बिहार में मतदाता सूची संशोधन (SIR) प्रक्रिया के बाद विपक्षी INDIA Bloc दलों ने जमीनी स्तर पर बड़े पैमाने पर बूथ लेवल वेरिफिकेशन कैंपेन शुरू कर दिया है. RJD से लेकर CPI-ML तक सभी दल अपने बूथ लेवल एजेंट्स (BLAs) के जरिए वोटर लिस्ट की जांच में जुटे हैं. विपक्ष का आरोप है कि मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई है और लाखों लोगों का नाम कट गया है. वहीं, चुनाव आयोग पर डेटा पारदर्शिता न बरतने के आरोप लगाए जा रहे हैं.
RJD ने बक्सर से वेरिफिकेशन की शुरुआत की. सांसद सुधाकर सिंह की निगरानी में 30 सितंबर की रात से ही बूथ स्तर पर BLAs को मतदाता सूची सौंप दी गई. बुधवार सुबह से ही रिपोर्ट्स आने लगीं. सुधाकर सिंह का दावा है कि कई परिवारों में पुरुष सदस्यों के नाम काट दिए गए जबकि महिला सदस्य सूची में मौजूद हैं. उन्होंने यह भी कहा कि एक मतदाता का नाम दो विधानसभा क्षेत्रों रामगढ़ और बक्सर में दर्ज है, जिससे वह दोहरी वोटिंग का पात्र बन जाता है.
48 घंटे में आपत्ती दाखिल करेगी आरजेडी
RJD नेता का कहना है कि वोटर लिस्ट मशीन रीडेबल नहीं है. अगर डेटा मशीन रीडेबल होता तो डबल एंट्री, EPIC नंबर के आधार पर जोड़-घटाव और 100 साल से अधिक उम्र वालों के नाम की छंटनी करना आसान होता. सुधाकर सिंह ने बताया कि पार्टी ने पिछले तीन महीनों में अपने BLAs को ट्रेनिंग दी थी और अब वे अगले 48 घंटों में यह प्रक्रिया पूरी कर आपत्तियां दाखिल करेंगे.
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SIR के लिए किसी दल से चर्चा नहीं की: CPI-ML
CPI-ML ने भी अपने गढ़ वाले इलाकों में BLAs को लगाया है. महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने आरोप लगाया कि मैक्रो डेटा हकीकत छिपा रहा है. उनका कहना है कि महिलाओं के नाम असमानुपातिक रूप से काटे गए हैं और Form 6 का इस्तेमाल अब उन मतदाताओं के लिए भी अनिवार्य कर दिया गया है जिनके नाम सूची से हटा दिए गए थे. इतने बड़े अभ्यास के लिए चुनाव आयोग ने सिर्फ सर्कुलर और प्रेस रिलीज जारी की, किसी राजनीतिक दल से चर्चा नहीं की.
CPI-ML ने त्योहारों के समय डेटा जारी करने पर भी सवाल उठाया. पार्टी का कहना है कि जब BLAs और कार्यकर्ता त्योहारों में व्यस्त हैं, तब इतने सीमित समय में डेटा की जांच और आपत्तियां दाखिल करना कठिन है. भट्टाचार्य ने कहा कि 65 लाख नाम काटे गए लेकिन यह साफ नहीं है कि इनमें से कितने दोबारा जोड़े गए.
योगेंद्र यादव ने भी उठाए सवाल
चुनावी विश्लेषक योगेंद्र यादव ने भी चुनाव आयोग पर सवाल उठाए. उनका कहना है कि SIR प्रक्रिया के मूल स्वरूप में बिहार के 1.5 करोड़ मतदाताओं को मताधिकार से वंचित किया जा सकता था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चुनाव आयोग ने अपनी ही गाइडलाइन बदली और वंशावली क्लॉज के तहत लगभग 77% मतदाताओं को छूट दी.
यादव ने Form 6 के जरिए नए नाम जुड़ने पर भी संदेह जताया. उन्होंने कहा कि पिछले एक महीने में नए मतदाताओं की संख्या 16 लाख से बढ़कर 21 लाख हो गई. सवाल यह है कि ये 5 लाख अतिरिक्त नाम कहां से आए. यादव के अनुसार, डेटा इमेज फॉर्मेट में होने के कारण विस्तृत विश्लेषण बेहद कठिन है.
विदेशी मतदाताओं के नाम पर भी यादव ने चुनाव आयोग के दावों को चुनौती दी. उन्होंने बताया कि पूरे बिहार में सिर्फ 987 आपत्तियां विदेशी आधार पर दाखिल हुईं, जिनमें से करीब 70% हिंदू मतदाता थे. उनका कहना है कि यह आंकड़ा चुनाव आयोग की दलीलों को कमजोर करता है.
गौरतलब है कि INDIA Bloc की योजना है कि अगले 72 घंटों में वेरिफिकेशन और डेटा विश्लेषण पूरा कर आपत्तियां दाखिल कर दी जाएं. RJD का दावा है कि करीब 70 लाख मतदाताओं का नाम काटा गया है, CPI-ML इसे महिलाओं के खिलाफ असमानुपातिक कटौती बता रही है और योगेंद्र यादव जैसे विशेषज्ञ डेटा की गहन पड़ताल कर विपक्षी दलों को तर्क उपलब्ध करा रहे हैं.
अमित भारद्वाज