सिंगर-एक्टर दिलजीत दोसांझ का इन दिनों खूब जलवा है. हाल ही में वो अपने कॉन्सर्ट के टिकट्स की कीमत को लेकर चर्चा में थे. मगर अब वो अपनी फिल्म 'पंजाब '95' को लेकर सुर्खियों में हैं, जो लंबे समय से सेंसर बोर्ड के पंगे में फंसी हुई है. 'पंजाब '95' को हनी त्रेहान ने डायरेक्ट किया है और रॉनी स्क्रूवाला इसके प्रोड्यूसर हैं. कुछ महीने पहले ही सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म में 85 कट्स लगाने की मांग की थी. मगर अब बोर्ड फिल्म में 120 बदलाव करवाना चाहता है.
शुरू से विवादों में है फिल्म
CBFC (सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन) काफी पहले से दिलजीत दोसांझ की फिल्म 'पंजाब '95' को सर्टिफिकेट देने में हिचकिचा रहा है. मिड डे की एक रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई में सेंसर बोर्ड ने फिल्म के मेकर्स से 85 कट्स लगाने की मांग की थी. मेकर्स इसके लिए राजी भी थे मगर फिर भी बोर्ड ने सर्टिफिकेट नहीं दिया.
एक सूत्र के हवाले से बताया गया था कि 'फिल्म के मेकर्स 85 कट्स के लिए राजी थे, लेकिन CBFC ने फिल्म के सेंसिटिव सब्जेक्ट और आज के माहौल में इसकी रिलीज के सूट करने को लेकर चिंता जाहिर की है.' मगर इसके बावजूद फिल्म को सेंसर बोर्ड की रिवाइजिंग कमेटी के सामने भेज दिया गया और अब कमेटी ने फिल्म में जिन बदलावों की मांग की है उनकी कुल संख्या 120 है.
सेंसर बोर्ड के लिए 'पंजाब '95' की पहली स्क्रीनिंग 2022 में हुई थी और तब इसमें 22 कट्स की मांग की गई थी. मगर प्रोड्यूसर रॉनी स्क्रूवाला इसके खिलाफ कोर्ट चले गए. हालांकि, बाद में उन्होंने बोर्ड के साथ आउट ऑफकोर्ट सेटलमेंट कर लिया. मगर फिल्म को आजतक सेंसर सर्टिफिकेट नहीं मिला.
मेकर्स ने 2022 में ये भी अनाउंस किया था कि 'पंजाब '95' का प्रीमियर टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में होगा. मगर बाद में सामने आया कि फेस्टिवल के लाइन-अप में दिलजीत दोसांझ की ये फिल्म है ही नहीं. कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया कि फेस्टिवल ने लाइन-अप से ये फिल्म हटाई है, जबकि कुछ में कहा गया कि मेकर्स ने खुद ही इस फिल्म फेस्टिवल से नाम वापस ले लिया. सच क्या था, ये मेकर्स ने भी कभी नहीं बताया.
सेंसर बोर्ड ने रखी लीड किरदार का नाम बदलने की मांग
रिपोर्ट के अनुसार, बोर्ड ने फिल्म के लीड किरदार का नाम तक बदलने की मांग की है. 'पंजाब '95' में दिलजीत के लीड किरदार का नाम जसवंत सिंह खालड़ा है. लेकिन CBFC ने सलाह दी है कि लीड किरदार का नाम बदलकर पंजाब की एक नदी के नाम पर, सतलुज रख दिया जाए.
जबकि मेकर्स को इस बात से आपत्ति है कि सिख समुदाय में जसवंत सिंह खालड़ा का नाम आइकॉनिक है और किरदार का नाम बदल देना सिखों की विरासत के साथ खिलवाड़ होगा. दरअसल इस नाम के पीछे पंजाब की वो कहानी है, जिसने दुनिया भर में लोगों को शॉक्ड कर दिया था.
कौन थे जसवंत सिंह खालड़ा?
पंजाब में 1970 के दशक के अंत तक खालिस्तानी आंदोलन जोर पकड़ चुका था. मगर 1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या और सिख विरोधी दंगों के बाद से पंजाब ने मिलिटेंसी का सबसे खूनी दौर देखा जो लगभग 1995 यानी एक दशक से ज्यादा वक्त तक चला. इस दौर में पंजाब पुलिस पर भी बहुत दाग लगे. उनपर एक बड़ा आरोप ये था कि वे लड़कों को आतंकवादी होने के संदेह के बिना सबूत गिरफ्तार करके उनके एनकाउंटर कर रही है और मामलों को छुपाने के लिए लाशों को 'लावारिस' बताकर उनका अंतिम संस्कार भी कर दे रही हैं.
ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट जसवंत सिंह खालड़ा, अमृतसर, पंजाब के सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक में डायरेक्टर थे. द लल्लनटॉप की एक रिपोर्ट के अनुसार, जसवंत के साथ ही बैंक में काम करने वाले पियारा सिंह को पुलिस ने उत्तरप्रदेश से अरेस्ट किया, जब वो अपने किसी रिश्तेदार के यहां गए हुए थे. मगर इसके बाद पियारा की कोई खबर नहीं मिली. परिवार, रिश्तेदार और साथी उन्हें खोजने लगे. जसवंत को पता चला कि पियारा का एनकाउंटर कर दिया गया है और अमृतसर के दुर्गीयाना मंदिर के शमशान घाट में बिना किसी को बताए उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया है.
मल्लिका कौर की किताब 'Faith, Gender, and Activism in The Punjab Conflict: The Wheat Fields Still Whisper' में इस घटना का जिक्र मिलता है. जसवंत ने सिर्फ दुर्गीयाना मंदिर ही नहीं बल्कि बाकी शमशान घाटों के रजिस्टर चेक करने शुरू किए तो पता चला कि पुलिस जगह-जगह सैकड़ों लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कर रही है.
जसवंत ने ऐसे मामलों पर खूब रिसर्च की और दावा किया कि पंजाब पुलिस करीब 25,000 लोगों की गैर कानूनी हत्या और अंतिम संस्कार में शामिल रही है. जाहिर सी बात है पुलिस ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया. यहां से जसवंत दुनिया भर में चर्चा में आ गए और उन्होंने मीडिया, जनता दुनिया भर की ह्यूमन राइट्स संस्थाओं का ध्यान इस तरफ खींचना शुरू कर दिया. बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा और सीबीआई जांच भी हुई. कोर्ट में सामने आया कि जून 1984 से दिसंबर 1994 के बीच सिर्फ अमृतसर, मजीठा और तरण-तारण में ही पुलिस ने 2097 'लावारिस' शवों के अंतिम संस्कार किए हैं. 15 जुलाई 2004 को द ट्रिब्यून में ह्यूमन राइट्स कमीशन ने 693 नामों की एक लिस्ट छपवाई, जिनकी पहचान 2097 मृतकों में से कर ली गई थी.
इस सनसनीखेज मामले को सामने लाने वाले जसवंत 6 सितंबर 1995 को अपने घर के बाहर अपनी कार धो रहे थे. कुछ पुलिस वाले आकर उन्हें साथ ले गए. इसके बाद जसवंत कहां गए, किसी को कुछ पता नहीं चला. पुलिस ने इस मामले में एफ.आई.आर. नहीं दर्ज की तो जसवंत की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दी और कोर्ट ने सीबीआई को जांच का आदेश दिया.
1996 में सीबीआई को सबूत मिले कि जसवंत को तरण तारण के एक पुलिस स्टेशन में रखा गया था और फिर उनकी हत्या कर दी गई. सीबीआई ने बतौर आरोपी पंजाब पुलिस के कई अधिकारियों के नाम सामने रखे. जिसमें से 4 को उम्रकैद की सजा भी हुई. 'पंजाब '95' में दिलजीत दोसांझ ने इन्हीं जसवंत सिंह खालड़ा का किरदार निभाया है. फिल्म में उनके साथ बॉलीवुड एक्टर अर्जुन रामपाल और 'कोहरा' वेब सीरीज से चर्चा में आए सुविंदर विक्की भी हैं.
सेंसर से जूझ रही है कंगना रनौत की भी फिल्म
दिलचस्प बात ये है कि बॉलीवुड एक्ट्रेस और बीजेपी सांसद कंगना रानौत की फिल्म 'इमरजेंसी' को लेकर भी हाल ही में सेंसर बोर्ड विवादों में रहा है. कंगना ने आरोप लगाया था कि 6 सितंबर को रिलीज होने वाली इस फिल्म को बोर्ड ने सेंसर सर्टिफिकेट दिया और फिर रोक लिया. इस मामले को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही है.
एक और संयोग ये भी है कि कंगना की फिल्म 'इमरजेंसी' की जिन बातों पर विवाद है वो बड़े तौर पर पंजाब और सिखों से जुड़ी हैं. किसान आंदोलन के दौरान सोशल मीडिया पर कई बार दिलजीत और कंगना में तगड़ी बहस हो चुकी है और ये दोनों एक दूसरे के विपरीत पक्ष में खड़े नजर आते रहे हैं. मगर अब दोनों की ही फिल्में सेंसर बोर्ड के पचड़े में फंसी हुई हैं.
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