मध्य प्रदेश में होने वाले पंचायत चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई जिसमें यहां होने वाले चुनाव पर स्टे लगा दिया गया है. महाराष्ट्र स्थानीय निकाय चुनाव पर आदेश के कुछ दिनों बाद, अब सुप्रीम कोर्ट ने एमपी पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश में स्पष्ट हैं कि 27% ओबीसी आरक्षण की अनुमति नहीं दी जा सकती है. इस मामले में अब अगले साल 27 जनवरी को होगी.
ओबीसी के लिए आरक्षण पर विचार, जनसंख्या के आंकड़े एकत्र करने के बाद ही हो सकेगा. वहीं जानकारी के मुताबिक पंचायत चुनाव में "ओबीसी के लिए आरक्षित" के रूप में अधिसूचित सीटों पर सामान्य वर्ग के रूप में चुनाव लड़ा जाएगा. कोर्ट का कहना है कि अगर असंवैधानिक तरीके से चुनाव कराए जाते हैं तो सुप्रीम कोर्ट इन्हें रद्द भी कर सकता है. स्थानीय निकाय पदों में ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर अब 27 जनवरी को सुनवाई होगी.
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ओर से 9 दिसंबर को पंचायत चुनाव प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार के बाद कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी. दरअसल, शिवराज सरकार ने 2019-20 में पंचायत चुनाव का आरक्षण निर्धारित कर दिया था. अधिसूचना भी जारी हो गई थी. इस पुरानी अधिसूचना को निरस्त किए बिना ही शिवराज सरकार ने नई अधिसूचना जारी कर दी.
मध्यप्रदेश सरकार ने 21 नवंबर को आगामी पंचायत चुनाव 2014 के आरक्षण रोस्टर के आधार पर कराने का ऐलान किया था. इसी को लेकर कांग्रेस ने पंचायत चुनाव पर अंतरिम रोक लगाने की मांग करते हुए याचिका दायर की है.
पंचायत चुनाव के लिए करीब 3 करोड़ 92 लाख से ज्यादा मतदाता
राज्य निर्वाचन आयोग के मुताबिक, मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव के लिए करीब 3 करोड़ 92 लाख से ज्यादा मतदाता हैं. इनमें से 2 करोड़ 2 लाख 30 हज़ार पुरुष मतदाता हैं तो महिला मतदाताओं की संख्या 1 करोड़ 90 लाख 20 हज़ार हैं. प्रदेश में पंचायत चुनाव की घोषणा होते ही राजनीतिक पार्टियों की सक्रियता भी नजर आने लगी है. यह चुनाव राजनीतिक पार्टियों के लिए खास माने जाते हैं. हालांकि कोई भी पार्टी सीधे तौर पर यह चुनाव नहीं लड़ती, लेकिन समर्थित कैंडिडेट के माध्यम से पार्टियों के लिए खास महत्व रहता है.
अनीषा माथुर