कहते हैं जिंदगी में आपने जो पाया है वो एक दिन जाकर खत्म हो जाता है. रह जाती हैं तो बस यादें. यहीं यादें आपकी बाकी की जिंदगी आपका साथ देती हैं. आपके अपनों से जुड़ी यादें. अतीत से जुड़ीं यादें. जो कभी आपको अकेला महसूस नहीं होने देतीं. जिनकी वजह से वो लोग हमेशा आपके साथ होते हैं, जिन्हें आप सालों पहले अलविदा कह चुके हैं. वो जिंदगी जो आप जी चुके हो, या फिर जीने की हिम्मत करने के बावजूद हाथ खींचकर वापस आ चुके हो. वो यादें जिनमें प्यार है, अपनापन और नाराजगी भी है. ऐसी ही कुछ यादों और जज़्बातों से मिलकर बनी है शर्मिला टैगोर और मनोज बाजपेयी स्टारर फिल्म गुलमोहर.
एक सिंपल लेकिन गहरी कहानी जो आपको बताती है कि हर इंसान अपने अंदर एक दुनिया लिए घूमता है. जब आप अपना कुछ खोते हो, तो उससे कुछ बेहतर पा भी लेते हो. जब किसी से प्यार करते हो, तो उसके साथ रहने और उसका साथ देने की हिम्मत भी करनी ही होती है. आपके मां-बाप आपके लिए इसलिए सबकुछ नहीं करते, क्योंकि आप निकम्मे या नाकामयाब हो, बल्कि इसलिए करते हैं क्योंकि वो आपकी जिंदगी के बड़े लम्हों का हिस्सा बनना चाहते हैं. और आपने जो खो दिया, उसे वापस पाने का कोई रास्ता ना भी हो, तो ऐसा क्यों हुआ उसे समझ लेना ही जरूरी होता है. बस ऐसी ही कुछ चीजों से मिलकर बनी है फिल्म गुलमोहर.
फिल्म की शुरुआत होती है बत्रा परिवार के बंगले गुलमोहर विला 1 से, जहां पार्टी चल रही है. बत्रा परिवार अगले ही दिन अपने इस 34 साल पुराने घर को खाली करने वाला है. सभी के लिए होटल बुक हैं. अरुण बत्रा (मनोज बाजपेयी) का बेटा आदित्य (सूरज शर्मा) परिवार से अलग किराए के मकान में रहने की तैयारी कर रहा है. इस बीच घर की मुखिया कुसुम बत्रा (शर्मिला टैगोर) ऐलान करती हैं कि उन्होंने पुदुचेरी में एक छोटा अपार्टमेंट लिया है और वो वहीं रहेंगी.
अरुण नहीं चाहता कि उसका परिवार टूटे और घर के सदस्य अलग रहें. वो डरता है कि अगर वो अपने घरवालों से अलग हुआ तो लोग उसे भूल जाएंगे. अरुण का बेटा आदित्य अपना स्टार्टअप शुरू करने की कोशिश कर रहा है. लेकिन इसमें उसे ढेरों दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. इसी के चलते उसके पिता संग उसके रिश्ते खराब और बीवी संग झगड़े शुरू हो गए हैं. इस सबके बीच अरुण की मां कुसुम और बेटी अमृता कुछ बड़ी बातें उससे छुपा रही हैं. इसके साथ और भी छोटी-छोटी कहानियां फिल्म में चल रही हैं.
गुलमोहर एक खट्टी-मीठी याद की तरह है. इस फिल्म के पहले ही सीन से आप बत्रा परिवार का हिस्सा बन जाते हैं. जैसे-जैसे इस परिवार और इसेक सदस्यों की जिंदगी की परतें खुलती हैं, आप फिल्म के साथ वैसे-वैसे बंधते जाते हैं. ये फिल्म देखकर आपको एहसास होता है कि हमारी जिंदगी से जुड़े हर इंसान ने अपनी जिंदगी को किस सोच और गहराई के साथ जिया है, उसका अंदाजा हमें है ही नहीं. एक परिवार को बनाने के लिए खून का रिश्ता ही काफी नहीं होता. और अपनी जिंदगी में हमें बस प्यार और उम्मीद की जरूरत होती है. बातों और रिश्तों को सुलझाने के लिए आपका एक दूसरे से बात करना जरूरी है.
डायरेक्टर राहुल चित्तेला ने इस फिल्म को बहुत खूबसूरती से बनाया है. शर्मिला टैगोर, मनोज बाजपेयी अपने किरदारों में यूं ढले हैं कि आप कह नहीं सकते कि दोनों एक्टिंग कर रहे हैं. सिमरन, सूरज शर्मा, कावेरी सेठ, उत्सवी झा, अमोल पालेकर संग बाकी एक्टर्स ने भी बढ़िया काम किया है. इस फिल्म में कई बढ़िया डायलॉग हैं, जो आपके दिल में घर कर जाएंगे. गुलमोहर आपको हंसाएगी, रुलाएगी और बहुत सारे इमोशन्स महसूस करवाएगी.
पल्लवी