क्या लैब में बैठकर भूकंप लाया जा सकता है, क्या है सिस्मिक वेपन थ्योरी, जिसपर दशकों से जारी खुफिया रिसर्च?

पिछले कुछ दिनों में पाकिस्तान में भूकंप के कई झटके आ चुके. अब तुर्की और चीन में भी हल्का कंपन महसूस हो रहा है. ये वही देश हैं, जिन्होंने आतंक के खिलाफ भारत की लड़ाई में इस्लामाबाद का साथ दिया. इन झटकों को कर्मा और कुदरत का कहर बताते हुए हंसी-मजाक चल रहे हैं. इस बीच सिस्मिक वेपन थ्योरी भी चर्चा में है.

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गैरकुदरती ढंग से धरती की टेक्टॉनिक प्लेट्स में हलचल पर प्रयोग होते रहे. (Photo- Getty Images) गैरकुदरती ढंग से धरती की टेक्टॉनिक प्लेट्स में हलचल पर प्रयोग होते रहे. (Photo- Getty Images)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 16 मई 2025,
  • अपडेटेड 2:10 PM IST

इन दिनों कई एशियाई देशों में भूकंप के हल्के झटके लगातार आ रहे हैं. संयोग से ये सभी पाकिस्तान समेत वो तमाम देश हैं, जो भारत के खिलाफ हैं. पाकिस्तान का बलूचिस्तान और चीन का शिनजियांग इलाका दोनों ही रणनीतिक रूप से संवेदनशील हैं. ऐसे में, एक के बाद एक इन इलाकों में भूकंप के बीच सिस्मिक वेपन थ्योरी सिर उठा रही है. इस थ्योरी के मुताबिक, कई देश इसपर काम कर रहे हैं कि वे भूकंप को एक हथियार की तरह दुश्मन पर आजमा सकें.

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क्या मतलब है इस थ्योरी से

सिस्मिक वेपन थ्योरी कहती है कि तकनीक के जरिए इंसान इतना आगे निकल सकते हैं कि वे भूकंप को भी दुश्मन पर आजमा सकें. इससे इसका सबसे चर्चित संदर्भ है- हार्प (हाई फ्रीक्वेंसी एक्टिव ऑरोरल रिसर्च प्रोग्राम) जिसे अमेरिका ने साल 1993 में शुरू किया था. अलास्का में अमेरिकी एयरफोर्स, यूनिवर्सिटी ऑफ अलास्का और डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी ने मिलकर हार्प को खड़ा किया. इसका मकसद था, आयनोस्फियर यानी वायुमंडल के ऊपरी हिस्से को स्टडी करना. बता दें कि ये हिस्सा सैटेलाइट कम्युनिकेशन के लिए काफी अहम है. 

मिलिट्री फंडिंग की वजह से बढ़ा शक

वैसे तो हार्प के बारे में शुरुआत से ही सार्वजनिक जानकारी दी गई लेकिन इसपर शक तक शुरू हुआ, जबकि इसमें भारी मिलिट्री फंडिंग का खुलासा हुआ. पहले सिर्फ यूनिवर्सिटी ऑफ अलास्का के ही प्रयोग करने की बात थी. इसके बहुत से दस्तावेज क्लासिफाइड थे, जिससे शक और गहराया. सबसे बड़ा आरोप यही रहा कि हार्प कृत्रिम तरीके से भूकंप पैदा कर सकता है. साल 2010 में हैती में आए भूकंप ने तबाही मचा दी थी. तब वहां के राष्ट्रपति ह्यूगो चावेज ने आरोप लगाया कि अमेरिका उनके देश को अपने प्रयोग के लिए इस्तेमाल कर रहा है. कई ईरानी नेताओं ने भी दावा किया कि हार्प के जरिए वॉशिंगटन धरती में हलचल पैदा कर रहा है. वेनेजुएला ने भी मिलते-जुलते आरोप लगाए. 

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सिस्मिक हथियार की थ्योरी क्या कहती है 

इस थ्योरी का समर्थन करने वाले वैज्ञानिकों का मानना है कि हाई फ्रीक्वेंसी वाली रेडियो वेव्स या गहरी खुदाई के जरिए धरती की टेक्टॉनिक प्लेट्स में हलचल लाई जा सकती है. अगर धरती की फॉल्ट लाइन यानी प्लेट्स की दरारों को टारगेट किया जाए तो आर्टिफिशियल भूकंप लाना मुमकिन है. लेकिन फिलहाल हम माइक्रो सिस्मिक एक्टिविटी ही कर सकते हैं, मतलब छोटा-मोटा कंपन लाना. भूकंप को गैर-कुदरती तौर पर पैदा कर सकना फिलहाल हमारे बूते की बात नहीं. हालांकि ये भी सच है कि अमेरिका और रूस जैसे देश वेदर वेपन पर सोचते जरूर रहे. 

फिर भी संदेह क्यों उठता है

जब किसी खास जगह या खास परिस्थिति के दौरान बार-बार भूकंप आने लगे तो सवाल जरूर उठते हैं. मसलन, पाकिस्तान में हाल में कई आतंकी ठिकाने बर्बाद हुए. बलूचिस्तान में अलगाववादी एक्टिविटी तेज है. दूसरी तरफ चीन में शिनजिंयाग और तिब्बत को लेकर सरकार पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप रहे. ऐसे में भूकंप को मजाक-मजाक में ही वेपन थ्योरी से जोड़ दिया जाता है. 

दक्षिण और पूर्वी एशिया में बार-बार भूकंप क्यों

- भारत, पाकिस्तान, चीन, नेपाल और अफगानिस्तान जिस भू-भाग में हैं, वह हिमालयन टेक्टॉनिक बेल्ट में आता है.

- यहां इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट और यूरेशियन प्लेट एक-दूसरे से टकरा रही हैं. 

- ये टक्कर करोड़ों सालों से जारी है और इसी वजह से हिमालयन रेंज बनी. 

-  प्लेट्स अब भी स्थिर नहीं हैं और टकराव की वजह से बार-बार भूकंप आता है. 

- लगातार भूकंप के हल्के झटके आना संकेत हो सकता है कि जल्द ही बड़ी कुदरती आपदा आ सकती है. 

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क्या भूकंप के अलावा दूसरी आपदाएं पैदा की जा सकती हैं

हां. वेदर को हथियार बनाया जा सकता है और इसकी आशंका काफी पहले ही होने लगी थी. तभी साल 1977 में एनवायरमेंटल मॉडिफिकेशन कन्वेंशन में ENMOD ट्रीटी साइन की गई. इसके तहत किसी भी देश को मौसम या पर्यावरण को युद्ध में हथियार की तरह इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं है. यानी तब भी ऐसी तकनीकें थीं, या उनपर काम चल रहा था, तभी ये संदेह जताया गया और रोकने की कोशिश हुई.

अमेरिका ने खुद माना कि उसने वियतनाम से लड़ाई के दौरान भारी बारिश करवाई ताकि सेना परेशान हो जाए. उसने घनों जंगलों से रसद और हथियार के गुजरने का सारा रास्ता दलदली बना दिया. इसे ऑपरेशन पोपोए कहा गया था, जिसकी वजह से काफी मौतें हुई थीं. 

कई और कुदरती आपदाओं पर भी इंसान कंट्रोल पाने की कोशिश में है, लेकिन खुद को बचाने के लिए नहीं, बल्कि दुश्मन को तबाह करने के लिए. मसलन, अमेरिका ने प्रोजेक्ट स्टॉर्मफरी के जरिए तूफानों की दिशा और गति पर काबू करना चाहा, लेकिन प्रयोग खास सफल नहीं हो सका. कई देश एंटी-हेल रॉकेट्स पर काम कर रहे हैं, जिससे ओला गिरना रोका या कम किया जा सके. 

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