गुरदास मान 'मरजाणां': नौकरी के लिए ढफली की आड़ में गाते हुए रोता रहा लड़का, बन गया 'पंजाब की शान'

'पंजाब की शान' गुरदास मान को जनता ने हमेशा ढफली के साथ देखा. इसी ढफली से एक बार गाते हुए मान साहब को अपने आंसूं छिपाने पड़े थे. उन्होंने लेक्चरार की नौकरी क्यों छोड़ी? गोवा में नौकरी करने क्यों नहीं जा पा पाए? और गानों में खुद को 'मरजाणां' क्यों कहते रहते हैं? पढ़िए मान साहब की जिंदगी के कुछ सुने-अनसुने पहलू, उनके कुछ चुनिंदा गानों के साथ.

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गुरदास मान (क्रेडिट: ट्विटर) गुरदास मान (क्रेडिट: ट्विटर)

सुबोध मिश्रा

  • नई दिल्ली ,
  • 04 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 4:05 PM IST

2015 में एम. टी.वी कोक स्टूडियो में, चौथे एपिसोड में एक गाना रीक्रिएट किया गया. गाने का नाम था- 'की बनूं दुनिया दा'. इसे गाने वाले दो लोग थे. पहले थे पंजाब की नई आवाजों में बहुत तेजी से पॉपुलर हुए दिलजीत दोसांझ. और दूसरे थे गुरदास मान. 'पंजाब की शान' कहे जाने वाले गुरदास मान. वो गुरदास मान, जो पंजाब के लिए एक विरासत, एक खजाने की तरह हैं. 

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कोक स्टूडियो में जिस गाने को रिक्रिएट किया गया, उसे गुरदास ने 1982 में गाया था. आज जब हम उनके बारे में बात कर रहे हैं तो इस गाने को 40 से ज्यादा साल हो चुके हैं. और 4 जनवरी 1957 में जन्मे गुरदास मान खुद 66 साल के. 1980 में दूरदर्शन पर 'दिल दा मामला' गाने के बाद वो पहली बार पूरे देश की जनता को दिखे. इसके बाद से अबतक उनके 300 से ज्यादा गाने आ चुके हैं. नेशनल अवार्ड जीतने वाले एकमात्र पंजाबी सिंगर गुरदास मान हर बातचीत में ये दोहराते रहे हैं कि उन्होंने कभी आगे के लिए कुछ सोचकर कुछ नहीं किया. उन्होंने हर बार यही कहा कि वो बस डूबकर गाते गए और सबकुछ अपने आप होता गया. गिद्दरबाहा, पंजाब से लेकर रॉयल अल्बर्ट हॉल, लंदन तक शानदार परफॉरमेंस देने वाले गुरदास मान का सफर भी इसी बात की गवाही देता है. 

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जीता रह तू चिट्ठियां पहुंचाने वाले (जींदा रह वे चिट्ठियां पहुंचाण वालेया)

गानों के वीडियो में, फिल्मों में गुरदास मान हमेशा बड़े फिट और एकदम असली पंजाबी गबरू ही दिखे. इसकी वजह शायद स्पोर्ट्स में उनकी दिलचस्पी थी. मान बैंटमवेट कैटेगरी में कुश्ती लड़ा करते थे और बाद में उन्होंने जिम्नास्टिक में भी हाथ आजमाया. तभी यूनिवर्सिटी में जूडो पहली बार इंट्रोड्यूस हुआ और सिखाने के साथ-साथ नए कोच तैयार करने का भी टारगेट रखा गया. गुरदास ने जूडो में ब्लैक बेल्ट जीती और बतौर कोच गोवा के लिए उनकी पोस्टिंग भी हो गई. लेकिन उनका जॉब इंटरव्यू कार्ड घर ही नहीं आया. एक पुराने इंटरव्यू में गुरदास ने बताया कि उनका कार्ड किसी और के यहां पहुंचा और उसने रख लिया. 

किसी ने उन्हें बताया कि कार्ड यूनिवर्सिटी से मिल जाएगा और अगर वो कार्ड लेकर समय से निकलें तो वक्त रहते चंडीगढ़ पहुंच सकते हैं, जहां इंटरव्यू चल रहे थे. उन्होंने अपने एक दोस्त से मदद मांगी और बाइक से उसके साथ चल दिए. लेकिन रास्ते में बाइक खराब हो गई और मान को काफी दूर धक्का लगाना पड़ा. एक ट्रेक्टर की सांकल पकड़कर मान और उनका दोस्त थोड़ा आगे आए और बाइक ठीक करवाई. इंटरव्यू में मान ने बताया कि तब पहली बार उन्हें एहसास हुआ कि शायद ऊपर वाला चाहता ही नहीं कि वो इस नौकरी के रास्ते जाएं. 

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(4 नेशनल अवार्ड जीतने वाली अपनी फिल्म 'वारिस शाह' के इस गाने में गुरदास, चिट्ठी पहुंचाने वाले कबूतर को दुआ दे रहे हैं.)

तुझे क्या पता पगले (तू क्या जाने मोया)
आधे रास्ते बाइक के चलते हुई मशक्कत से मान और उनका दोस्त दोनों थक चुके थे. इंटरव्यू में मान ने कहा कि पहले तो दोनों ने थकान उतारने के लिए बियर पी ली. फिर उन्होंने दोस्त से कहा कि आज और कोई काम तो होता नहीं दिख रहा, वो कम से कम उन्हें बाइक चलानी ही सिखा दे. तो अब बाइक मान चलाने लगे और उनका दोस्त डॉक्यूमेंट्स की फाइल पकड़कर पीछे बैठ गया. रास्ते में बाइक चलाने का ज्ञान देने और बातचीत में उनके दोस्त ने ध्यान ही नहीं दिया कि फाइल से डॉक्यूमेंट उड़कर गिरे जा रहे हैं. ये सारा वाकया थोड़े खाली रास्ते पर हुआ. जब शहर आने लगा तो ट्रैफिक के डर से मान ने बाइक वापस दोस्त को थमाई और खुद फाइल पकड़ी, तब उनका ध्यान खाली फाइल पर गया. 

इसमें से कुछ डॉक्यूमेंट सड़क पर पड़े थे, जबकि कुछ को सड़क की आसपास खेल रहे बच्चे गोल करके, उनसे बैंड बजाने का खेल कर रहे थे. और मान का फिजिकल एजुकेशन का सर्टिफिकेट, जिसमें वो फर्स्ट क्लास पास हुए थे, बच्चों ने वो फाड़ दिया था. मान बताते हैं कि वापस आकर उन्होंने थोड़ी और बियर पी और अपने कागज गोंद से जोड़ने शुरू किए. मान सर्टिफिकेट चिपकाते जाते और रोते जाते. लेकिन मान को क्या पता था कि उनकी जिंदगी क्या मोड़ ले रही है... इसी फिजिकल एजुकेशन के सर्टिफिकेट ने उन्हें लेक्चरर की नौकरी दिलवाई और वो गवर्नमेंट कॉलेज डेराबस्सी में पढ़ाने लगे.  

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(मान का गाना 'साइकिल' उनके जीवन की इस घटना से बहुत प्रेरित है)

जाती विरासत को कौन संभाले (जांदे विरसे नू कौन संभाले)
गुरदास मान को संगीत में दिलचस्पी बचपन से रही. लेकिन संगीत का आनंद लेना और खुद इसे अपनाना, दो बहुत अलग बातें हैं. और दूसरी वाली बात अक्सर घरों में नापसंद की जाती है. मान ने अपने एक शुरूआती इंटरव्यू में बताया था कि जब वो बचपन से जवानी की तरफ बढ़ रहे थे, उसी समय लाल चंद यमला जट्ट के गाने बहुत पॉपुलर होने लगे थे, जो तुम्बी के साथ गाते थे. उस समय बहुत सारे पंजाबी सिंगर्स के हाथों में तुम्बी नजर आने लगी. तो मान भी घरवालों से छुपकर छत पर कद्दू, डंडे और तार से तुम्बी बनाने की कोशिश करते रहते थे और नकल उतारते थे. घरवालों की डांट को किनारे रखकर, पढ़ाई के दिनों में मान बाकायदा कॉलेज में गाने लगे थे.

स्टेज पर गुरदास मान की गायकी के साथ उनकी परफॉरमेंस भी बहुत अनूठी होती है. इसका हुनर मान को थिएटर से आया. नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से पासआउट हरपाल तिवाना और उनकी पत्नी नीना तिवाना पटियाला में पंजाब कला मंच की शुरुआत की और पंजाबी नाटक बनाने शुरू किए. हरपाल, चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी में 'सत्यमेव जयते' नाम से एक प्ले करने वाले थे. इस परफॉरमेंस में एक नज्म थी 'सुर्ख गुलाब की बेटी' जिसे एक अलग परफॉरमेंस की तरह तैयार किया जाना था. मान जिस कॉलेज में पढ़ा रहे थे, वहां के लाइब्रेरियन पंजाब कला मंच में सेक्रेटरी थे. उन्होंने रोल ऑफर किया, तो मान नौकरी छोड़कर थिएटर करने चल दिए.

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अगले कुछ महीनों में उन्होंने पंजाब कला मंच के लिए कई प्ले किए, जिनमें से एक में उन्होंने एक बूढ़े सूफी संत का किरदार किया. मान कहते हैं कि उनके पिता, चाचा और दादा को सूफी शायरों में बहुत दिलचस्पी रही. इन्हीं लोगों से वो बचन से बुल्ले शाह, शाह हुसैन और वारिस शाह के सूफी कलाम सुनते आ रहे थे. इन शायरों का असर मान की गायकी और लिखने में आया, तो सूफी किरदार करने का असर उनकी परफॉरमेंस में. हरपाल तिवाना ने 1983 में 'लौंग दा लश्कारा' फिल्म भी बनाई जिसमें राज बब्बर और ओम पुरी जैसे कलाकार थे. साथ में गुरदास मान एक सूफी सिंगर का किरदार निभा रहे थे. फिल्म में म्यूजिक जगजीत सिंह ने दिया था और गानों के बोल लिखे थे शिव बटालवी ने. पंजाबी के लेजेंड्स से भरी इस फिल्म में ही लोगों को गुरदास का गाया हुआ गीत 'छल्ला' सुनने को मिला. 

(विरासत को लेकर गुरदास मान ने 'मनके' नाम से एक मजेदार गाना गाया है)

शहर में तेरे हम भिखारी बराबर (तेरे शहर विच असी मंगतेयां बरोबर)
मान को ड्रामा और थिएटर में देख उनके घरवाले खफा हो गए और उनके दादा ने कहा कि 'तुझे हमसे जो लेना हो ले, और नौकरी वगैरह खोज.' मान को जानने वाली एक महिला ने कहा कि इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के चेयरमैन से उनकी पहचान है. स्पोर्ट्स का अच्छा रिकॉर्ड तो मान के पास था ही, लेकिन उन्हें चेयरमैन साहब को गाना भी सुनाना था. जब मान पहुंचे तो वहां घर की महफिल टाइप मामला था जहां शराब चल रही थी. झोले में अपनी ढफली साथ लेकर चलने वाले मान ने बहुत भारी मन से उस सेटिंग में गाना शुरू किया. 

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मान कहते हैं, 'मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी के सामने भीख मांगने गया हूं. और ऐसा लगा जैसे किसी तवायफ की तरह मेरी नुमाइश की जा रही है.' मान ने 'सजणा वे सजणा' गाना शुरू किया और ढफली की आड़ में रोते रहे. जो चेयरमैन साहब थे उन्होंने मान के आंसू देख लिए और गाने से रोक दिया. उन्होंने कहा कि तुम्हारी नौकरी पक्की, गाना तो हम फिर कभी सुन लेंगे. अब प्रोफेशनली मान इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड वाले थे और पर्सनल लाइफ में आर्टिस्ट. ऐसे ही किसी ने उन्हें 'दिल दा मामला' परफॉर्म करते देखा और उन्हें दूरदर्शन के न्यू ईयर प्रोग्राम में गाने का मौका दिया.  

(मान ने उस महफिल में जो गाना गाया, उसकी धुन पर बहुत ज्यादा मिलता कुमार सानू का गाना 'तेरा मेरा प्यार' बहुत चला. मान साहब वाला भी सुन लीजिए)

इश्क को हमेशा दुनिया से मिली सिर्फ बदनामी (इश्क ने खट्टी जद वी खट्टी दुनिया विच बदनामी)
गुरदास मान ने फिजिकल एजुकेशन में मास्टर्स की डिग्री भी ली और पढ़ाई के दौरान ही उनकी मुलाकात मनजीत से हुई. मनजीत उनसे एक साल जूनियर थीं और दोनों में प्यार हो गया. मनजीत दिल्ली से थीं और गुरदास थे पंजाब के ठेठ जट्ट. प्यार और शादी के बीच स्पीड ब्रेकर बनीं मनजीत की मां. मान ने बताया था कि मनजीत की मां बहुत धार्मिक थीं और वो पगड़ी रखने वाले, ट्रेडिशनल सिख लड़के से उनकी शादी करना चाहती थीं. उन्हें इम्प्रेस करने के लिए गुरदास मान ने भी कुछ दिन केश बढ़ाए, पगड़ी पहनी. लेकिन मनजीत ने ही उन्हें कहा कि उन्हें बदलने की कोई जरूरत नहीं है. (इस गाने में मनजीत और गुरदास साथ हैं)

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मनजीत ने गुरदास की हिंदी फिल्म 'जिंदगी खूबसूरत है' प्रोड्यूस की थी. दोनों साथ में कई फिल्मों में भी नजर आए. मनजीत ने फ़िल्में भी डायरेक्ट कीं जिनमें गुरदास हीरो थे. और 'वारिस शाह' फिल्म के लिए जहां गुरदास मान को 'बेस्ट सिंगर' का नेशनल अवार्ड मिला, वहीं मनजीत को 'बेस्ट कॉस्टयूम डिजाईन' के लिए नेशनल अवार्ड दिया गया. 

(इश्क, इंतजार और जुदाई को गुरदास मान ने, महिलाओं की चोटी में सजावट के लिए लगने वाले 'परांदे' से कैसे जोड़ा है, सुनिए)


 
छल्ले और छल्ली की शादी (छल्ले ते छल्ली दा ब्याह)
गुरदास के दादा के मौजूदगी में, दोनों ने शादी कर ली. बाद में घरवालों के राजी होने के साथ पहले मान के गांव गिद्दरबाहा, फिर मनजीत के शहर दिल्ली में रिसेप्शन हुआ. मान ने ये भी बताया था कि उनकी शादी में लोग बहुत कम थे इसलिए उन्हें वहां भी खुद ही गाना पड़ा.

अपने संगीत में इश्क की बात करने वाले गुरदास मान ने, पंजाबी लोकगीतों के मशहूर किरदार 'छल्ला' को भी अकेला नहीं रहने दिया. उन्होंने 'छल्ली' के नाम भी एक गाना लिखा और गाने में दोनों की शादी भी करवाई. दिलचस्प ये है कि जैसे 'छल्ला' में एक फलसफा था, वैसे ही 'छल्ली' में बच्चियों को गर्भ में या पैदा होते ही ही मार दिए जाने को लेकर एक बड़ा सोशल मैसेज था. गाने के अंत में मान ने गाया, 'अगर मेरा नाना अपनी पैदा हुई बेटी को मार देता, तो न मेरे पिता होते और न ये मरजाणां गुरदास मान होता!'  

(मिलिए 'छल्ले' की पत्नी 'छल्ली' से, इस गाने में)

मां की इज्जत पैरों में क्यों लताड़ते हो! (मां दियां सदरां क्यों पैरां विच लताड़दा ए)
जिस दौर में मान आगे बढ़ रहे थे, उस दौरान देश-दुनिया-समाज-पंजाब और कल्चर में भी बहुत कुछ बदल रहा था. गुरदास मान को पूरा परिवार इकट्ठा बैठकर सुन सकता था. लेकिन ऐसे भी सिंगर आने लगे थे जो सिर्फ ढाबों, ट्रकों और छड़ों में बहुत पॉपुलर हो रहे थे. पंजाबी गानों में नशा, हथियार और अश्लीलता की एंट्री शुरू हो चुकी थी. माइग्रेशन भी जोरों पर था और इंग्लैंड, अमरीका, 'कनेडा' जाना कूल होने लगा. 

गुरदास मान लगातार अपने गानों में पंजाबी भाषा को 'मां' या 'मां-बोली' कहते हैं. कल्चर में पंजाबी रवायत और विरासत को बचाए रखने की उनक कोशिश और अपील गानों में खूब उतरी. साथ ही गांवों और खेतों को छोड़कर विदेश जाना और यहां गांव में छूटे लोगों के सामने शान दिखाने को भी मान साहब ने अपने गानों में उतारा. इन गानों को विदेशों में रह रहे पंजाबियों के बीच उन्होंने खूब परफॉर्म भी किया.

(दिल से गांव को भूलते जा रहे लोगों के लिए मान साहब का ये गाना बहुत मैसेज भरा था) 

धिक्कार है तुझपे मान! (मरजाणां मान!)
मान अक्सर अपने गानों में खुद को 'मरजाणां' कहते हैं. पंजाब में कोई भी अपने किसी प्रिय व्यक्ति से, किसी बात पर खीझ जाता है तो उसे धिक्कारते हुए 'मरजाणां' कह देता है. जैसे अगर मां अपने बच्चे की शरारत से दुखी हो जाती है तो उसे 'मरजाणां' कह देती है. 

मान का कहना है कि ये कोई गलत बात नहीं है, बल्कि अपने बच्चों को 'मरजाणां' कहते हुए भी मां उनकी बलाएं ही उतार देती हैं. एक इंटरव्यू में हंसते हुए कहते हैं कि खुद को 'मरजाणां' कहते हुए वो खुद की नजर उतारते रहते हैं. लेकिन इन गानों के मतलब को समझते हुए आप पाएंगे कि वो अपने टाइटल 'मान' को, गानों में ईगो या अभिमान के लिए इस्तेमाल करते हुए 'मरजाणां मान' कहते हैं. 

(ईगो को भुलाकर जिंदगी का स्वाद लेने के लिए कहते हुए इस गाने में 'मरजाणें मानां' पर ध्यान दीजिएगा)

गुरदास मान सिर्फ पंजाबी गानों या पंजाबी इंडस्ट्री तक सीमित नहीं हैं. शाहरुख खान की फिल्म 'वीर जारा' में, संजय कपूर की 'सिर्फ तुम' में जब वो गाते नजर आए तो जनता को मजा ही आ गया. वो एक तमिल फिल्म 'मामन मगल' में भी गाते हुए नजर आ चुके हैं. हाथों में ढफली, रंगीन कुर्ते और लुंगी पहने गुरदास मान हमेशा अपने सुरों से सुनने वालों को यूं ही दीवाना बनाते रहें. हमारी तरफ से उन्हें जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं.  

 

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