43 साल बाद फिर पर्दे पर लौटी 'नदिया के पार', पटना में विशेष प्रदर्शन से युवाओं को मिलेगा भोजपुरी संस्कृति का सजीव अनुभव

भोजपुरी सिनेमा की ऐतिहासिक फिल्म ‘नदिया के पार’ 43 साल बाद पटना में फिर से बड़े पर्दे पर लौटी. बिहार सरकार के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के तहत बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम लिमिटेड ने इसका विशेष प्रदर्शन किया. “कॉफी विद फिल्म” कार्यक्रम के अंतर्गत यह आयोजन युवाओं को बिहार की सांस्कृतिक जड़ों, सामाजिक मूल्यों और भोजपुरी भाषा से जोड़ने के उद्देश्य से किया गया.

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'कॉफी विद फिल्म' के तहत आयोजन.(Photo: AI-generated) 'कॉफी विद फिल्म' के तहत आयोजन.(Photo: AI-generated)

रोहित कुमार सिंह

  • पटना,
  • 20 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:10 PM IST

43 साल बाद एक बार फिर भोजपुरी सिनेमा की ऐतिहासिक फिल्म 'नदिया के पार' सुनहरे पर्दे पर लौट रही है. बिहार के युवाओं को अपनी सांस्कृतिक जड़ों, परंपराओं और सामाजिक मूल्यों से जोड़ने के उद्देश्य से आज (शनिवार) पटना के एक सिनेमा घर में इस फिल्म का विशेष प्रदर्शन किया जा रहा है. वर्ष 1982 में बनी यह फिल्म अपने समय में न सिर्फ लोकप्रिय हुई थी, बल्कि भोजपुरी संस्कृति की पहचान भी बनी थी.

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यह विशेष प्रदर्शन बिहार सरकार के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के अंतर्गत बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम लिमिटेड द्वारा आयोजित किया जा रहा है. आयोजन का उद्देश्य नई पीढ़ी को बिहार की पारंपरिक जीवनशैली, सामाजिक रिश्तों और सांस्कृतिक विरासत से परिचित कराना है.

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'कॉफी विद फिल्म' के तहत आयोजन

फिल्म विकास एवं वित्त निगम लिमिटेड द्वारा संचालित “कॉफी विद फिल्म” कार्यक्रम के तहत हर सप्ताह बिहार की संस्कृति, परंपराओं और सामाजिक जीवन पर आधारित फिल्मों का प्रदर्शन और परिचर्चा की जाती है. इसी कड़ी में इस बार नदिया के पार को चुना गया है. फिल्म का प्रदर्शन हाउस ऑफ वेराइटी, रीजेंट सिनेमा कैंपस, गांधी मैदान (पटना) में किया जा रहा है.

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इस पहल के जरिए दर्शकों को न केवल फिल्म देखने का मौका मिलता है, बल्कि उसके सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों पर बातचीत भी होती है. कार्यक्रम खास तौर पर युवाओं को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है.

राजश्री प्रोडक्शंस की यादगार फिल्म

राजश्री प्रोडक्शंस के बैनर तले बनी इस फिल्म का निर्देशन गोविंद मुनीस ने किया था, जबकि निर्माता ताराचंद बड़जात्या थे. फिल्म के गीतों को स्वर्गीय रविंद्र जैन ने रचा था, जिनकी मधुर धुनों ने फिल्म को खास पहचान दिलाई. खास तौर पर 'कौन दिशा में लेके चला रे बटोहिया' गीत आज भी उतना ही लोकप्रिय है.

भोजपुरी संस्कृति की सादगीपूर्ण प्रस्तुति

फिल्म ‘नदिया के पार’ प्रसिद्ध लेखक केशव प्रसाद मिश्र के उपन्यास ‘कोहबर की शर्त’ पर आधारित है. यह फिल्म भोजपुरी भाषा की मौलिक पहचान, सरल कहानी और पारंपरिक सामाजिक ढांचे को प्रभावशाली ढंग से दिखाती है. बिना दिखावे वाले संवाद, लोक-संगीत और ग्रामीण जीवन की खुशबू के साथ यह फिल्म आज भी भोजपुरी संस्कृति की सकारात्मक छवि पेश करती है.

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