनी को भुलाकर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने हाथ मिलाया है, लेकिन अभी फाइनल मुहर नहीं लगी. दोनों दलों के बीच कुछ सीटों को लेकर मामला फंसा हुआ है. 

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बीएमसी चुनाव के लिए नामांकन शुरू

बीएमसी सहित राज्य की 29 नगर निगम चुनाव के लिए मंगलवार से अधिसूचना जारी हो रही जिसके साथ नामांकन पत्र भरने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. नामांकन पत्र भरने की अंतिम तारीख 30 दिसंबर है. इसके बाद 31 दिसंबर को नामांकन पत्रों की जांच होगी जबकि 2 जनवरी 2026 तक नाम वापस लेने की अंतिम तारीख है. इसके बाद चुनाव चिन्ह का आवंटन किया जाएगा.

यह भी पढ़ें: उद्धव ठाकरे और राज की पार्टियों के गठबंधन का ऐलान आखिरी वक्त पर टला, कहां फंसा पेच?

महाराष्ट्र में बीएमसी सहित सभी 29 नगर निगम के कुल 2869 पार्षद सीटों पर 15 जनवरी को मतदान होगा जबकि नतीजे 16 जनवरी को आएंगे. बीएमसी के अलावा, जिन नगर निगम में चुनाव है, उसमें नवी मुंबई, ठाणे, पुणे, नासिक, नागपुर, छत्रपति संभाजीनगर, वसई-विरार, कल्याण-डोंबिवली, कोल्हापुर, उल्हासनगर, पिंपरी-चिंचवड, सोलापुर, अमरावती, अकोला, लातूर, परभणी, चंद्रपुर, भिवंडी-निजामपुर, मालेगांव, पनवेल, मीरा-भायंदर, नांदेड़-वाघाला, सांगली-मिराज, कुपवाड, जलगांव, धुले, अहिल्यानगर, इचलकरंजी और जालना शामिल हैं.

'ठाकरे ब्रदर्स' के बीच गठबंधन पर सस्पेंस

बीजेपी ने बीएमसी और बाकी के नगर निगम चुनाव एकनाथ शिंदे की शिवसेना के साथ मिलकर लड़ने का फैसला किया है. बीजेपी ने अजित पवार के साथ 'फ्रेंडली फाइट' करने की प्लानिंग की है. महायुति की रणनीति को देखते हुए 'ठाकरे ब्रदर्स' ने 20 साल पुरानी राजनीतिक रंजिश को भुलाकर एक साथ आने का फैसला किया ताकि बीजेपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना की जोड़ी से दो-दो हाथ कर सकें.

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उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच बीएमसी सहित राज्य के बाकी नगर निगम चुनाव के लिए सीटों का बंटवारे पर सहमति बन गई थी. ऐसे में मंगलवार को शिवसेना (यूबीटी) और मनसे के गठबंधन का औपचारिक ऐलान होना था, लेकिन कुछ सीट पर कशमकश की स्थिति बनी हुई है. 

शिवसेना (यूबीटी) और मनसे के बीच गठबंधन का आधिकारिक ऐलान वर्ली स्थित एनएससीआई डोम में संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए किए जाने की संभावना खी. इसे शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा थे, लेकिन अचानक कैंसिल हो गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि प्रेस कॉफ्रेंस को टालना पड़ा.

क्यों उद्धव-राज की प्रेस कॉफ्रेंस टालना पड़ा

एमएनएस नेता नितिन सरदेसाई और बाला नांदगांवकर सोमवार देर शाम ‘मातोश्री’ पहुंचे, जहां उद्धव ठाकरे से मुलाकात कर गठबंधन को अंतिम रूप दिया गया. बताया जा रहा है कि बीएमसी की कुल 227 सीटों में से शिवसेना (यूबीटी) 150 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

वहीं, राज ठाकरे की एमएनएस 60 से 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. इसके अलावा बची सीटें एनसीपी (शरदचंद्र पवार गुट) और अन्य छोटे सहयोगी दलों को दिए जाने की संभावना है.  इस तरह सीट शेयरिंग का फॉर्मूला बन रहा था, लेकिन कुछ सीट पर मामला फंस गया गया. 

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शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत ने कहा कि  मनसे और शिवसेना( UBT) के कार्यकर्ता पहले से ही साथ काम कर रहे हैं और गठबंधन से उनमें उत्साह भी है. गठबंधन पहले से ही है, लेकिन कुछ सीटों के बंटवारे पर बातचीत चल रही है. यही वजह है कि प्रेस कॉफ्रेंस टल गई है, जिसका फैसला उद्धव और राज ठाकरे खुद लेंगे. 

राज और उद्धव ठाकरे की दोस्ती पर सस्पेंस?

संजय राउत ने बताया क नासिक नगर निगम की सीट बंटवारे पर फैसला अटका हुआ है, पुणे, कल्याण डोंबिवली, ठाणे, मीरा भायंदर सीट बंटवारा हो गया है. हमें पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाओं को समझना होगा, पार्षद इधर-उधर चले गए हैं, इसलिए यह अभी भी प्रक्रिया में है. नामांकन के लिए फॉर्म-बी का वितरण शुरू हो गया है.

राउत  ने कहा कि एकनाथ शिंदे, अजीत पवार और बीजेपी के बीच भी सीट बंटवारे की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन हम उनसे काफी आगे हैं. हमें सीट बंटवारे को लेकर कोई दिक्कत नहीं है. मुंबई में किसी खास इलाके को लेकर कोई भी दिक्कत नहीं है, जैसा कहा जा रहा है. 

उन्होंने कहा कि चाहे वह इलाका उनके पास जाए या हमारे पास,  मुद्दा यह है कि वह मराठी मानुष के पास जाना चाहिए. जब घोषणा होगी तो सब बात सामने आ जाएगी. हम आपके (मीडिया) के हिसाब से घोषणा नहीं करते. हम जब चाहेंगे तब घोषणा करेंगे. हमारे सभी कार्यकर्ताओं को पता है इसलिए आप उनके बारे में चिंता न करें.

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कांग्रेस को साधने में जुटे संजय राउत

महायुति के नगर परिषद और नगर पंचायत चुनाव में प्रदर्शन को देकते हुए उद्धव ठाकरे की शिवसेना अपना आखिरी किला बचाए रखने की हरसंभव कवायद में जुट गई है. एक तरफ राज ठाकरे के साथ हाथ मिलाने की प्लानिंग है तो दूसरी तरफ कांग्रेस को साथ लेने की कोशिश तेज कर दी है. शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने सोमवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी से फोन पर बात की और आगामी बीएमसी चुनावों के लिए संयुक्त रणनीति पर चर्चा की.

संजय राउत लगातार राहुल गांधी के संपर्क में भी हैं, ताकि कांग्रेस को महा विकास आघाड़ी में बनाए रखा जा सके. शरद पवार की एनसीपी (एसपी) भी सभी दलों को एकजुट रखने के लिए सक्रिय मध्यस्थता कर रही है. विपक्षी गठबंधन में शामिल दलों का मानना है कि एकजुट रहकर ही महायुति को चुनौती दी जा सकती है.

हालांकि, संजय राउत की असल चुनौती राज ठाकरे की मनसे के साथ कांग्रेस के साथ संबंधों को संतुलित करने की है. कांग्रेस ने राज ठाकरे के साथ मंच साझा करने से साफ इनकार किया है, क्योंकि मनसे की उत्तर भारतीयों और मुस्लिमों के खिलाफ आक्रामक छवि कांग्रेस के वैचारिक आधार से टकराती है.

संजय राउत ने कहा कि कांग्रेस महाराष्ट्र में क्या बीजेपी की मदद करेगी, यह सीधा सवाल है. कांग्रेस की लड़ाई उन लोगों के खिलाफ है, जो महाराष्ट्र को लूट रहे हैं. कांग्रेस ने हाल के चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया और हमने उन्हें बधाई दी है. अगर हमें कहीं कांग्रेस की मदद की जरूरत होगी तो हम निश्चित रूप से उनसे मदद का अनुरोध करेंगे. लेकिन शिवसेना और एमएनएस गठबंधन निश्चित रूप से 100 का आंकड़ा पार करेगा.

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उद्धव के लिए आखिरी किला बचाने का चैलेंज

महाराष्ट्र की राजनीति में बीएमसी का नियंत्रण राज्य की सत्ता के समान माना जाता है. बीजेपी की पूरी कोशिश बीएमसी से ठाकरे परिवार के वर्चस्व को खत्म करना चाहती है, जबकि उद्धव ठाकरे के लिए यह चुनाव अपनी साख बचाने का आखिरी मौका है. महाराष्ट्र में पिछले पांच सालों के सियासी संग्राम में सबसे ज्यादा नुकसान तो ब्रांड ठाकरे को हुआ है, जिसके चलते उद्धव ठाकरे की पूरी सियासत हाशिए पर पहुंच गई है.

उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे मराठी वोट बैंक को एकजुट करने और वोटों के बंटवारे को रोकने के लिए एकसाथ आए हैं, ताकि इसका फायदा सत्ताधारी महायुति के गठबंधन को न मिले. वहीं, बीजेपी ने महाराष्ट्र की सत्ता अपने नाम करने और नगर निकाय चुनाव जीतने के बाद अब मुंबई की सियासत पर अपना दबदबा बनाए रखने की कवायद में है. बीएमसी पर उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) का प्रभाव है, जिसे सिर्फ कमजोर करने की नहीं बल्कि उसे अपने नाम करनी कवायद सीएम फडणवीस कर रहे हैं.

ठाकरे ब्रांड को बचाने में जुटी उद्धव टीम

पहले विधानसभा और निकाय चुनाव नतीजे से महाराष्ट्र सियासी पूरी तरह से समीकरण बदल गए हैं और उद्धव ठाकरे के लिए अपने आखिरी किले बीएमसी को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है. महाराष्ट्र की सियासत यह बात इसलिए कही जा रही है कि विधानसभा चुनाव के बाद से महाराष्ट्र में ‘ब्रांड ठाकरे के सियासी अस्तित्व पर सवाल उठने लगे हैं. इसके पीछे वजह यह है कि उद्धव की अगुवाई वाली शिवसेना और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का लगातार खराब प्रदर्शन रहा है.

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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राज ठाकरे के अगुवाई वाली एमएनएस और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) के बीच आगामी नगर निगम चुनावों, खासतौर पर आर्थिक रूप से समृद्ध बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनावों को ध्यान में रखते हुए आपसी मतभेद खत्म करने की संभावना बन सकती है.

ब्रांड ठाकरे को तो इस एकता को अगस्त में ही झटका लग चुका है, जब मुंबई बेस्ट कर्मचारी कोआपरेटिव क्रेडिट सोसायटी के चुनाव में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) और शिवसेना (यूबीटी) के संयुक्त पैनल को भाजपा के सामने मुंह की खानी पड़ी थी, उसके विरुद्ध भाजपा समर्थित पैनल ने सभी 21 सीटें जीतकर ‘ब्रांड ठाकरे’ की हवा निकाल दी थी. इसके बाद अब दोबारा से साथ आए हैं, क्योंकि अब बारी अपने आखिरी किला बचाने की नहीं बल्कि ठाकरे ब्रांड को बचाने का आखिरी मौका है.

मुंबई पर बीजेपी की बनती पकड़

ठाकरे परिवार का किसी समय मुंबई पर जबरदस्त पकड़ थी, लेकिन 2014 से उसकी स्थिति कमजोर हुई है. बीजेपी ने अपनी राजनीतिक पकड़ मुंबई पर बनाने में सफल भी रही है. 2017 के बीएमसी चुनाव में शिवसेना-बीजेपी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था, जिससे उद्धव ठाकरे को नुकसान और बीजेपी को लाभ हुआ था. बीएमसी की 227 सीट में शिवसेना को 84 सीटें और बीजेपी ने 82 सीटों पर कब्जा जमाया था. इसके बाद 2024 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी मुंबई क्षेत्र में जबरदस्त जीत दर्ज करने में कामयाब रही है. अब शिंदे के साथ मिलकर बीएमसी पर कब्जा जमाने का प्लान बनाया है, जिसके लिए बीएमसी की 150 सीटें जीतने का टारगेट रखा है.

उद्धव की सियासत का आखिरी मौका

बीएमसी पर उद्धव का एकक्षत्र राज बीएमसी की सत्ता साढ़े तीन दशक से उद्धव ठाकरे की शिवसेना के हाथों है. महाराष्ट्र की सत्ता बदलती रही, लेकिन मुंबई की राजनीति पर उद्धव का कब्जा बरकरार रहा. 1996 से लेकर 2022 तक शिवसेना (यूबीटी) का मेयर चुना जाता रहा. इसकी वजह यह रही कि शिवसेना की सियासत मुंबई से शुरू हुई और सियासी आधार भी यहीं पर है. उद्धव ठाकरे के लिए बीएमसी (BMC) चुनाव जीतना केवल एक नगर निकाय का चुनाव नहीं, बल्कि उनके लिए राजनीतिक अस्तित्व और विरासत की सबसे बड़ी लड़ाई है.

बीएमसी का बजट भारत के कई छोटे राज्यों के कुल बजट से भी अधिक है. बजट 2025-26: बीएमसी का अनुमानित बजट लगभग 74,427 करोड़ रुपये से अधिक है. ऐसे में बीएमसी की वित्तीय शक्ति शिवसेना को अपने जमीनी नेटवर्क (शाखाओं) को चलाने और चुनावी मशीनरी को मजबूत बनाए रखने में मदद करती रही है. यही नहीं शिवसेना की पूरी राजनीति मुंबई और मराठी अस्मिता के इर्द-गिर्द घूमती है.

मुंबई को 'ठाकरे परिवार का किला' माना जाता है. बाल ठाकरे के विरासत बचाने की जंग बाल ठाकरे ने जिस शिवसेना को खड़ा किया, उसका शक्ति केंद्र हमेशा मुंबई रहा है. उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र की सत्ता से बेदखल होने के चलते शिवसेना के लोगों का मनोबल गिरा हुआ है. सत्ता अपने आप में एक अलग ऊर्जा और उत्साह देती है, जो बीजेपी के नेताओं में दिख रहा है. ऐसे में उद्धव ठाकरे ने अपने चचेरे भाई राज ठाकरे के साथ हाथ मिला लिया है. यह 'विरासत' को बचाने की आखिरी कोशिश मानी जा रही है. ऐ्से में देखना है कि कितना सफल होते हैं?

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