पिछले दिनों ही लेह लद्दाख से लौटे पकंज त्रिपाठी गांव कस्बों में थिएटर की कमी पर चिंता जता रहे थे. बकौल पंकज हमारे देश के कई इलाकों में सिनेमा को जरा भी एक्सपोजर नहीं है.
आजतक से बातचीत के दौरान पंकज बताते हैं, मैं जब भी इंडिया की एरिया व आबादी के बारे में सोचता हूं और स्क्रीन्स के नंबर देखता हूं, तो उसकी तुलना में बहुत कम लगता है. हमारे देश में थिएटर कम से कम 50 हजार होने चाहिए जो कि नहीं हैं. बहुत इंटीरियर पार्ट, जहां सिनेमा ही नहीं है, तो वहां के लोग सिनेमावालों को कैसे जानेंगे. मैं अगर कहूं कि देश में मुझे सब जानते हैं, तो सच्चाई यही है कि नहीं जानते हैं. यूपी, महाराष्ट्र या फिर बिहार के भी कई इलाकों में लोगों को नहीं पता होगा कि पंकज त्रिपाठी कौन है. ये लोग फिल्म नहीं देखते हैं.
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देश के कोने-कोने पर हो मूविंग थिएटर
मूविंग थिएटर को लद्दाख के इंटीरियर पार्ट में देखा, तो वो एहसास काफी सुखद था. मैंने वहां 15 मिनट की एक शॉर्ट फिल्म देखी, जो वहां के एक लोकल लड़के ने बनाई है. मैं तो चाहूंगा कि हमारे देश के हर कोने-कोने पर मूविंग थिएटर हो, जो सिनेमा भी दिखाए और बच्चों को भी एजुकेट करने के साथ-साथ सरकार की पॉलिसी दिखाकर उनमें जागरूकता फैलाएं.
थिएटर पर पहली फिल्म जय संतोषी माता देखी थी
अपने पहले थिएटर एक्सपीरियंस पर पंकज कहते हैं, 'मैंने 11 साल की उम्र में पहली बार थिएटर देखी थी. बचपन में पापा जब पूजा करवाने एक पास के इलाके में गए थे. पूजा-पाठ होने के बाद बाबूजी ने कहा कि चल मैं दिखाता हूं कि सिनेमा हॉल होता कैसा है. आज भी उस थिएटर का नाम याद है, वसंत थिएटर था वो. ये बहुत ही अजीब सी बात है कि बचपन में मेरा फिल्मों को लेकर ज्यादा एक्सपोजर रहा नहीं. पहली फिल्म जो देखी थी, वो थी जय संतोषी मां. हालांकि वो थिएटर अब बंद हो गया है. बिहार में भी सिनेमा थिएटर का बहुत बुरा हाल है.'
83 अगर ओटीटी पर भी आए तो कोई दिक्कत नहीं
फिल्मों की ओटीटी रिलीज पर पंकज ने कहा, 'पिछले कुछ समय से फिल्में ओटीटी पर रिलीज की जा रही हैं. ऐसे में पंकज अपनी राय रखते हुए कहते हैं, अगर आने वाले वक्त में उनकी बड़ी फिल्मों को ओटीटी पर रिलीज किया जाता है, तो उन्हें इस फैसले से कोई आपत्ती नहीं है. हालांकि पंकज की ख्वाहिश यही है कि फिल्में अगर थिएटर पर रिलीज हो, तो ज्यादा बेहतर है.'
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एक्टर हमेशा ऑब्जर्वेशन पर रहता है
मिमी को मिल रहे मिक्स्ड रीव्यू पर पंकज ने कहा, 'देखिए हर किसी की राय होती है. सब अपनी राय रख सकते हैं. उनकी राय का दिल से स्वागत है. मुझे नहीं लगता है कि मुझे फिल्म में वेस्ट किया गया है. मेरा किरदार बहुत ही महत्वपूर्ण था, उसके बिना कुछ संभव नहीं था. देखिए लोगों की अपनी राय है, मुझे इससे कोई गिला व शिकवा नहीं है. रिलीज होने के बाद वो फिल्म नेटफ्लिक्स पर ट्रेंडिंग है. देखिए हमारा जो पेशा है, उसे हर वक्त ऑब्जर्वेशन पर रखा जाता है. ऐसे में ये आग का दरिया है और डूब कर जाना है. मुझे फिल्मों के हिट व फ्लॉप से कोई तकलीफ व खुशी नहीं होती है. मैं अपना काम पूरी इमानदारी से करता हूं और उसके बाद दुनिया उसे कैसे रिसीव करती है, वो मेरे बस नहीं है. मैं बस पूरी मेहनत से काम करता जाता हूं. सफलता और असफलता आपके जीवन का हिस्सा है, और यह चलता ही रहेगा.'
सिनेमा में काम करता हूं, लेकिन फिल्मी नहीं
फिल्मों में काम करने के बावजूद पंकज आज भी सरल हैं. उन्होंने खुद पर फिल्मी बुखार कभी चढ़ने नहीं दिया है. पंकज कहते हैं, 'देखिए मैं सिनेमा में जरूर काम करता हूं लेकिन थोड़ा भी फिल्मी नहीं हूं. मेरी अलग निजी जिंदगी है. इसके साथ ही सोशल मीडिया पर इमानदारी से अपनी राय रखता हूं. मैंने कभी नहीं सोचा था कि इतना प्यार और सम्मान मिलेगा. बचपन में जब मेरी बहन की शादी हो रही थी, तो उस वक्त जमवाड़ा लगा था. एक ज्योतिष भी थे, उन्होंने जब मेरा हाथ देखा, तो उन्होंने बताया कि मेरे हाथों में बहुत सी विदेश यात्राएं हैं. उस वक्त बस यही चर्चा होने लगी कि आखिर बार-बार विदेश क्यों जाएगा. सब डर गए थे, फिर डिसकशन के बाद यह सोचा गया कि हो सकता है ये लड़का एयर इंडिया में मेंटेनेंस स्टाफ बने. यहां भी मुझे पायलट नहीं बनाया. लेकिन किसको मालुम था कि यह लड़का एक्टर बनेगा और शूटिंग के सिलसिले में आएगा-जाएगा. तो समझ लें, इतने साधारण परिवार से हूं.'
नेहा वर्मा