गुजरात: अब 11 सार्वजनिक विश्वविद्यालयों पर होगा सरकारी कंट्रोल, जानें क्या है प्रावधान, तेज हुआ विरोध

कांग्रेस का आरोप है कि सार्वजनिक विश्वविद्यालयों से संबंधित गुजरात पब्लिक यूनिवर्सिटी बिल 2023 के जरिये सरकार विश्वविद्यालयों की आजादी छीन रही है. कांग्रेस का कहना है कि इस कानून से विद्यार्थियों का प्रतिनिधित्व भी खत्म होगा और साथ ही सेनेट - सिंडिकेट व्यवस्था भी चौपट हो जाएगी.

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गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल की फाइल फोटो (PTI) गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल की फाइल फोटो (PTI)

ब्रिजेश दोशी

  • गांधीनगर,
  • 16 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 7:13 PM IST

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के विरोध के बीच गुजरात सरकार ने आज गुजरात पब्लिक यूनिवर्सिटी बिल 2023 को विधानसभा मे बहुमत से पारित किया है. गुजरात के 11 सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के लिए नए प्रावधानों के साथ विधेयक लाया गया था जिसे आज सरकार ने बहुमत से पारित किया.

नए कानून मे क्या है प्रावधान.....

  • विश्वविद्यालय के कुलपति का कार्यकाल पाँच वर्ष का होगा एक कार्यकाल पूरा होने के बाद दूसरे विश्वविद्यालय का चांसलर पांच साल के लिए दोबारा नियुक्त किया जा सकता है
  • प्रबंधन बोर्ड, कार्यकारी परिषद और एकेडमिक परिषद विश्वविद्यालय के प्रशासन और प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे
  • इस अधिनियम के माध्यम से 11 विश्वविद्यालयों में प्रवेश, अध्ययन एवं परीक्षा प्रणाली में एकरूपता आयेगी
  • विश्वविद्यालयों में सीनेट और सिंडिकेट के स्थान पर प्रबंधन बोर्ड कार्य करेगा
  • विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा महाविद्यालय के शिक्षकों, प्राचार्यों, विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों, अध्यक्षों की नियुक्ति में 33% महिला सदस्यों का प्रावधान किया गया है.
  • विश्वविद्यालय अपने सक्षम प्राधिकारी के अनुमोदन से नए कार्यक्रम, नए पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए स्वायत्त होगा. 
  • यूनिवर्सिटी छात्रों को एक्सटर्नल के तौर पर डिग्री दे सकती है. ऑनलाइन कोर्स तैयार कर सकती है. दूरस्थ पाठ्यक्रम भी संचालित कर सकते हैं

क्यों हो रहा है विरोध?
कांग्रेस का आरोप है कि सार्वजनिक विश्वविद्यालयों से संबंधित गुजरात पब्लिक यूनिवर्सिटी बिल 2023 के जरिये सरकार विश्वविद्यालयों की आजादी छीन रही है. कांग्रेस का कहना है कि इस कानून से विद्यार्थियों का प्रतिनिधित्व भी खत्म होगा और साथ ही सेनेट - सिंडिकेट व्यवस्था भी चौपट हो जाएगी. इस विधेयक से प्रोफेसर यूनिवर्सिटी के अलावा दूसरी किसी जगह अपने ज्ञान का लाभ नहीं दे पाएंगे और ना ही किसी सामाजिक मुहिम मे जुड़ पाएंगे.इससे पहले छात्रों और प्रोफेसर भी इसका विरोध कर चुके है जिसे सरकार ने राजनैतिक विरोध बताया था. सबसे बड़ा आरोप है कि इस कानून से यूनिवर्सिटी की स्वायत्तता खत्म हो जाएगी और सरकार का नियंत्रण बढ़ेगा. 

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विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता पर क्या कहती है गुजरात सरकार?
वहीं सरकार का कहना है कि हम यह विधेयक राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप लाए है और इससे विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता बढ़ेगी. गुजरात सरकार ने दावा किया है कि पारदर्शी प्रशासन का उत्कृष्ट उदाहरण स्थापित करते हुए, अधिनियम का प्रारंभिक मसौदा 15 दिनों के लिए सार्वजनिक डोमेन में रखा गया और सुझाव आमंत्रित किए गएँ. 140 हितधारकों से कुल 238 सुझाव प्राप्त हुए. जिनमें से 30 सुझावों को अधिनियम में संशोधित किया गया हैऔर 40 सुझावों को क़ानून या अध्यादेश में शामिल किया जाएगा. अन्य सुझाव एसे हैं जो विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के प्रावधानों के अनुरूप नहीं हैं या नीतिगत बदलाव के सुझाव हैं.

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