जहां तीन बार से जीत रही है BJP, उस दमन दीव से प्रियंका गांधी को उतारने की तैयारी में क्यों है कांग्रेस?

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के दमन और दीव लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा है. 2009 चुनाव से ही इस सीट से बीजेपी जीत हासिल करती आ रही है. ऐसे में वह कौन से फैक्टर्स हैं जिनकी वजह से कांग्रेस को यहां जीत की उम्मीद नजर आ रही है?

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प्रियंका गांधी के राज्‍यसभा चुनाव लड़ने की अटकलें तेज  प्रियंका गांधी के राज्‍यसभा चुनाव लड़ने की अटकलें तेज

बिकेश तिवारी

  • नई दिल्ली,
  • 05 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 8:44 AM IST

केंद्र शासित प्रदेश दमन और दीव चर्चा में आ गया है. इसकी वजह है दमन और दीव कांग्रेस के अध्यक्ष केतन पटेल का एक बयान. केतन पटेल ने कहा है कि प्रियंका गांधी दमन दीव लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकती हैं. उन्होंने यह भी दावा किया कि इसे लेकर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा भी हो चुकी है और सभी समीकरणों का ध्यान रखते हुए प्रियंका गांधी को इस सीट से उतारने के लिए चुनावी गणित भी सेट कर लिया गया है. राष्ट्रीय नेतृत्व ने इसे लेकर उनसे चर्चा भी की है.

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प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने की चर्चा शुरू हुई तो अब दमन और दीव लोकसभा सीट के चुनावी अतीत के पन्ने पलटे जाने लगे हैं तो साथ ही तलाशे जाने लगे हैं वह आधार भी, जिनकी बुनियाद पर कांग्रेस यह दांव खेल सकती है. साल 2004 के बाद से कांग्रेस यह सीट नहीं जीत सकी है. 2009 से ही इस सीट से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) जीत रही है. ऐसे में वह कौन से फैक्टर हैं जिनकी वजह से कांग्रेस को इस सीट पर जीत का सूखा खत्म होने की उम्मीद नजर आ रही है?

दमन और दीव लोकसभा सीट से बीजेपी के लालूभाई पटेल सांसद हैं. लालूभाई 2009 से ही लोकसभा में इस सीट का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं. लगातार तीन चुनाव जीत चुके लालूभाई को बीजेपी ने इस बार भी दमन और दीव सीट से टिकट दे दिया है. तीन बार के सांसद लालूभाई जीत का चौका लगाने की कोशिश में हैं तो वहीं कांग्रेस यह उम्मीद है कि 15 साल लंबे कार्यकाल के एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर को भुनाकर इस सीट पर बीजेपी का विजय रथ रोका जा सकता है.

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हार का कम अंतर

कांग्रेस 2004 के लोकसभा चुनाव में जब आखिरी बार दमन और दीव सीट जीती थी, तब जीत का अंतर महज 607 वोट रहा था. तब कांग्रेस के पटेल दहयाभाई वल्लभभाई चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे. 2009 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर कुल 95 हजार 382 मतदाता थे जिनमें से 68 हजार 23 मतदाताओं ने वोट किया था. तब बीजेपी के लालूभाई पटेल को 24838 वोट के अंतर से जीत मिली थी लेकिन 2014 और 2019 के चुनाव में मोदी लहर के बावजूद जीत का अंतर 10 हजार वोट तक भी नहीं पहुंचा.

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साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कुल 1 लाख 11 हजार 827 में से 87 हजार 233 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया था. बीजेपी को जीत मिली थी लेकिन अंतर 9222 वोट का था. 2019 के चुनाव में 87 हजार 469 वोट पोल हुए थे. जीत फिर से बीजेपी को मिली लेकिन अंतर 10 हजार से कम ही रहा. कांग्रेस को 9942 वोट से शिकस्त झेलनी पड़ी थी और तब निर्दलीय उम्मीदवार को 19938 वोट मिले थे. 2009 का चुनाव छोड़ दें तो पिछले दोनों चुनाव में इस सीट पर जीत-हार का अंतर 10 हजार से कम रहा है.

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और कौन से फैक्टर

केतन पटेल के दावे के मुताबिक अगर दमन और दीव लोकसभा सीट से कांग्रेस अगर प्रियंका गांधी को उतारने पर चर्चा कर रही है तो इसके पीछे आदिवासी वोटर्स के साथ ही गुजरात के सौराष्ट्र इलाके का वोट गणित भी एक वजह हो सकता है. दमन और दीव की आबादी में करीब सात फीसदी भागीदारी आदिवासी समाज की है. आदिवासी कांग्रेस के परंपरागत वोटर माने जाते हैं.

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गुजरात का सौराष्ट्र रीजन भी केंद्र शासित प्रदेश दमन और दीव से सटा हुआ है. सौराष्ट्र रीजन में सात लोकसभा सीटें आती हैं- कच्छ, राजकोट, जामनगर, जूनागढ़, पोरबंदर, अमरेली और भावनगर. कांग्रेस नेताओं को यह भी उम्मीद है कि अगर कोई बड़ा चेहरा दमन और दीव से चुनाव मैदान में उतरता है तो इसका सकारात्मक असर सौराष्ट्र में भी देखने को मिल सकता है.

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