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भावुक बच्चों का इमोशनल इंटेलीजेंस इस तरह बढ़ा सकते हैं पेरेंट्स

मानसी मिश्रा
  • 27 जुलाई 2019,
  • अपडेटेड 12:37 PM IST
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कई बच्चे बहुत ज्यादा भावुक होते हैं. वैज्ञानिक मानते हैं कि ऐसे बच्चों में इमोशनल इंटेलीजेंस आम बच्चों से ज्यादा होता है. ये ईक्यू ही एक तरह से वो क्षमता है जिससे कोई प्रभावी और सकारात्मक ढंग से अपनी बात रख पाता है. यही नहीं वो अपनी भावनाओं में नियंत्रण रखना भी सीखने लगता है, लेकिन ये आप पर है कि आप उस बच्चे को किस तरह समझ रहे हैं. आइए यहां जानें, कि कैसे अपने बच्चे के इमोशनल इटेलिजेंस को भांपकर उसकी स्टूडेंट लाइफ से लेकर पूरी लाइफ बनानी है.

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हाई EQ का विकास सफलता को निर्धारित करने में मदद कर सकता है, ये आसपास मौजूद संभावनाओं के लिए ऐसे नये विकल्प तैयार करता है जिसे किसी ने सोचा न हो, या यूं कहें कि आम आदमी ने जिसे संभव ही न माना हो. ऐसे लक्षण एक क्रिएटिव इंसान के ही हो सकते हैं. स्कूल में अपने साथ पढ़ने वाले बच्चों के साथ उसके व्यवहार से लेकर उसके क्लास में प्रदर्शन तक में इसका प्रभाव दिखता है.


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जिन बच्चों का इमोशनल इंटेलीजेंस लेवल हाई होता है वो आपके या आपके आसपास के लोगों की भावनाओं को बेहतर ढंग से समझते हैं. वो अपने आसपास के लोगों के लिए बेहद संवेदनशील होते हैं. इससे उनका सेल्फ मोटिवेशन और कम्यूनिकेशन स्किल बहुत प्रभावी बनता है. वो अपने साथ साथ दूसरों का भी कॉन्फीडेंस लेवल हाई रखते हैं. वहीं दूसरी ओर, जिन छात्रों में भावनात्मक बुद्धि यानी ईक्यू की कमी होती है, वे स्कूल से कम जुड़ पाते हैं, उनकी कक्षा में प्रदर्शन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने की संभावना होती है.


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सर गंगाराम अस्पताल के बाल मनोचिकित्सक डॉ राजीव मेहता ने इस पर हाल ही में एक स्टडी की है. उनका कहना है कि अगर बच्चे के इमोशनल इंटेलीजेंस को बढ़ाना है तो पेरेंट्स को बचपन से ही उसकी फीलिंग्स को समझना चाहिए. अगर वो कुछ देर बच्चे को देकर उसके व्यहार के बारे में पूछ लें तो बच्चे का ईक्यू लेवल बढ़ता है. वो कहते हैं कि वैसे तो हर बच्चे का ईक्यू लगभग बराबर ही होता है, लेकिन इसे डेवलप करने पर बच्चों में  व्यवहार को मैनेज करने के तरीके, सामाजिक ​जटिलताओं को संभालने और पॉजिटिव रिजल्ट देने वाले फैसले लेने की क्षमता बढ़ती है.


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ऐसे बच्चे में ईक्यू बढ़ा सकते हैं. बच्चों की भावनाओं को समझें, उनसे इस बारे में बात करें और जानें कि आपका बच्चा क्या महसूस कर रहा है और उसकी भावनाएं (क्रोध, खुशी, दुख, हताशा) में मदद करें.

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अपने बच्चे की भावनाओं को सुनें

पूछें कि कैसे एक विशेष स्थिति ने उसने क्या महसूस किया. बच्चे में आई कोई भी नेगेटिव फीलिंग को जितनी जल्दी हो सके बात करके सुलझा लें, साथ ही ये जरूर जान लें कि आपका बच्चा सोचता है कि आप समझते हैं कि वो क्या महसूस कर रहा है. इसलिए हमेशा उसे देखकर रिऐक्ट करने की कोशिश करें, जैसे कभी वो खुश दिखे तो पूछे क्या बात है बहुत खुश हो, या दुखी दिखने पर पूछो क्यों निराश दिख रहे हो, इस तरह गुस्सा, हताशा हर भाव को पढ़कर उसे हटा दें.


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बच्चों की किसी समस्या या उसके सामने आई चुनौतियों का समाधान एक साथ खोजें. साथ ही अपने बच्चे के साथ बेहतर संवाद करें. डॉ मेहता कहते हैं कि अपनी खुद की भावनाओं के बारे में खुलकर बात करेंगे तो बच्चे भी आपके साथ अपनी बात रखने में सहज होंगे. इससे आपके और बच्चे के बीच गैप कम होगा, आप अपनी बात रख पाएंगे.

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