शाहरुख खान फिल्म 'पठान' ने जनता को एडवांस में कह दिया था कि 'कुर्सी की पेटी बांध लीजिए, मौसम बिगड़ने वाला है.' इस वादे को पूरा करते हुए शाहरुख की फिल्म ने मौसम तो बिगाड़ा, और बॉक्स ऑफिस पर कलेक्शन की ऐसी सुनामी ले आई कि कलेक्शन 1000 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुका है. 'पठान' में शाहरुख का धांसू एक्शन अवतार, दीपिका पादुकोण के साथ उनकी केमिस्ट्री और जॉन अब्राहम का विलेन रोल जनता को खूब भाया. मगर फिल्म देखने के बाद एक चीज की कमी कई लोगों को लगी.
आदित्य रॉय कपूर और अनिल कपूर की वेब सीरीज 'द नाइट मैनेजर' उस कमी को बखूबी पूरा करती है जो कई लोगों को 'पठान' में दिखी. सिर्फ शाहरुख की फिल्म ही नहीं, बल्कि पूरे स्पाई यूनिवर्स में अब कहानियों का पैटर्न बदल रहा है और इनमें 'स्पाई' वाली बात गायब होती जा रही है. स्पाई यूनिवर्स की पहली फिल्म 'एक था टाइगर' में सलमान का किरदार सीक्रेट एजेंट था और जासूसी करता भी नजर आया था. लेकिन इसके बाद से स्पाई यूनिवर्स के किरदार फील्ड में एक्शन करने वाले स्पेशल एजेंट टाइप ज्यादा होते जा रहे हैं, बजाय जासूसी करने के.
हॉटस्टार पर हाल ही आई सीरीज 'द नाइट मैनेजर' अपनी कहानी में एक सच्ची जासूसी थ्रिलर है. सोशल मीडिया पर 'द नाइट मैनेजर' की चर्चा रफ्तार पकड़ रही है और लोग सीरीज की तारीफ़ कर रहे हैं. आइए आपको बताते हैं 'द नाइट मैनेजर' देखने की 5 सॉलिड वजहें:
1. स्पाई-थ्रिलर के पैमाने पर खरी उतरती कहानी
2018 में आई 'राजी' के बाद से हिंदी फिल्म या सीरीज में शायद ही कोई ऐसा किरदार दिखा है जो एक ऐसी सिचुएशन में जासूसी करता दिखा हो कि दर्शक को लगे 'अगर ये पकड़ा गया, तो बचेगा नहीं!' इस मामले में 'द नाइट मैनेजर' एक टाइट प्लॉट लेकर आई है. आदित्य रॉय कपूर का एक्स-नेवी ऑफिसर किरदार शान, कहानी में एक बड़े अवैध हथियार सिंडिकेट की जानकारी जुटा रहा है.
अनिल कपूर का किरदार शैली, नामी बिजनेसमैन है लेकिन असल में अवैध हथियारों के काम में लगा हुआ है. उसके पूरे सेटअप में शान का घुसना ऐसा है जैसे लकड़ी में दीमक लगती है. ऐसा नहीं है कि शान एक्शन में नहीं दिखता, लेकिन उसका एक्शन जरूरत पर बेस्ड है. ये ऐसा किरदार और प्लॉट ही नहीं है जहां एक दर्शक एक्शन देखना भी चाहेगा. बल्कि यहां कहानी में एक्शन की नौबत आने पर भी लगता है कि इससे कहीं रायता न फैल जाए.
2. कहानी की पेस
'द नाइट मैनेजर' में लगातार एक सस्प्सेंस बना रहता है. कहानी की पेस ज्यादातर हिस्सों में बराबर रहती है. जहां कहीं नैरेटिव की स्पीड स्लो भी लगती है, वहां ड्रामा को इफेक्टिव बनाने के लिए ऐसा किया हुआ लगता है. ऐसा नहीं लगता कि राइटिंग की कमी के चलते आप स्क्रीनप्ले से कटकर स्लो फील कर रहे हैं.
एक सरसरी तौर पर देखें तो 'द नाइट मैनेजर' में बहुत सारे प्लॉट-ट्विस्ट और सेटअप आप पहले से गेस कर सकते हैं. मगर जिस तरह से ये होता है, वो इम्प्रेस करता है. मतलब आप मोमेंट का आना सेन्स कर लेते हैं, हाइप बन जाती है कि अब कुछ होने वाला है. मगर जो होता है उसका ट्रीटमेंट वैसा ओवर द टॉप नहीं है जैसा पॉपुलर एंटरटेनर शो या फिल्म में देखने की आदत हो चुकी है. बल्कि एक निर्णायक मोमेंट में सबकुछ बहुत ठहराव के साथ होता है. यही शो का सबसे सरप्राइज करने वाला फैक्टर है. सैम सी एस का बैकग्राउंड स्कोर इस इफ़ेक्ट को बहुत सूट करता है.
3. अच्छा एडाप्टेशन
आदित्य रॉय कपूर का शो, ब्रिटिश शो 'द नाइट मैनेजर' का हिंदी एडाप्टेशन है. ऑरिजिनल शो बहुत पॉपुलर है और इसकी खूब तारीफ की जाती है. श्रीधर राघवन ने हिंदी में एडाप्ट करते हुए कहानी को जिस तरह इंडियन कॉन्टेक्स्ट में ढाला है, वो बहुत असरदार है. जैसे ऑरिजिनल इंग्लिश शो में, लीड कैरेक्टर का पहला सामना जिस फीमेल किरदार के साथ होता है, वो उसके साथ एक रोमांटिक इंटिमेसी में नजर आती है. ये लड़की लीड किरदार के लिए मोटिवेशन बनती है. जबकि हिंदी एडाप्टेशन में ये फीमेल किरदार एक 14 साल की बच्ची है, जो एक रईस बांग्लादेशी बिजनेसमैन की चौथी बीवी है. वो किसी तरह भाग निकलना चाहती है और शान उसकी मदद करता है.
एक टिपिकल देसी सेंटिमेंट के साथ, 'द नाइट मैनेजर' के हिंदी एडाप्टेशन में एक तरह की इमोशनल ग्रेविटी बढ़ जाती है. इंग्लिश से हिंदी में एडाप्ट हुए शो में एक और चीज नई लगती है- बच्चों से बड़ों के रिलेशनशिप. शैली का उसके बेटे ताहा के लिए प्यार, शान और ताहा का बॉन्ड और दूसरे किरदारों का बच्चों के साथ इमोशनल अटैचमेंट स्क्रीनप्ले में ट्रीटमेंट को बदलता है.
'द नाइट मैनेजर' हिंदी में जियोग्राफी को भी ज्यादा लोकल बनाया गया है. कहानी में शिमला, बांग्लादेश, श्रीलंका, दिल्ली का नजर आना इंडियन ऑडियंस को कनेक्ट करने का एक मौका देता है. जबकि मेकर्स आराम से इस कहानी का प्लॉट किसी यूरोपियन देश में सेट कर सकते थे. लेकिन फिर ये ऑरिजिनल शो के साथ सीधा कनफ्लिक्ट में लगता और इसका फील बदल जाता.
4. एक्टर्स की दमदार परफॉरमेंस
शान के रोल में अपने एक-एक सीन में आदित्य रॉय कपूर आपको इम्प्रेस करेंगे. फिजिकली तो वो एक 'स्पाई बना एक्स-नेवी ऑफिसर' लगते ही हैं, लेकिन स्क्रीनप्ले के बड़े मोमेंट्स में उनके एक्सप्रेशन में नजर आती स्थिरता बहुत इम्प्रेसिव है. जैसे एक सीन में शैली, शान को बता रहा है कि वो उसकी सारी असलियत जान गया है. इस सीन में अदित्य का क्लोज अप है और उनके चेहरे पर घबराहट, डर या गुस्सा एक्सप्रेस करने की कोई जल्दबाजी नहीं दिखती.
अनिल कपूर के पास अपने ट्रेडमार्क चमकदार अंदाज को किरदार में भर देने का पूरा मौका था. लेकिन सबसे इंटेंस मौकों पर अनिल टिपिकल बॉलीवुड रिएक्शन से बचते हैं और इम्प्रेस करते हैं. शोभिता धुलिपालाको हर फ्रेम में सेंशुअस लगना था, जो उनके लिए कभी भी कोई बड़ा टास्क नहीं रहा. लेकिन अपने हिस्से आए दो-तीन इंटेंस सीन में वो जिस तरह एक्ट करती हैं, आपको लगेगा कि 'ये और देखना है'. शैली के राईट हैंड, हर चीज को शक की नजर से देखने वाले और शब्दों में जहर घोलकर बोलने वाले ब्रिज पाल उर्फ़ बी जे के रोल में शाश्वत चैटर्जी एक बार फिर दिखाते हैं कि उनका एक्सपीरियंस कितना तगड़ा है. हालांकि उनके किरदार में होमोसेक्सुअलिटी का एंगल थोड़ा सम्मान के साथ लिखा जाता तो और अच्छा लगता.
एक्टिंग के लेवल पर चल रही इस पार्टी में सबसे ज्यादा मजा तिलोत्तमा शोमे करती दिख रही हैं. पूरा ऑपरेशन संभाल रही इंटेलिजेंस ऑफिसर लिपिका के रोल में उन्हें हर बार स्क्रीन पर देखना एक अलग खुशी देता है. वो सबसे हार्ड सिचुएशन में सबसे कैजुअल लाइन बोल सकती हैं और वो भी उसकी सीरियसनेस कम किए बिना. उनके किरदार का प्रोफेशन ऐसा है जो बहुत गंभीर है, लेकिन उनकी अप्रोच इस किरदार को 'पुराना एक्सपर्ट' बनाकर सामने रखती है.
5. एक रिफ्रेश करने वाला चेंज
'द नाइट मैनेजर' का पूरा मजा कहानी के ट्रीटमेंट में है. जरा भी ओवर द टॉप ट्रीटमेंट शो को बॉलीवुड मसाला एंटरटेनर फिल्म वाले जोन में ले जाता. जबकि ट्रीटमेंट और एक्टिंग परफॉरमेंस में थोड़ी और सादगी शो को बोरिंग बना देती.
'आर्या' जैसी पॉपुलर सीरीज आर काम कर चुके संदीप मोदी 'द नाइट मैनेजर' के शो रनर हैं. उन्होंने अपनी साथी डायरेक्टर प्रियंका घोष के साथ मिलकर मेनस्ट्रीम स्टाइलिश अंदाज में आर्टहाउस सेंसिबिलिटी का छौंक लगाकर एक दिलचस्प कॉम्बिनेशन तैयार किया है. और यही वजह है कि जहां ये कहानी आपको छोड़ती है, उससे आगे जल्दी जानने की जिज्ञासा बनी रहती है.
सुबोध मिश्रा