मौसम की सटीक भविष्यवाणी से किसानों को होगा दोगुना लाभ, एक स्टडी में हुआ खुलासा

एक स्टडी में दावा किया गया है कि अत्यधिक सटीक पूर्वानुमान कम से कम 4 से 6 हफ्तों के लिए किसानों की मदद कर सकते हैं, जिससे किसान तय करते हैं कि उन्हें कितनी फसल बोना है, क्या फसल लगानी है या क्या नहीं.

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शुभम तिवारी

  • नई दिल्ली,
  • 26 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 3:47 PM IST

एक स्टडी में ये बताया गया है कि मौसम के सटीक पूर्वानुमान से करोड़ों भारतीय किसानों की आजीविका बेहतर होगी. क्योंकि मौसम की सही जानकारी मिलने से किसान समय पर कृषि संबंधित निर्णय ले पाते हैं, इससे उनकी आजीविका बढ़ने के साथ फसल का उत्पादन भी बढ़ता है. ये स्टडी तेलंगाना के 250 गांवों में की गई थी.

स्टडी में हुआ खुलासा
भारत के अधिकतर लोग कृषि पर निर्भर हैं. ऐसे में जलवायु परिवर्तन का उनके जीवन पर काफी प्रभाव पड़ता है. स्टडी में ये पाया गया है कि ज्यादा परिवर्तनशील मौसम किसानों के लिए आने वाले सीजन की तैयारी करना चुनौतीपूर्ण बना देता है क्योंकि उन्हें नहीं पता कि यह साल पिछले साल जैसा होगा या नहीं.

स्टडी में दावा किया गया है कि अत्यधिक सटीक पूर्वानुमान कम से कम 4 से 6 हफ्तों के लिए किसानों की मदद कर सकते हैं, जिससे किसान तय करते हैं कि उन्हें कितनी फसल बोना है, क्या फसल लगानी है या क्या नहीं. बता दें कि वैश्विक आबादी का लगभग दो-तिहाई हिस्सा मानसून प्रभावित क्षेत्रों में रहता है. 

एक स्टडी के अनुसार, किसान फसल रोपने का निर्णय इस आधार पर लेते हैं कि वे मौसम के बारे में क्या सोचते हैं और दुनिया के कई हिस्सों में, मानसून कैसा होगा, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून और अन्य मौसम पैटर्न का पूर्वानुमान बताना मुश्किल हो गया है. 

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किसानों को क्या-क्या फायदा होगा?
शोधकर्ताओं का कहना है कि मौसम पूर्वानुमानों के परिणामस्वरूप किसानों की फसल रोपने की रणनीतियों में काफी बदलाव देखने को मिला है. मानसून के आगमन की पूर्व सूचना के मिलने से किसान यह तय कर पाते हैं कि उन्हें बड़े पैमाने पर कितनी फसल बोनी है या नहीं बोनी है और ऐसी फसलों का चयन करना है जो पूर्वानुमानित मौसम के पैटर्न से मेल खाती हों. 

मौसम का पूर्वानुमान मिलने से किसानों की आय पर भी प्रभाव पड़ा है, जिन किसानों को मानसून के समय को लेकर बुरी खबर मिली, उन्होंने अपना कर्ज आधा कर दिया और गैर-कृषि उद्यमों में अपने प्रयासों को दोगुना कर दिया है. 

मेडक और महबूबनगर जिलों में की गई स्टडी में ये देखा गया कि किसानों ने खुद की खेती की जमीन की मात्रा को लगभग एक चौथाई कम कर दिया और दूसरे किसानों की तुलना में लगभग एक तिहाई कम उर्वरक खरीदा. जबकि उनके कृषि उत्पादन, फसल की बिक्री और खेती के मुनाफे पर असर पड़ा क्योंकि वे कुल मिलाकर कम खेती में लगे थे. इन किसानों ने पैसे कमाने के अन्य तरीके भी ढूंढने शुरू कर दिए. 

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स्टडी में ये भी पाया गया है कि क्लाइमेट एडाप्टेशन टूलकिट ने किसानों की रणनीतियों में कैसे अहम भूमिका निभाई है. वहीं बीमा ने किसानों को अधिक फसल रोपने और निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया है.

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