An Action Hero Review: फुल मनोरंजन है आयुष्मान का एक्शन, असली हीरो हैं जयदीप अहलावत

फ़िल्म में हीरो का रोल भले ही आयुष्मान खुराना के हिस्से आया हो, मेरे लिये तो भूरा इस फ़िल्म का हासिल है. जयदीप अहलावत ने बाजा फाड़ दिया है. बड़े-बड़े कलाकारों की सैकड़ों करोड़ का बिज़नेस करने वाली फ़िल्मों को (समझ रहे हैं न आप?) जयदीप के इस जाट कैरेक्टर को देखकर सोचना चाहिए.

Advertisement
आयुष्मान खुराना, जयदीप अहलावत आयुष्मान खुराना, जयदीप अहलावत

केतन मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 02 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 1:22 PM IST

An Action Hero Movie Review:  पिच्चर रिलीज़ हुई है. नाम है - ऐन ऐक्शन हीरो. जैसा कि नाम बता रहा है, फ़िल्म एक ऐक्शन हीरो के बारे में है. हीरो को सिर्फ़ फ़ाइट से मतलब है. उसको चाहिये अपनी आंख में गुस्सा. इसके अलावा वो कुछ और सोचता ही नहीं है. कहता है कि बहुत मुश्किल से ऐसी इमेज बनायी है, इसी पर डटे रहना है. उसको भी अपनी रोजी-रोटी का ख़याल रखना है न! और इसी फ़ाइट और शूट के फेर में लोचा हो जाता है. हीरो के शब्द में कहूं तो - "सीन हो गया सर!" और ये फ़िल्म इसी हीरो के इस 'सीन' के चलते पैदा हुई और आगे बढ़ती गयी.

Advertisement

क्या है कहानी?

एक फ़िल्मी हीरो है. नाम है मानव. बहुत कोशिशों के बाद उसने अपनी छवि तैयार की. अब वो ऐक्शन हीरो है. इस इमेज को पकाने में उसे बहुतों का साथ मिला. हालांकि जो कुछ भी उसके साथ घटा, उसे समझ में आता गया कि वो अकेला ही था और अब भी अकेला ही है. खैर, वो एक फ़िल्म की शूटिंग के लिये हरियाणा आया था. यहां घटनाएं ऐसे घटीं कि उसके हाथों एक शख्स की मौत हो गयी. ये मौत पूरी तरह से ग़ैर-इरादतन थी और जो मरा, उसका नाम था विक्की. विक्की का भाई वो कैरेक्टर है जो हिंदी फ़िल्मों में टिपिकल हरियाणा का गुंडा (पढ़ें, बड़ा भाई) होता है. वो न पुलिसवालों पर हाथ छोड़ने में एक सेकंड का समय लगाता है और न ही दूसरे देश में जाकर वहां की पुलिस को मारने में कोई दिक्कत महसूस करता है. इनका नाम है भूरा. हीरो के हाथों जैसे ही हत्या हुई, उसने अपना सामान पैक किया और लंडन निकल लिया. भूरा भाईसाब ने कसम उठायी कि हीरो को वही मारेंगे. इससे पहले कि पुलिस हीरो को पकड़े, वो उसे अपने भाई के पास पहुंचाना चाहते हैं. इसलिये भूरा जी बगैर अपने भाई की चिता को आग दिए, लंडन निकल पड़ते हैं. पूरी कहानी इसी बदले की आग में पकती रहती है. 

Advertisement

कौन है? कैसा है?

फ़िल्म में दो मुख्य किरदार हैं. हीरो और भूरा. हीरो हैं आयुष्मान खुराना. भूरा हैं जयदीप अहलावत. जयदीप को आप नाम से नहीं जानते हैं तो दिक्कत की बात है. वो पाताल-लोक में हाथीराम चौधरी थे. गैंग्स ऑफ़ वासेपुर में वो मनोज बाजपेयी के बाप बने थे. आयुष्मान खुराना को आप नहीं जानते हैं तो... खैर छोड़िये.

आयुष्मान ने कैमरे को साध रखा है. वो बढ़िया ऐक्टर हैं. अपने हिसाब का काम बढ़िया तरीक़े से करते हैं और निकल लेते हैं. हालांकि अभी तक उनकी इमेज चॉकलेटी हीरो (फ़िल्मी पत्रिकाओं से उधार लिया गया टर्म) की बनी हुई थी, जिसके हिस्से में भौकाली डायलॉग आते थे और जो अंत में लड़की का हाथ पा लेता था और सब कुछ ठीक कर देता था. लेकिन यहां आयुष्मान खुराना ने अपने ऐब भी दिखाए हैं और ऐब्स भी. आयुष्मान एक पैसा पीट चुके ऐक्शन हीरो के रूप में बढ़िया दिखते हैं. काली मस्टैंग में जब वो 130 की स्पीड का मज़ा लूट रहे होते हैं तो आउट-ऑफ़-प्लेस नहीं दिखते. फिर जब उनपर ग्रहण लगता है, तब अभी खीज, झुंझलाहट को भी बढ़िया तरीक़े से दिखाते हैं. पैसे की ताक़त क्या करवा सकती है और मिनट भर में अर्श से फ़र्श पर कोई कैसे आता है, ये उन्होंने बहुत करीने से सामने रखा है.

Advertisement

फ़िल्म में हीरो का रोल भले ही आयुष्मान खुराना के हिस्से आया हो, मेरे लिये तो भूरा इस फ़िल्म का हासिल है. जयदीप अहलावत ने बाजा फाड़ दिया है. बड़े-बड़े कलाकारों की सैकड़ों करोड़ का बिज़नेस करने वाली फ़िल्मों को (समझ रहे हैं न आप?) जयदीप के इस जाट कैरेक्टर को देखकर सामूहिक आत्मदाह कर लेना चाहिये. जब वो कहते हैं "बात है बात की. और जो अपनी बात का नहीं, वो जाट का नहीं." तो आपको उस पूरे माहौल में एक भी अक्षर बनावटी नहीं लगता. वरना हमें क्या? हम तो खड़ी बोली में 'न' की जगह 'ण' लगाकर हरियाणा-राजस्थान बेस्ड फ़िल्में देखते हुए बड़े हुए हैं. ये भी वैसे ही भोग लेते. लेकिन जयदीप ने माहौल बनाया है. कई मौकों पर उनके हिस्से में कोई डायलॉग नहीं है. क्यूंकि ज़रूरत ही नहीं लगती. वो अपने एक्सप्रेशन ने सब कहते हुए मिलते हैं. थोड़े लिखे को कम और तार को ख़त समझिये. 

इसके अलावा और बहुत कैरेक्टर नहीं हैं फ़िल्म में. एक और है - काटकर. बढ़िया चीज़ मिलाई है फ़िल्म में. जानबूझकर उसके बारे में नहीं लिखा जा रहा है. अव्वल तो स्पॉइलर की श्रेणी में आ जायेगा, और दूसरा ये कि अच्छा सरप्राइज़ है इसलिये उसे मेंटेन कर रहे हैं.

Advertisement

एक और कैरेक्टर है. मीडिया का है. एक बड़ा नाम है, उसका कॉपी-कैट रखा गया है. मज़ा आया देखकर. उसने टीवी पर जो आग मूती है, फ़िल्मवालों ने उसका बदला निकाला है. आख़िर कहानी भी बदले की ही है.

क्या है मामला?

मामला बहुत सही है. फ़िल्म पूरी तरह से मन का रंजन करने वाली है. बचपन में सिंगल स्क्रीन थियेटर के पोस्टर दिखते थे. जीत जैसी फ़िल्मों के पोस्टर पर लिखा होता था - मार-धाड़ एवं ऐक्शन से भरपूर पारिवारिक मनोरंजन. ये फ़िल्म 100 टका उसी केटेगरी की फ़िल्म है. बदले की कहानियों से हिंदी फ़िल्में अटी पड़ी हैं. ये भी उसी क्लास की फ़िल्म है. लेकिन इसमें घिसा-पिटा फ़ॉर्मूला नहीं है. मामला नया है. डायरेक्टर और फ़िल्म के लेखक अनिरुद्ध अय्यर ने सधा काम किया है. उन्होंने कहीं भी कोई खाली गली नहीं छोड़ी है. और न ही बगैर लॉजिक की कोई कड़ी घुसाई है. इसके चलते एक मनगढ़ंत कहानी बहुत अपनी मालूम पड़ती है. अनिरुद्ध ने नो-नॉनसेन्स वाला काम किया है.

पिछले लम्बे समय से ऐक्शन फ़िल्मों के नाम पर फ़िज़िक्स की फ़जीहत ही होती दिखी है.  उसमें कहीं कोई सर-पैर ढूंढ पाना मुश्किल ही रहा है. ऐसे में ये फ़िल्म बेहतर ज़मीन पर खड़ी मिलती है.

फ़िल्म में एक काम और अच्छा हुआ है. ड्रग्स का अड्डा बताये जा रहे 'बॉलीवुड' ने पलटवार सरीखा कुछ किया है. फ़िल्म देखते हुए 'डॉक्टर स्ट्रेंजलव' (स्टेनली क्यूब्रिक की फ़िल्म) की याद आयी. हालांकि वो साल दूसरा था, ये साल दूसरा है. लेकिन चीज़ें उसी थीम पर आती दिखायी दीं. अच्छा और दिमागदार ह्यूमर है. जंचता है.

Advertisement

कुल मिलाकर बात ये है कि लंडन में हरियाणा का जाट कोहराम मचाये हुए है. ऐक्शन हीरो को अपने हाथों से मारना चाहता है. और क्या चाहिये?

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement