ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान की गोलाबारी से प्रभावित इलाकों में रहने वाले हजारों लोगों के जीवन में भारतीय सेना के डॉक्टरों ने आंखों की रोशनी लौटाई है. कमांड हॉस्पिटल नॉर्दर्न कमांड उधमपुर में आयोजित सर्जिकल आई कैंप में 1500 से ज्यादा लोगों की स्क्रीनिंग की गई और 2000 से ज्यादा सर्जरी पूरी की गईं, जिसमें सैकड़ों बुजुर्ग, युद्ध नायिकाएं (वीर नारियां), सैनिकों के परिवार और सीमावर्ती गांवों के नागरिक शामिल रहे.
दरअसल, जम्मू-कश्मीर के ऊबड़-खाबड़ इलाके में स्थित बॉर्डर पर रहने वाले लोगों के लिए अंधकार से भरी जिंदगी एक मजबूरी बन चुकी थी. गोलाबारी, डर और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के बीच उनकी दुनिया धीरे-धीरे धुंधली पड़ने लगी थी. इसी जरूरत को देखते हुए कमांड हॉस्पिटल नॉर्दर्न कमांड उधमपुर में बड़े पैमाने पर एडवांस्ड सर्जिकल आई कैंप आयोजित किया, जो स्वास्थ्य सेवा नहीं, बल्कि मानवता का ऐतिहासिक अभियान बन गया.
1500 लोगों की स्क्रीनिंग, सैकड़ों गांवों से पहुंचे मरीज
इस एडवांस्ड आई कैंप में कुल 1500 लोगों की स्क्रीनिंग की गई, जिनमें सैनिक, उनके परिवार, वीर नारियां और बड़ी संख्या में स्थानीय नागरिक शामिल हुए. जम्मू-कश्मीर के दुर्गम इलाके पुंछ, राजौरी, रियासी, रामबन, किश्तवाड़, डोडा, जम्मू और उधमपुर जैसे क्षेत्रों से मरीजों को लाने में सेना की मेडिकल टीमों ने बड़ा योगदान दिया. इस पूरी कवायद को कमांडेंट मेजर जनरल संजय शर्मा की अगुवाई में पूरा किया गया.
विश्वस्तरीय तकनीक, जटिल सर्जरियों में सफलता
कैंप की सबसे बड़ी उपलब्धि रही- विश्वस्तरीय, अत्याधुनिक नेत्र चिकित्सा उपकरणों की तैनाती, जिनकी मदद से कैटरेक्ट (मोतियाबिंद) रेटिना, विट्रियस, ग्लूकोमा जैसी जटिल सर्जरियां सफलतापूर्वक की गईं.
पुंछ के 72 वर्षीय सुरिंदर सिंह की कहानी...
पुंछ के 72 वर्षीय सुरिंदर सिंह की कहानी इस मिशन की आत्मा जैसी है. वे 2-3 साल से अंधेपन से जूझ रहे थे और ऑपरेशन सिंदूर में अपने पड़ोसियों को खोने का दर्द भी झेल चुके थे. लेकिन सर्जरी के बाद मिली रोशनी ने उन्हें सिर्फ देखने की ताकत ही नहीं दी, बल्कि वह खुद आगे बढ़कर अपने इलाके के दुख झेल रहे लोगों को कैंप तक लाने के लिए प्रेरित करने लगे.
मेंढ़र के अब्दुल्ला शफीक...
56 वर्षीय सेवानिवृत्त सैनिक अब्दुल्ला शफीक मेंढ़र में रहते हैं. उन्होंने भी इस कैंप के लिए बड़ी भूमिका निभाई. उन्होंने सीमाई गांवों में कैंप की जानकारी फैलाने और मरीजों को लाने में अहम योगदान दिया.
96 वर्षीय राजकुमारी देवी ने फिर देखा उजाला
कैंप का सबसे भावनात्मक क्षण रहा- 96 वर्षीय राजकुमारी देवी की सफल सर्जरी. चारों ओर फैले धुंधलके के बाद उन्हें फिर से साफ दृष्टि मिली. उनकी मुस्कान इस मिशन का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम बन गई.
यह मिशन कैसे शुरू हुआ?
इस बड़े मेडिकल अभियान की नींव रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की साझा पहल से रखी गई. सिन्हा के अनुरोध पर राजनाथ सिंह ने सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी को निर्देश दिया कि उधमपुर ऑपरेशनल एरिया में तत्काल इस एडवांस्ड नेत्र चिकित्सा शिविर का आयोजन हो. इसके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी लेफ्टिनेंट जनरल प्रतीक शर्मा, उत्तरी कमान प्रमुख को सौंपी गई, जो पूरे मिशन की निगरानी करते रहे.
ऑपरेशन सद्भावना की भावना
भारतीय सेना लंबे समय से ऑपरेशन सद्भावना के तहत सीमावर्ती इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएँ पहुंचाती रही है. इस मिशन के केंद्र में करुणा, संवेदना और देश के प्रति अटूट प्रतिबद्धता की भावना रही.
सेना प्रमुख ने गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए DGAFMS सर्ज वाइस एडमिरल आरती सरिन और DGMS आर्मी लेफ्टिनेंट जनरल सी.जी. मुरलीधरन को भी इस कैंप की ऑपरेशनल प्लानिंग की कमान दी.
ब्रिगेडियर संजय कुमार मिश्रा के हाथों में थी कमान
इस विशाल कैंप की कमान ब्रिगेडियर संजय कुमार मिश्रा के हाथों में थी. जो दुनिया में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले सबसे प्रतिष्ठित नेत्र-शल्य चिकित्सकों में गिने जाते हैं. वे आर्मी मेडिकल कॉर्प्स के सबसे ज्यादा सम्मानित अधिकारी हैं और दो कार्यरत भारतीय राष्ट्रपतियों की भी सर्जरी कर चुके हैं.
उनकी अगुवाई में 400 से अधिक जटिल सर्जरियां की गईं. कैटरेक्ट, ग्लूकोमा और रेटिना संबंधी कई दुर्लभ प्रक्रियाएं भी शामिल थीं. यह सब आर्मी हॉस्पिटल (R&R) के विशेषज्ञ डॉक्टरों और पैरामेडिकल टीम के सहयोग से संभव हुआ.
देहरादून से जयपुर, बागडोगरा तक... देशभर में फैला शिविर
यह सर्जिकल मिशन सिर्फ उधमपुर तक ही सीमित नहीं रहा. टीमें लगातार देहरादून, जयपुर, बागडोगरा, जम्मू के दूरदराज गांवों तक जाती रहीं, और कुल 2000 से ज्यादा सर्जरियां की गईं.
हजारों किलोमीटर की दूरी, अत्याधुनिक उपकरणों का बार-बार स्थानांतरण, सीमित बिजली, कठिन रास्ते, साधारण कम्युनिटी हॉल को OT में बदलने की चुनौती... इन सबके बावजूद सेना की मेडिकल टीम ने अदम्य साहस के साथ यह मिशन पूरा किया. प्रत्येक मरीज के लिए पोस्ट-ऑप फॉलोअप सुनिश्चित करना भी बड़ी चुनौती थी, जिसे टीमों ने बखूबी निभाया.
aajtak.in