केंद्र की मोदी सरकार ग्रामीण रोजगार योजना मनरेगा के नाम और स्ट्रक्चर में बड़ा बदलाव करने जा रही है. प्रस्ताव के मुताबिक महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (MGNREGA) का नाम अब 'विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन ग्रामीण' (VB G RAM G) होगा. इस योजना के तहत ग्रामीण परिवारों को मिलने वाले गारंटीड रोजगार के दिनों की संख्या 100 से बढ़ाकर 125 दिन हो जाएगी. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या इस योजना का नाम और प्रावधान बदल देने से जमीनी हालात भी बदलेंगे?
इतिहास बताात है कि मनरेगा का नाम बदलने से व्यवस्था में सुधार नहीं होता है. पहले इस योजना का नाम राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (NREGA) था. कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने इसमें महात्मा गांधी का नाम जोड़ा, लेकिन ग्रामीणों को गारंटीड रोजगार देने की स्थिति जस की तस बनी रही. योजना में 100 दिन रोजगार की गारंटी है, लेकिन सच्चाई यह है कि देश का कोई भी राज्य औसतन 100 दिन का काम नहीं दे पाया.
ना नियमित काम, ना सौ दिन की गारंटी
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, मनरेगा के तहत पिछले 5 वर्षों में प्रति परिवार औसतन केवल 50.35 दिन ही रोजगार मिला है. ऐसे में मनरेगा का एक बार फिर बदला हुआ नाम और 125 दिन की नई गारंटी कितनी कारगर होगी, यह समय ही बताएगा. यह योजना ग्रामीण परिवारों के लिए तब आजीविका का सहारा बनती है, जब उनके पास रोजगार के अन्य विकल्प उपलब्ध नहीं होते. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि उन्हें न तो नियमित काम मिलता है और न ही साल में 100 दिन के काम की गारंटी.
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2024-25 में मनरेगा के तहत हरियाणा में सबसे अधिक 374 रुपये प्रतिदिन मजदूरी तय है, लेकिन वहां भी प्रति परिवार औसतन केवल 34.11 दिन का काम मिला. अरुणाचल प्रदेश में मजदूरी सबसे कम 234 रुपये है, हालांकि वहां औसतन 67.9 दिन काम मिला. उत्तर प्रदेश में हालात और भी खराब हैं, जहां साल भर में प्रति परिवार औसतन 51.55 दिन काम मिला और मजदूरी 237 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मिली. यानी प्रति परिवार साल में 12 हजार और प्रति महीने 1000 रुपये की कमाई. अब महंगाई के इस दौर में एक परिवार हजार रुपये महीने में कैसे गुजारा करेगा, यह सोचने वाली बात है.
कृषि क्षेत्र से जोड़ने पर बदलेगी सूरत
ग्रामीण अर्थव्यवस्था के जानकारों का मानना है कि मनरेगा को कृषि क्षेत्र से जोड़े बिना इसमें वास्तविक सुधार संभव नहीं है. यदि खेती से जुड़े कार्यों में मनरेगा श्रमिकों को लगाया जाए और मजदूरी बढ़ाकर 500 रुपये प्रतिदिन की जाए, जिसमें सरकार 300 और किसान 200 रुपये दें, तो श्रमिकों को ज्यादा दिन काम मिलेगा, किसानों की लागत घटेगी और योजना में पारदर्शिता भी बढ़ेगी. गौरतलब है कि 2018 में गठित एक उच्चस्तरीय समिति ने भी मनरेगा को कृषि से जोड़ने की सिफारिश की थी, लेकिन अब तक इस पर अमल नहीं हुआ है.
योजना एक, मजदूरियां अलग-अलग
मनरेगा केंद्र की योजना है, लेकिन हर राज्य में मजदूरी अलग-अलग. ‘एक देश, एक मजदूरी’ का सिद्धांत यहां लागू नहीं होता. यही वजह है कि औसत मजदूरी और काम के दिनों को जोड़ने पर जो राशि निकलती है, उससे ग्रामीण बेरोजगारी और गरीबी में कोई बड़ा बदलाव नजर नहीं आता. निष्कर्ष साफ है, सिर्फ नाम बदलने और दिनों की संख्या बढ़ाने से ज्यादा जरूरी है कि मनरेगा को नियमित, पारदर्शी और उत्पादन से जुड़ा बनाया जाए. वरना नया नाम भी पुराने वादों की तरह कागजों में ही सिमटकर रह जाएगा.