चिनाब... जो बंटवारे, आतंक और दहशतगर्दी का दर्द समेटे सरहद पार बहती है

चिनाब सिर्फ पानी का बहता सोता नहीं है, ये कोई पहाड़ों से बहकर आने वाला महज एक चश्मा भर नहीं है, इसे किसी आम दरिया की तरह समझने की भूल भी नहीं की जा सकती है, चिनाब खुद में एक औरत है, देवी है. किसी अल्हड़ किशोरी की तरह. जो इतनी चंचल है कि हर कहानी में किरदार बनकर शामिल हो जाती है और फिर कान लगाकर उनकी गुपचुप बातें सुन आती है.

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चिनाब मेें भी बहता है बंटवारे का दर्द चिनाब मेें भी बहता है बंटवारे का दर्द

विकास पोरवाल

  • नई दिल्ली,
  • 14 मई 2025,
  • अपडेटेड 8:10 PM IST

पंजाब में एक कवि हुए वारिस शाह. जब वो हुए तब दौर था 18वीं सदी का. इसी दौरान उन्होंने चिनाब दरिया के किनारे बैठ उसके पानी को स्याही बनाकर एक दर्दभरी दास्तां लिख डाली. दास्तान थी हीर और रांझा की. जिन्होंने मोहब्बत की, इस खता की सजा में जुल्म सहे और जब जुल्म की इंतिहा हो गई तो फना हो गए. उनके इश्क, उनके दर्द, उनके गम और उनकी मोहब्बत की कहानी में चिनाब एक अहम किरदार की तरह रही और वारिस शाह ने जब हीर-रांझा की दास्तान लिखी तो इसी चिनाब के साथ बहते-बहते वह पंजाब की लोककथा में शामिल हो गई. 

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चिनाब की याद फिर से इसलिए आई, क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर के स्थगन और सीजफायर होने के बाद अभी हाल ही में जब पीएम मोदी ने राष्ट्र को संबोधित किया तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि आतंक के गढ़ पाकिस्तान के लिए ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ स्थगित हुआ है, बंद नहीं. उनकी इस कहनी में पड़ोसी मुल्क को कड़ा संदेश था कि आतंक के साये में कोई समझौता नहीं जारी रहेगा. खून और पानी एक साथ नहीं बहेंगे. यानी सिंधु जल समझौता ठप रहेगा. इस समझौते के ठप रहने का मतलब है कि चिनाब में भी पानी नहीं बहेगा.

चिनाब के पानी से परंपरा की खेती
और फिर नदी में पानी बहे भी क्यों? चिनाब सिर्फ पानी का बहते पानी का सोता नहीं है, ये कोई पहाड़ों से बहकर आने वाला महज एक चश्मा भर नहीं है, इसे किसी आम दरिया की तरह समझने की भूल भी नहीं की जा सकती है, चिनाब खुद में एक औरत है, देवी है. किसी अल्हड़ किशोरी की तरह. जो इतनी चंचल है कि हर कहानी में किरदार बनकर शामिल हो जाती है और फिर कान लगाकर उसके किरदारों की गुपचुप बातें सुन आती है. इस दरिया ने ठोस पहाड़ को न सिर्फ तरल-सरल किया, बल्कि इसने पंजाब में परंपरा की खेती की, इसकी संस्कृति की जमीन तैयार की. 

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पंजाब की पंचनदियों में शामिल चिनाब
पंजाब यानी पांच नदियों वाला क्षेत्र. अपनी सखियों सतलुज, व्यास, रावी और झेलम के साथ मिलकर चिनाब इसे हरा-भरा करती है. सिर्फ खेती-किसानी से नहीं, बल्कि गीतों से, कविताओं से, चित्रों से चरित्रों से और लंबी-लंबी दास्तानों से भी. इसलिए चिनाब कोई साधारण नदी नहीं है,  यह एक प्रतीक है, एक रूपक, जो पंजाब की धरती पर बसी प्रेम कथाओं, क़िस्सों और आध्यात्मिक परंपराओं में बार-बार उभरकर सामने आता है. चिनाब जीवनदायिनी नहीं, बल्कि खुद में जीवन है. जीवन खुशी-खुशी बीते तो चिनाब और जिंदगी में दुख आ जाए तो भी चिनाब उसका बिंब बन जाती है.

चिनाब के बंटवारे का दुख
तभी तो बंटवारे का जो दुख चिनाब ने झेला उसे बयां किया जाना बेहद नामुमकिन है. इससे उपजे कष्ट को अमृता प्रीतम की कविता में समझिए, जब वह इसी चिनाब का जिक्र करती हुए लिखती हैं, 'अज्ज बेले लाशां बिच्छियां, ते लहू दी भरी चिनाब' (आज कितनी लाशें बिछी हैं और लहू से चिनाब भर गई है) उन्होंने अपनी इस कविता में उन्हीं वारिस शाह को आवाज दी है, जिन्होंने 18वीं सदी में सिर्फ एक हीर के रोने पर कितनी लंबी दास्तान लिख दी थी और आज तो लाखों बेटियां न सिर्फ रो रही हैं, बल्कि उनका लहू भी बह रहा है, तो ऐसे में वारिस शाह तुम कहां हो? तुम अपनी कब्र से क्यों नहीं आवाज देते?

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अमृता प्रीतम लिखती हैं...

अज्ज आखां वारिस शाह नूं
आज मैं वारिस शाह से कह रही हूं.

कितों कबरां विच्चों बोल
अपनी कब्र से उठो और बोल.

ते अज्ज किताबे इश्क दा, कोई अगला वरका खोल
और आज प्रेम की किताब का कोई नया पन्ना खोलो

इक रोयी सी धी पंजाब दी, तू लिख-लिख मारे वैन
पंजाब की एक बेटी रोयी, तूने बहुत शोक लिखा

अज्ज लक्खां धी-यां रोंदियां, तेनूं वारिस शाह नूं कहन उठ!:
आज लाखों बेटियाँ रो रही हैं, वे तुम्हें, वारिस शाह को उठने के लिए कह रही हैं. 

दर्दमंदा दियां दर्दियां, उठ तक्क अपणा पंजाब
दर्द में डूबे लोगों के दर्द को देखो, अपने पंजाब को देखो

अज्ज बेले लाशां बिच्छियां, ते लहू दी भरी चिनाब
आज लाशें बिछी हैं और चिनाब नदी लहू से भरी हुई है 


इसी चिनाब के किनारे मशहूर हुई पंजाब की एक और लोक कथा सोहनी महिवाल. सोहनी, जो चरवाहे महिवाल से इश्क करती थी और नदी पार कर उससे मिलने जाती थी. वह घड़े को पीठ पर बांध उसके सहारे तैर लेती थी, लेकिन एक दिन उसका घड़ा बदल दिया गया. सोहनी कच्चा घड़ा लिए दरिया में कूद गई और डूब गई.

उधर महिवाल ने भी खुद को चिनाब के हवाले कर दिया और फिर दोनों की लाशें एक-दूसरे में लिपटी मिलीं. चिनाब, जिसने इनके प्यार की कहानी देखी थी, अठखेलियां देखीं थीं उसने इनकी मौत भी देखी. पर पानी में पानी कहां दिखता है, तो बिचारी चिनाब के आंसू कैसे दिखते. कहते हैं कि उन दिनों चिनाब में भारी बाढ़ आई. पर कौन जाने कि ये बाढ़ नहीं, चिनाब के आंसू थे, उसका रोना था. उसका दर्द था. 

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खैर, चिनाब इस दर्द को सीने में लिए बहती रही. मुसीबत आती है, कहर बरपा कर चली जाती है, लेकिन मुसीबत के वक्त हम क्या कर सकते हैं? कवि और लेखक यतींद्र मिश्र चिनाब के इसी प्रश्न को सबके सामने उठाते हैं. कहते हैं कि... 

'मुसीबत के वक़्त हम क्या करेंगे
दरवेशों का क़िस्सा हमारे काम नहीं आएगा

निरुपाय धरा रह जाएगा धर्म का पाठ
महीवाल को ढूँढ़ती सोहनी कच्चा घड़ा लिए

चिनाब में उतर जाएगी
अपनी सारी उदारता समेटे सूरज चला जाएगा

दूसरी पृथ्वी की खोज में
परियां हमारी नींदों के सिरहाने आने से कतराएंगी

हमारी धमनियों में रक्त को ठंडा करती हुई
गिरेगी चंद्रमा की बर्फ़

अंधेरे में ख़रगोश की आंखों की तरह
अचानक गुम हो जाएगी सबसे प्यारी स्मृति

जब कभी प्रेम के बरअक्स यह दुनिया
सुंदर चीज़ों के विकल्प में बदलती नज़र आएगी

यह तय कर पाना मुश्किल होगा
मुसीबत के वक़्त हम क्या करेंगे.

  

हीर-रांझा, सोहनी-महिवाल, मिर्जा-साहिबा या फिर लैला-मजनू... चिनाब इन सभी किस्सों में एक नदी से कहीं अधिक है. यह जिंदगी और मौत, सांच-झूठ, इश्क और नफरत का प्रतीक है. यह आध्यात्मिक यात्रा का रूपक है, जो आपको मंजिल की ओर ले जाने की राह दिखाती है. इन कहानियों में चिनाब सिर्फ बहती धारा नहीं है, वह मुक्ति है, मोक्ष है. दुनियावी कष्टों से छुटकारा है. 

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चिनाब के पानी की अहमियत
प्रसिद्ध पंजाबी कवि प्रोफेसर मोहन सिंह ने अपनी एक कविता में, जो लगभग वसीयत की तरह थी, अपनी राख को गंगा के बजाय चिनाब में विसर्जित करने की इच्छा जताई, क्योंकि यह 'प्रेम की नदी' है. बंटवारे के बाद, सिंह ने लिखा "गंगा बनावे देवते ते यमुना देवियां, आशिक मगर बना सके पानी चिनाब दा" (गंगा देवताओं को बनाती है, यमुना देवियों को. लेकिन प्रेमी बनाता है चिनाब का पानी).

पंजाबी साहित्य में चिनाब
एक और कवि, देवेंद्र सत्यार्थी, ने लिखा 'नाहीं री चिनाब दियां, भवें सुखी वघे' (चिनाब बेजोड़ है, भले ही वह सूखकर बहती हो). पंजाब के प्रसिद्ध कम्युनिस्ट कवि पाश (अवतार सिंह संधू) ने लिखा 'चिनाब दा आशिक नीर की जाने, मेरे फुल सतलुज विच बहाने.' सामाजिक क्रांति जैसे कट्टर वामपंथी विचारों से प्रभावित होने के कारण, पाश ने कहा कि उनकी राख चिनाब के बजाय सतलुज में विसर्जित की जाए. क्योंकि मैं मुक्त नहीं होना चाहता. मुक्ति जैसी कोई चीज होती भी कहां है? हरिंदर महबूब, जो 1947 में पाकिस्तान के चिनाब के किनारे के क्षेत्र से पलायन कर आए थे, उन्होंने सात कविता संग्रहों का एक संकलन लिखा, जिसका शीर्षक था "चिनाब दी रात" (चिनाब की रात). इसे साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला.

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पानी पानी होए चिनाब दे पानी

पंजाबी साहित्य में मशहूर हस्ताक्षर रहे सुरजीत पातर अपनी एक रचना में लिखते हैं कि, 'हर इक कोल सी अपना अलग अलग पानी, चिनाब दे कांदे लाहौर दे शौकीन मिले". यह पंजाब की नदियों की स्थिति पर एक व्यंग्य है, जिन्हें सभी पंजाबी मुस्लिम, सिख और हिंदू प्यार करते थे. चिनाब के बारे में उन्होंने लिखा 'नाल नमोशी, पानी पानी होए चिनाब दे पानी, नफरत दे विच डुब के मर गई हर इक प्रीत कहानी' (चिनाब का पानी शर्मिंदगी के साथ बहता है; हर प्रेम कहानी नफरत में डूबकर मर गई). वह लिखते हैं कि 'कहे सतलुज दा पानी, आखे ब्यास दी रवानी, साड्डा झेलम चिनाब नु सलाम अखना' (सतलुज और ब्यास, झेलम और चिनाब को सलाम भेजते हैं).

चिनाब ने सीमापार भी बांटा प्यार
1947 में बंटवारा भले ही हो गया था, लेकिन चिनाब का पानी जब बहते हुए सीमा पार पहुंचा तो वहां उसने वैसा ही प्यार बांटा, जैसा वह विभाजन से पहले सराहा करती थी. इसका बड़ा उदाहरण मिलता है कि जब आकाशवाणी ने (पाकिस्तानी पंजाब) के श्रोताओं के लिए कार्यक्रम शुरू किया था, तो उसका टैगलाइन दिया गया, "लंग आजा पतन चनां दा यार" (चिनाब के किनारे आ, ओ प्रियतम). ये टैगलाइन, लोकप्रिय लोकगीत की पंक्तियों से ली गई थी. यह पंक्ति भारत-पाक खेलों के लिए भी सिग्नेचर ट्यून बनी.

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पंजाबी साहित्य के मशहूर कवि सुरजीत पातर

...पर कौन देखता है चिनाब का दर्द
खैर, बंटवारे से पहले लाहौर कला और संस्कृति का एक बड़ा केंद्र था. सभी बड़े पंजाबी साहित्य के नाम जैसे कृष्ण चंदर, फैज अहमद फैज, अमृता प्रीतम या सआदत हसन मंटो, सभी लाहौर से थे. उस समय मुंबई की मायानगरी पनपना शुरू ही हुई थी, लेकिन लाहौर फिल्म निर्माण का केंद्र था. कला का केंद्र था, संस्कृति की दुनिया में बड़ा नाम था, लेकिन बंटवारे ने कला को नुकसान पहुंचाया, संस्कृति को भी इतिहास बना दिया और इसकी वजह रही कि चिनाब के भी दो हिस्से हो गए. चिनाब जो भारत से बहती है, लेकिन सरहद पार कर पाकिस्तान तक पहुंचती है. जहां अब आतंक पनपता है, दहशतगर्दों की पौध तैयार होती है.  और चिनाब, चिनाब तो रोती है जनाब... अपनी इस बदनसीबी पर... इस सवाल के साथ आखिर कब तक नदियों में खून और पानी एक साथ बहता रहेगा?

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