संपूर्ण आंदोलन के नेता जयप्रकाश नारायण की जन्मस्थली सिताबदियारा का अस्तित्व मिटने की कगार पर है. सरयू नदी के लगातार हो रहे कटाव के बाद एक से एक पक्के मकान नदी में विलीन हो रहे हैं. जेपी के जन्मस्थली पर उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा है यानी इस गांव की जिम्मेदारी दोनों राज्यों पर है, लेकिन कटाव रोकने के तमाम दावे खोखले साबित हो रहे हैं.
विफल हो रहे सरकारी प्रयास
सिताबदियारा गांव के कटाव पीड़ितों का हाल लेने कोई भी वरिष्ठ अधिकारी या राजनेता नहीं पहुंचा. पिछले कई वर्षों से सिताबदियारा में लगातार हो रहे कटाव के मद्देनजर सरकार के पास कोई स्थाई निदान नहीं है. हर साल बाढ़ और कटाव को रोकने के नाम पर करोड़ों रुपये सरकारी लूट-खसोट की भेंट चढ़ जाते हैं. सारे सरकारी प्रयास कटाव को रोकने में पूरी तरह नाकाम रहे हैं.
जब दौरे पर आए बिहार और यूपी के मुखिया
बिहार और उत्तर प्रदेश के मुखिया भी कई बार इस क्षेत्र में दौरा भी कर चुके हैं. उन्होंने भी हर हाल में सिताबदियारा को कटाव से बचाने का संकल्प लेते हुए तमाम उपाय करने का आदेश दिया, लेकिन हर साल प्यास लगने पर कच्चा कुआं खोदने की कार्यशैली इस गांव पर भारी पड़ रही है. स्थानीय निवासियों का कहना है कि मिट्टी का काम करने से कटाव कभी नहीं रुक सकता. स्थाई रूप से बोल्डर के द्वारा बांध बनाकर ही इस गांव को कटाव से बचाया जा सकता है.
राजीव प्रताप रूडी का गोद लिया गांव
सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी ने इस गांव को प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर गोद लिया. तब स्थानीय लोग काफी खुश थे, लोगों को लगा कि अब गांव की सूरत और सीरत दोनों बदलेगी और कटाव की समस्या का स्थाई निदान हो जाएगा. गांव को गोद लिए करीब तीन साल बीत चुके हैं, लेकिन गांव अभी तक गोद में ही है.
जेपी के घर में म्यूजियम
ग्रामीणों का कहना है कि जितने दावे किए गए थे, उसका बस 30 से 40 प्रतिशत ही काम नजर आ रहा है. अभी कुछ दिन पहले जयप्रकाश जी के नव निर्मित ट्रस्ट पर सिर्फ 5 मिनट के लिए रूडी आए, लेकिन कटाव स्थल पर नहीं गए. रूडी आश्वासन देकर गए कि वे जल्द ही पूरी टीम लेकर आएंगा, लेकिन अभी तक नहीं आए. केंद्र सरकार और राज्य सरकार के प्रयास से जयप्रकाश नारायण की याद में उनके पारिवारिक घर में करोड़ों की लागत का म्यूजियम बनाया जा रहा है और लाइब्रेरी का भी निर्माण किया गया है. इन दोनों के निर्माण में करोड़ों रुपये लग रहे हैं.
सरकार से उम्मीद पर कायम हैं ग्रामीण
सबसे बड़ी विडंबना है कि हर साल इस जगह पर बाढ़ का पानी कम से कम 6 से 8 फिट तक भर जाता है. उससे बड़ी बात यह है कि जिस नदी का तट आज से पहले 2009 में तकरीबन 5 किलोमीटर की दूरी पर था, वो आज की तारीख में कटाव के कारण महज 400 मीटर की दूरी पर है. ग्रामीणों को डर है कि जिस तरह कटाव इस तरफ बढ़ रही है, नए निर्माण भी कटाव की भेंट ना चढ़ जाए. इसके बावजूद ग्रामीणों को सरकार पर भरोसा है कि सरकार चाहे तो इस गांव लाला टोला को बचा सकती है.
सुजीत झा / सुरभि गुप्ता