दुनिया में कई शहरों में ट्रैफिक का शोर अब 100 डेसिबल (dB) से भी ज्यादा पहुंच रहा है. यह आवाज एयरप्लेन टेक-ऑफ या रॉक कंसर्ट जितनी तेज मानी जाती है.भारत भी इस मामले में पीछे नहीं है. रिपोर्ट के अनुसार, भारत का मुरादाबाद दुनिया का सबसे ज्यादा शोर वाला शहर बना है. दुनिया के सबसे ज़्यादा शोर वाले शहरों में दक्षिण एशिया नंबर वन पर है. रिपोर्ट के अनुसार, टॉप 3 सबसे नॉइजी शहर इसी क्षेत्र के हैं. भारत के कई शहरों में भी स्वीकार्य सीमा से अधिक डेसिबल दर्ज किए गए हैं. इनमें दिल्ली, कोलकाता, आसनसोल और जयपुर प्रमुख हैं, जहां शोर का स्तर 83 से 89 डेसिबल तक रिकॉर्ड किया गया.
हांगकांग में भी ध्वनि प्रदूषण की स्थिति गंभीर
रिपोर्ट में दुनिया के अन्य बड़े शहरों का भी विश्लेषण किया गया. इसमें पाया गया कि न्यूयॉर्क में सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने वाले दस में से नौ लोग रोजाना 70 डेसिबल से ज्यादा शोर के संपर्क में रहते हैं. इतनी तेज शोर उनके कानों को स्थायी नुकसान पहुंचा सकता है. हांगकांग में भी ध्वनि प्रदूषण की स्थिति गंभीर है. रिपोर्ट बताती है कि वहां पांच में से दो लोग तय सीमा से कहीं ज़्यादा ट्रैफिक शोर झेल रहे हैं. यूरोप में भी हालात बेहतर नहीं हैं, क्योंकि वहां आधे से ज़्यादा लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां शोर का स्तर उनके स्वास्थ्य और मानसिक शांति पर नकारात्मक असर डाल सकता है.
दुनिया के सबसे शांत शहरों की लिस्ट जारी
रिपोर्ट में दुनिया के सबसे शांत शहरों की लिस्ट भी जारी की गई. जॉर्डन का इरब्रिड 60 डेसिबल के साथ सबसे शांत शहर पाया गया. इसके बाद फ्रांस का ल्योन और स्पेन का मैड्रिड 69 डेसिबल के साथ दूसरे स्थान पर रहे. वहीं, स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम और सर्बिया का बेलग्रेड 70 डेसिबल के साथ सूची में आगे आए. डब्ल्यूएचओ के 1999 के दिशानिर्देशों के अनुसार, रिहायशी क्षेत्रों में स्वीकार्य शोर सीमा 55 डेसिबल है, जबकि व्यावसायिक और ट्रैफिक वाले क्षेत्रों में यह सीमा 70 डेसिबल तय की गई है. इससे अधिक शोर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है.
मुरादाबाद दुनिया का सबसे शोर वाला शहर क्यों बना?
इसका एक बड़ा कारण पीतल (Brass) उद्योग है. इसे आसान भाषा में ऐसे समझिए. पीतल फैक्ट्रियों से लगातार तेज शोर होते रहती है. मुरादाबाद को पीतल नगरी कहा जाता है. यहां हजारों छोटे-बड़े पीतल उद्योग और वर्कशॉप हैं, जहां रोज़ाना इन कामों से तेज आवाज निकलती है.
बड़ी फैक्ट्रियों के जनरेटर और ब्लोअर
इन सबकी आवाज लगातार 80–120 डेसिबल तक जाती है-जो एयरप्लेन टेक-ऑफ जितनी तेज हो सकती है. फैक्ट्रियां शहर के बीचों-बीच है. मुरादाबाद में अधिकतर पीतल वर्कशॉप और फर्नेस रिहायशी इलाकों के बीच में बने हुए हैं. इससे शोर सीधे लोगों तक पहुंचता है और पूरे शहर का औसत शोर स्तर बढ़ जाता है. पीतल उद्योग के कारण, माल ढोने वाले ट्रक, सप्लाई वैन, फैक्ट्री लोडिंग-अनलोडिंग का ट्रैफिक बहुत ज़्यादा होता है. इनसे भी काफी शोर बढ़ता है.
दिन-रात चलती हैं कई फैक्ट्रियां
मुरादाबाद का पीतल उद्योग अंतरराष्ट्रीय बाजार में सामान भेजता है. डिमांड ज़्यादा होने की वजह से कई फैक्ट्रियां दिन-रात चलती हैं, जिससे शोर कभी बंद नहीं होता.इसलिए मुरादाबाद दुनिया का सबसे शोर वाला शहर बन गया. पीतल फैक्ट्रियों की मशीनों, हथौड़ा प्रोडक्शन, यातायात और रिहायशी इलाकों के बीच उद्योग होने की वजह से मुरादाबाद का डेसिबल स्तर हमेशा 100 डेसिबल के आसपास पहुंच जाता है. जो किसी एयरप्लेन टेक-ऑफ जैसा शोर है.
ज्यादा शोर में रहने से होने वाली दिक्कतें
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर कोई व्यक्ति लंबे समय तक 70 डेसिबल से ज़्यादा शोर में रहता है, तो उसकी सुनने की क्षमता धीरे-धीरे कमजोर हो सकती है.यूएनईपी की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन ने भी चेतावनी दी कि बहुत ज्यादा शोर न सिर्फ हमारी नींद और सेहत खराब करता है, बल्कि जानवरों के आपस में बातचीत करने के प्राकृतिक तरीकों को भी बिगाड़ देता है. उन्होंने यह भी सलाह दी कि शोर कम करने के लिए शहरों में ज्यादा हरियाली बढ़ाई जाए और गाड़ियों और परिवहन सिस्टम को इलेक्ट्रिक किया जाए, ताकि आवाज और प्रदूषण दोनो कम हों.
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