पश्चिम बंगाल: कम्युनिस्ट पार्टी ने युवा चेहरों पर लगाया दांव, जानें कहां से किसे दिया टिकट

पार्टी ने मौजूदा सांसदों को मैदान में उतार दिया है तो किसी पार्टी ने सितारों पर दांव खेला है. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से युवा चेहरों पर ज्यादा भरोसा जताया गया है.

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सीपीएम ने युवा चेहरों पर जताया भरोसा (फाइल फोटो) सीपीएम ने युवा चेहरों पर जताया भरोसा (फाइल फोटो)

आशुतोष मिश्रा

  • कोलकाता,
  • 15 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 7:10 PM IST
  • पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में दमखम लगा रही पार्टियां
  • पार्टियां अलग-अलग चेहरों पर लगा रही हैं दांव

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में अलग-अलग पार्टियां अलग-अलग चेहरों पर दांव लगा रही हैं. किसी पार्टी ने मौजूदा सांसदों को मैदान में उतार दिया है तो किसी पार्टी ने सितारों पर दांव खेला है. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से युवा चेहरों पर ज्यादा भरोसा जताया गया है.

छात्र राजनीति से जुड़े और यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे छात्रों को सीपीएम की ओर से पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए कई सीटों पर उम्मीदवार बनाया गया है. एक नजर डालते हैं उन युवा छात्र नेताओं पर जो अब विधायक बनने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं. 

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1. दीप्शिता धर 

सीपीएम की ओर से बल्ली विधानसभा सीट से 27 साल की दीप्शिता धर को उम्मीदवार बनाया गया है. दीप्शिता, दिल्ली के जवाहरलाल यूनिवर्सिटी में पीएचडी की छात्र हैं और कम्युनिस्ट पार्टी के छात्र विंग स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया की ऑल इंडिया ज्वाइंट सेक्रेट्री हैं. दीप्शिता, दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में छात्र आंदोलन से लेकर कई सामाजिक धरने प्रदर्शन में शामिल होती रही हैं. दीप्शिता के पिता कोलकाता में ट्रांसपोर्ट विभाग में काम करते हैं और उनके दादा दोमजूर विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं. जबकि उनकी मां सीपीएम की एरिया कमेटी सदस्य हैं. 

इनका पूरा परिवार शुरू से ही वामपंथी विचारधारा से जुड़ा रहा और राजनीति में सक्रिय रहा. पिता की नौकरी घर में कमाई का एकमात्र जरिया है. पीएचडी की पढ़ाई कर रही दीप्शिता जेएनयू के हॉस्टल में रहती हैं. जिस बल्ली सीट से सीपीएम कि यह युवा उम्मीदवार मैदान में है वहां से तृणमूल कांग्रेस की ओर से डॉ राणा चटर्जी को मैदान में उतारा गया है. 

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जबकि बीजेपी की ओर से अभी तक उम्मीदवार की घोषणा नहीं की गई है. दिलचस्प बात यह है कि इसी बल्ली सीट से आईसीसी के पूर्व प्रेसिडेंट जगमोहन डालमिया की बेटी वैशाली डालमिया तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर विधायक थीं. जो अब पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गईं है.  

27 साल की दीप्शिता धर ने चुनाव लड़ने का फैसला क्यों किया? 
आजतक के इस सवाल पर दीप्शिता कहती हैं, "हम पार्टी के अनुशासित कार्यकर्ता हैं और यहां पार्टी जो जिम्मेदारी देती है हम उसे बिना कोई सवाल उठाए पूरा करते हैं. मेरे चुनाव लड़ने के फैसले पर परिवार ने भी सहमति जताई थी." पार्टी के बड़े नेता भी उनके प्रचार के लिए जाएंगे और गोरखपुर के डॉक्टर कफील खान ने भी धर की उम्मीदवारी को अपना समर्थन दिया है. 

10 मार्च को दीप्शिता धर की उम्मीदवारी का ऐलान हुआ था. उसके बाद से लगातार वह अपनी विधानसभा क्षेत्र में पदयात्रा और गेट मीटिंग कर रही हैं. जिसमें अलग-अलग फैक्ट्री और मिलों के कर्मचारियों से वह समर्थन मांग रही हैं. कभी यही मिल कर्मचारी कम्युनिस्ट पार्टी का वोट बैंक हुआ करते थे. 

दीप्शिता कहती हैं, "मैं समाज की दूसरी साधारण लड़कियों की तरह ही हूं जो जीवन के हर संघर्ष से गुजरी है. चुनाव हारें या जीतें, हम अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को पूरा करेंगे. मैं लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए लड़ती रहूंगी." 

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अपने चुनाव प्रचार के लिए धर क्राउड फंडिंग का सहारा लेंगी. हालांकि उनका कहना है कि चुनाव प्रचार के लिए पार्टी की ओर से हर संभव मदद मुहैया कराई गई है. सीपीआई नेता और जेएनयू के पूर्व छात्र यूनियन अध्यक्ष कन्हैया कुमार भी इनके लिए चुनाव प्रचार करने जा सकते हैं. 
 
2. मीनाक्षी मुखर्जी

पश्चिम बंगाल में वामपंथी पार्टी के कट्टर विरोधी तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी के सामने कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने युवा चेहरे को ही उतारा है. 37 साल की मीनाक्षी मुखर्जी, कम्युनिस्ट पार्टी की यूथ विंग डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया की स्टेट कमिटी प्रेसिडेंट हैं और कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य हैं. मीनाक्षी का परिवार राजनीतिक है और उनके पिता किसान आंदोलन से जुड़े रहे जबकि उनकी मां लेफ्ट पार्टी के महिला विंग एडवा से जुड़ी रही हैं. 

पॉलिटिकल साइंस में मास्टर्स करने वाली मीनाक्षी मुखर्जी का परिवार पश्चिम बंगाल के आसनसोल के पास रहता है. मीनाक्षी मुखर्जी ने पढ़ाई पूरी करने के बाद एक कॉलेज में लैब असिस्टेंट के तौर पर काम करना शुरू किया लेकिन अब फुल टाइम पार्टी कार्यकर्ता हैं. 

मीनाक्षी कहती हैं कि उनके घर चलाने के लिए आर्थिक मदद पार्टी द्वारा की जाती है और पार्टी ही उनका चुनावी प्रचार का खर्च भी उठा रही है. मीनाक्षी मुखर्जी का यह पहला चुनाव है जिसमें वह सीधे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी के सामने चुनाव लड़ रही हैं. इसी सीट पर तृणमूल कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए शुभेंदु अधिकारी भी मैदान में हैं. ऐसे में दो दिग्गजों के सामने चुनाव लड़ने का अनुभव कैसा है?

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जवाब में मीनाक्षी कहती हैं कि मैदान में एक तरफ तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो हैं तो दूसरी तरफ तृणमूल कांग्रेस छोड़ कर आए हुए शुभेंदु अधिकारी हैं. जो अपने कार्यकाल में ममता बनर्जी का ही हुकुम मानते रहे. मीनाक्षी का आरोप है कि नंदीग्राम में कम्युनिस्ट पार्टी के कई कार्यकर्ताओं की हत्या की गई और नंदीग्राम का नाम अब सिर्फ राजनीतिक बवाल के लिए जाना जाने लगा है. जो कि इस क्षेत्र के लिए शर्म की बात है. मीनाक्षी कहती हैं कि चुनाव वह नहीं लड़ रही हैं बल्कि नंदीग्राम की जनता लड़ रही है जो उनके साथ है.

3. आइशी घोष 

आइशी घोष, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ की अध्यक्ष हैं और सीपीएम ने उन्हें बंगाल के जमुरिया सीट से चुनाव मैदान में उतारा है. छात्र राजनीति से निकलकर आईसी घोष के लिए असली राजनीति आजमाने का पहला मौका है. जेएनयू छात्रसंघ चुनाव जीतने के बाद अब छात्र नेता चुनाव में किस्मत आजमाएंगी. 

आईशी घोष की तस्वीरें तब खूब वायरल हुई थीं जब जेएनयू में हमलावर घुसे थे. इस हमले में आइशी घोष के सर पर चोट आई थी. यह वही वक्त था जब दीपिका पादुकोण भी जेएनयू में हमले के खिलाफ छात्रों के समर्थन में विश्वविद्यालय पहुंची थीं. 27 साल की आइशी के परिवार में उनके पिता, मां और छोटी बहन हैं. 

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उनके पिता सरकारी नौकरी करते हैं और पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर के रहने वाले हैं. आइशी, जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में पीएचडी की छात्रा हैं. जिस जमुरिया विधानसभा सीट से आइशी घोष को सीपीएम ने चुनावी मैदान में उतारा है वो पारंपरिक तौर से ही सीपीएम की सीट रही है. यहां से मौजूदा विधायक भी सीपीएम से ही हैं. जिनका टिकट काटकर, आइशी घोष को लड़ाया जा रहा है. 

4. पृथा ताह

28 साल की पृथा ताह, सीपीएम की वर्धमान दक्षिण से उम्मीदवार हैं. पृथा के पिता, कम्युनिस्ट पार्टी के सीटू विंग के नेता थे. साल 2012 में उनके पिता प्रदीप ताह की हत्या कर दी गई थी. प्रदीप ताह भी वर्धमान से कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक थे. हत्या का आरोप तृणमूल कार्यकर्ताओं पर लगाया गया था. पृथा मास कम्युनिकेशन में मास्टर्स की पढ़ाई कर चुकी हैं और अब फुल टाइम पार्टी कार्यकर्ता हैं. 

घर में आमदनी का एकमात्र जरिया उनकी मां की पेंशन है जो स्कूल में टीचर थीं और अब रिटायर हो चुकी हैं. पिछले 10 सालों से प्रथा कोलकाता में तीन कमरों के घर में रहती हैं. पृथा का कहना है कि पार्टी के अनुशासित कार्यकर्ता होने के नाते जब चुनाव लड़ने के लिए कहा गया तो वह तैयार हो गईं. प्रथा का कहना है कि यह चुनाव उनके लिए एक फील्ड वर्क जैसा है. 

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वह लंबे समय तक के लिए संघर्ष करने के लिए तैयार हैं. प्रथा कहती हैं कि अगर वह चुनाव जीत गई तो वर्धमान के स्थानीय मुद्दों  के साथ-साथ पश्चिम बंगाल के मुद्दों पर भी आवाज उठाएंगी.

 

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