घुंघरू बज उठे...स्वर लहरियों ने समां बांधा..यह ऐसे पल थे जिन्हें हर कोई सहेजना चाहता था. एक ऐसी शाम जिसे हर कोई जी लेना चाहता था. गुरु महाराज की याद में, कथक सम्राट की प्रशंसा में, उस अपूर्व कलाकार की स्मृति में पद्म विभूषण बिरजू महाराज के जन्मदिन पर उनको याद करने का मौका था. उनको संगीत नृत्य के श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए लखनऊ के कलाकारों और बिरजू महाराज के शिष्यों ने ये आयोजन किया था.
एक गुरु के लिए उनके जन्मदिवस पर अक्सर शिष्य ऐसे आयोजन करते हैं. पर ये पहला मौका था जब बिरजू महाराज शिष्यों और संगीत प्रेमियों के बीच नहीं थे. बिरजू महाराज के अपने शहर लखनऊ और अपने घर ‘कालका-बिंदादीन की ड्योढ़ी’ में उनका जन्मदिवस मनाया गया. उनको संगीत की भावांजलि दी. 17 जनवरी को पंडित बिरजू महाराज का निधन हुआ था. 4 फरवरी को उनका जन्मदिन था. कथक के तीर्थ समझे जाने वाले कालका-बिंदादीन की ड्योढ़ी पर बिरजू महाराज के शिष्यों के साथ ही गायकों-वादकों और नर्तकों ने उनको श्रद्धांजलि दी.
बिरजू महाराज के पूर्वजों के घर में ये वही कमरा जहां कथक के लखनऊ घराने की शुरुआत से लेकर उसके सफर को दिखाया गया था. घर में चारों तरफ बिरजू महाराज की बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगी हैं. उनकी एक तस्वीर पर श्रद्धासुमन अर्पित किया गया. उनके संस्मरण साझा हुए. उनको गीत संगीत के जरिए श्रद्धांजलि दी गयी. न किसी घराने की पाबंदी थी और न ही विधा की सीमाएं, जिसको जो आया कथक सम्राट के लिए वो प्रस्तुति दी.
इस कार्यक्रम का आयोजन लखनऊ के कलाकारों की ओर से किया गया था पर इसमें लखनऊ के कलाकारों के अलावा कोलकाता और वाराणसी से भी कलाकारों ने यहां पहुंचकर जन्मदिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित की.
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कथक से किया कथक सम्राट को नमन
‘श्रद्धासुमन’ समारोह में कथक के वरिष्ठ कलाकारों से लेकर युवा कलाकारों ने अपनी हाजिरी लगाई. उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की पूर्व अध्यक्ष पूर्णिमा पांडेय, कथक नृत्यांगना कुमकुम धर, भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय की वरिष्ठ शिक्षिका मीरा दीक्षित ने इस अवसर पर कथक के माध्यम से श्रद्धांजलि दी. रेणु शर्मा, सुरभि सिंह, मनीषा मिश्रा, रुचि खरे, सुरभि शुक्ला, अर्चना तिवारी ने भी कथक के माध्यम से कथक के साधक को नमन किया.
रुचि खरे ने महाराज बिंदादीन द्वारा की ठुमरी-‘डगर चलत देखो श्याम’ पर भाव प्रदर्शन किया तो अर्चना तिवारी ने वाजिद अली शाह की ठुमरी ‘ बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए’ नृत्य प्रस्तुति दी.
कोलकाता के असीम बंधु भट्टाचार्य ने विश्वविख्यात गुरु को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए धमार में रचनाएं प्रस्तुत की तो वाराणसी से विशाल कृष्ण और सौरभ-गौरव मिश्र ने भी कथक के माध्यम से बिरजू महाराज को नमन किया.
मालिनी अवस्थी के गायन पर हुआ कथक
पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने सुरों के ज़रिए कथक सम्राट को श्रद्धांजलि दी. उन्होंने जब मौजूद कथक कलाकारों को भाव प्रदर्शन के लिए आमंत्रित किया तो सुरभि सिंह,अनुज मिश्र, मनीषा मिश्र, विशाल कृष्ण, सौरव गौरव ने भाव किया।मालिनी अवस्थी ने रंग डारूंगी नंद के लालन पर सुनाया... आयोजन में कई लोगों ने बिरजू महाराज से जुड़ी बातों को साझा किया। संचालन आलोक पराड़कर ने किया तो गायिका कमला श्रीवास्तव, पंडित बिरजू महाराज की बहन रामेश्वरी देवी, वरिष्ठ कथक नृत्यांगना कुमकुम आदर्श, अनीता भार्गव ने संस्मरण सुनाए.
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कालका बिंदादीन ड्योढ़ी
ये बिरजू महाराज का वो घर है जिसमें रहकर उनके पूर्वजों ने नृत्य की साधना की. यहीं कथक के लखनऊ घराने ने जन्म लिया. यहां बिरजू महाराज के पूर्वज ठाकुर प्रसाद नवाबों के समय में आकर बसे. ये आवास उनको रहने के लिए दिया गया था. उसके बाद पीढ़ी दर पीढ़ी यहां कथक नृत्य ऐसा विकसित हुआ कि बिंदादीन महाराज, कालका प्रसाद, शम्भु महाराज, लच्छु महाराज और बिरजू महाराज जैसे कथक के विश्व विख्यात गुरुओं ने यहीं से शिष्यों को सिखाया।इस घर के ग्राउंड फ्लोर को संग्रहालय का रूप दिया गया है. कथक के विद्यार्थियों के लिए ये ड्योढ़ी तीर्थ से कम नहीं.
शिल्पी सेन