तल्ख तेवर, गिव एंड टेक फॉर्मूला... कांग्रेस के दांव से कैसे फंस गए हैं लालू-तेजस्वी?

आरजेडी की तमाम कोशिशों के बावजूद महागठबंधन से तेजस्वी यादव को सीएम फेस घोषित करने पर अभी सहमति नहीं बन सकी है. कांग्रेस सीट शेयरिंग फाइनल होने तक तेजस्वी के नाम पर सहमति देने के मूड में नहीं है. कांग्रेस ने इस एक दांव से लालू यादव और उनकी पार्टी को किस तरह से फंसा दिया है?

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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और तेजस्वी यादव कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और तेजस्वी यादव

रोहित कुमार सिंह

  • पटना,
  • 18 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 4:35 PM IST

बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर गुरुवार के दिन पटना में महागठबंधन की बैठक हुई. इस बैठक में सभी घटक दलों के नेताओं को लेकर समन्वय समिति बनाने का निर्णय लिया गया. इसकी अगुवाई राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के तेजस्वी यादव करेंगे. इस समिति का उद्देश्य है महागठबंधन के सभी घटक दलों के साथ बेहतर तालमेल और रणनीति तैयार करना जिससे विधानसभा चुनाव में एनडीए को मजबूती के साथ टक्कर दी जा सके. आरजेडी को उम्मीद थी कि बैठक के बाद तेजस्वी यादव को महागठबंधन का सीएम फेस बनाने का ऐलान हो जाएगा. बैठक में इस पर मुहर नहीं लग पाई और पार्टी का इंतजार और बढ़ गया है.

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जानकारी के मुताबिक के महागठबंधन की बैठक में तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री चेहरे पर सहमति नहीं बन पाई. इसे लेकर अब सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या कांग्रेस पार्टी केवल दबाव की राजनीति करने के इरादे से ही तेजस्वी का नाम मुख्यमंत्री फेस के रूप में घोषित करने से बच रही है. दरअसल, महागठबंधन की इस बैठक को लेकर दो मुद्दों पर सबकी नजर टिकी थी. पहले सीट बंटवारे का मामला और दूसरा तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री फेस घोषित किया जाना. बैठक में इन दोनों मुद्दों पर कोई फैसला नहीं हुआ. माना जा रहा है कि भविष्य में महागठबंधन की कई राउंड बैठक होगी और इसके बाद ही सीट बंटवारे और मुख्यमंत्री के लिए चेहरे को लेकर कुछ स्थिति साफ हो सकती है.

कांग्रेस की प्रेशर पॉलिटिक्स?

महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर बातचीत शुरू हो चुकी है लेकिन जो मुख्य रूप से सीटों का बंटवारा होना है, वह आरजेडी और कांग्रेस के बीच होना है. 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी 144 और कांग्रेस ने 70 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. बाकी 29 सीटें वामपंथी दलों के खाते में गई थीं. चुनाव नतीजे आए तो आरजेडी सबसे ज्यादा 75 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था. कांग्रेस के केवल 19 विधायक जीत कर आए थे. तब महागठबंधन बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंच सका था और तेजस्वी सरकार बनाने से चूक गए थे.

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कांग्रेस का स्ट्राइक रेट 2020 के विधानसभा चुनाव में केवल 27 फीसदी रहा था और शायद यही वजह है कि इस बार के चुनाव में आरजेडी ज्यादा सीटें नहीं देना चाहती. सूत्रों के मुताबिक इस बार आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव कांग्रेस को केवल 50 सीट देने के पक्ष में हैं. हालांकि, कांग्रेस की डिमांड कम से कम 70 सीट की है. सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस कुछ कम सीटों पर भी चुनाव लड़ने को तैयार हो सकती है लेकिन इसके लिए पार्टी की शर्त है कि उसे मनपसंद सीटें दी जाएं जहां वह मजबूत है.

2020 के चुनाव में कांग्रेस की नाराजगी इस बात को लेकर थी कि लालू यादव ने कांग्रेस को करीब 30 ऐसी सीटें दी थीं जहां खुद उनकी पार्टी पिछले चार-पांच चुनाव से हार रही थी. कांग्रेस इस बार अधिक सतर्क होकर सीट शेयरिंग पर बात कर रही है. पार्टी पुरानी गलती से सीख लेकर आगे बढ़ रही है.

कांग्रेस का एक हाथ से दो, एक हाथ से लो

बिहार चुनाव 2020 में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन का एक कारण तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह को भी माना जाता है. अखिलेश को लालू यादव का करीबी माना जाता है. कहा जाता है कि 2020 में लालू से बात करके अखिलेश प्रसाद सिंह ने कांग्रेस के लिए 70 सीटें हासिल तो कर ली थीं लेकिन उनमें ज्यादातर सीटें ऐसी थीं जहां कांग्रेस कभी मजबूत रही. इसी कारण से कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़कर केवल 19 सीटें ही जीत सकी.

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यह भी एक वजह हो सकती है कि कांग्रेस नेतृ्त्व ने चुनाव से ठीक पहले प्रदेश अध्यक्ष पद से अखिलेश प्रसाद सिंह को हटा राजेश राम को कमान सौंप दी. प्रदेश प्रभारी मोहन प्रकाश की जगह राहुल गांधी के करीबी कृष्णा अल्लावरु को बिहार कांग्रेस के प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी गई. नए प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष, दोनों के ही तेवर आरजेडी को लेकर तल्ख नजर आ रहे हैं. कृष्णा अल्लावरु और राजेश राम ने स्पष्ट कर दिया है कि इस बार कांग्रेस, आरजेडी का छोटा भाई बनकर चुनाव नहीं लड़ेगी.

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शायद यही कारण है कि बिना सीट बंटवारे के कांग्रेस तेजस्वी को महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करने के पक्ष में नहीं है. इसीलिए महागठबंधन की बैठक में भी तेजस्वी के मुख्यमंत्री चेहरे पर कोई सहमति नहीं बनी और पत्रकारों ने लगातार जब कांग्रेस प्रभारी से इस बाबत सवाल पूछा तो उन्होंने इसका कोई सीधा जवाब नहीं दिया. बात साफ है कि कांग्रेस इस बार चाहती है कि आरजेडी सीट बंटवारा सही तरीके से करें और उसे पसंद की सीटें लड़ने को दी जाएं तभी तेजस्वी को सीएम फेस बनाने पर हामी भरी जाएगी. यानी तेजस्वी को सीएम फेस घोषित करने के लिए सहमति नहीं देना कांग्रेस का आरजेडी पर दबाव बनाने के लिए सोची-समझी रणनीति है.

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क्या आरजेडी कांग्रेस को नाराज कर सकती है?

अब सवाल यह भी है कि क्या आरजेडी सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस के दबाव में आएगी या पार्टी को नाराज करेगी? आरजेडी किस हद तक कांग्रेस को नाराज कर सकती है? चर्चा इस बात की भी है कि अगर कांग्रेस को मनचाही सीटें नहीं मिलीं तो पार्टी महागठबंधन से एग्जिट कर अकेले मैदान में उतर सकती है. आरजेडी को भी इस बात का एहसास है कि अगर ऐसा हुआ तो सत्ता विरोधी वोटों का बंटवारा होगा. इसका नुकसान महागठबंधन को ही उठाना पड़ेगा.

2010 के नतीजे भी हैं चेतावनी

आरजेडी के लिए 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव नतीजे भी चेतावनी की तरह हैं. तब आरजेडी और कांग्रेस, दोनों ही दलों ने अलग चुनाव लड़ा था. तब कांग्रेस केवल चार सीटें जीत पाई थी लेकिन आरजेडी भी 22 सीट पर ही सिमट गई थी. लंबे समय तक सूबे की सत्ता का सिरमौर रही आरजेडी का संख्याबल उतना भी नहीं पहुंच सका था कि विपक्ष के नेता का पद उसे मिल सके. आरजेडी नहीं चाहेगी कि इस बार के चुनाव में 2010 की कहानी दोहराई जाए. ऐसे में, आरजेडी के लिए कांग्रेस का बदला मिजाज टेढ़ी खीर साबित हो रहा है. आरजेडी प्रमुख लालू यादव और तेजस्वी यादव के सामने अब बड़ी चुनौती यह है कि कांग्रेस को किस तरह से कम से कम सीटें भी दी जाएं, जिताऊ सीटें अपने पास भी रखी जाएं और नाराजगी भी मोल न लेनी पड़े.

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