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'सैयारा','कुन फाया कुन' के गाने के पीछे की क्या है कहानी? इरशाद कामिल ने बताई

इरशाद कामिल ने सैयारा फिल्म की सफलता, गानों की लोकप्रियता और कुन फाया कुन गाने की प्रेरणा पर डिटेल में बात की. उन्होंने बताया कि आर्टिस्ट के लिए डर और उम्मीद दोनों जरूरी होते हैं. इरशाद ने साहित्य मंच पर शायरियां सुनाईं और आधुनिक दौर में लेखकों पर बढ़ते प्रेशर पर भी बात की और साथ ही इम्तियाज अली के साथ अपने पुराने और गहरे रिश्ते का जिक्र भी किया.

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इरशाद कामिल ने बताए सीक्रेट्स (Photo: Chandradeep Kumar)
इरशाद कामिल ने बताए सीक्रेट्स (Photo: Chandradeep Kumar)

सैयारा फिल्म अहान पांडे और अनीत पड्डा की डेब्यू फिल्म थी लेकिन इसने फैंस के बीच तहलका मचा दिया था. ना सिर्फ फिल्म बल्कि इसके गानों ने भी चाहने वालों के दिल में अलग से जगह बनाई. सैयारा का टाइटल ट्रैक लिखने वाले इरशाद कामिल साहित्य आजतक में शामिल हुए और अपने एक्सपीरियंस पर बात की. उन्होंने कुन फाया कुन गाना लिखने की इंस्पिरेशन और इम्तियाज अली से अपने रिश्ते पर भी बात की. 

सैयारा इतनी बड़ी हिट होगी लगा था?

इरशाद कामिल बोले- आर्टिस्ट हमेशा इस उम्मीद से ही कुछ बनाता है जिससे उसे लगता है कि ये सबसे बड़ा हिट होगा. वो उसमें सारे एलिमेंट्स डालता है. मुझे यकीन नहीं था कि सैयारा इतनी बड़ी हिट होगी. एक आर्टिस्ट का सबसे क्रिएटिव पार्ट उसका डर होता है. बावजूद इसके जब वो अपने मुकाम पर नहीं पहुंच पाता, तो वो और कोशिश करता. तो कभी निशाना लग जाता है. 

ये वैसा है जैसे एक क्लास है, आप उसमें पूरी मेहनत से पढ़ते हैं, पास होते हैं लेकिन फिर उसी क्लास में दाखिल हो जाते हैं. वैसे ही अगली फिल्म आ जाती है. अगली पिक्चर में भी उसी तरह का काम करना होता, क्योंकि उस सक्सेस से एक जिम्मेदारी की उम्मीद आ जाती है. 

लेखकों पर रील मैटेरियल देने का प्रेशर

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इरशाद ने साहित्य के मंच पर कई शायरियां सुनाई. उनकी रचनाओं पर खूब तालियां बजाई गईं. उन्हें साहिर लुधियान्वी और शैलेंद्र साहब से कम्पेयर कि जाता रहा है. 

खुद को खुशकिस्मत बताते हुए इस पर इरशाद बताते हैं- दरअसल, उस वक्त कॉमर्स का प्रेशर नहीं था, मुझे नहीं लगता कि उस वक्त उन्होंने सोचा होगा कि- अरे कुछ ऐसा लिखो जिससे इसकी रील भी बन जाए. आज के दौर में ये प्रेशर जरूरी भी क्योंकि आपको अपनी बात पहुंचानी भी है. आजकल जरिए बदल गए हैं, अपनी बात पहुंचाने के तो, कोशिश जरूरी भी है. 

इरशाद से जब पूछा गया कि क्या कभी उनसे कोई बेतुकी फरमाइश की है? तो वो बोले- मैं उस दुकान जाता ही नहीं. आप वहीं जाते हैं जहां आपको पता होता है कि यहां यही सामान मिलता है. तो मुझतक जितने भी डायरेक्टर पहुंचते हैं उनको पता होता है, कि इरशाद कामिल का फ्लेवर ही यही है. इरशाद- रॉकस्टार, सैयारा, जब वी मेट, तेरे इश्क में दे सकता है, तो डायरेक्टर को पता है कि इससे यही फ्लेवर लेना चाहिए. 

''जब वी मेट फिल्म जब आई तो जिस तरह से हम काम कर रहे थे, तो हमें नहीं लगा था कि लोगों को इतने पसंद आ जाएंगे, वो गाने. अब जब लव आजकल आई तो, हम जब बैठे थे गाने लिखने बंबई से दूर, तो हम लोगों पर कामयाबी का इतना प्रेशर आया कि हमसे कुछ नहीं बन पाया. वो इसलिए नहीं बन पाया क्योंकि हम चाहते थे इससे बड़ा करेंगे कुछ. फिर समझ आया कि बड़ा करने से बड़ा नहीं बनता. आप काम कर दीजिए, वो अपने आप बड़ा बन जाएगा.''

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AI देना चुनौती या बनेगा ढाल?

इरशाद बोले- AI कभी शब्दों को उस तरह से उठा नहीं पाएगा. अभी अगर आप उससे कहें कि इरशाद जैसा गाना लिख दें, ये मैंने खुद ट्राय किया है. तो वो क्या करेगा इरशाद का लिखा गाना उठाएगा और उसे तोड़-मरोड़कर पेश कर देगा. लेकिन AI ये नहीं कर सकता कि इरशाद आज क्या सोच रहा है, या आगे क्या लिखने वाला है. AI इरशाद के लिखे हुए गाने को अलग अंदाज में पेश कर सकता है, लेकिन क्या लिखने वाला है वो नहीं बता सकता. वो जो अनकही गजलें हैं, अधूरी नज्म हैं वो इरशाद कामिल ही लेकर आएगा.

पढ़ना कितना जरूरी है?

इरशाद बोले- आप दुनिया की हर जगह नहीं घूम सकते, हर किसी से नहीं मिल सकते, इसलिए आप पढ़ते हैं. किताबें वो सरमाया हैं, जो कहीं जा चुके हैं या कर चुके हैं उनके तजूर्बे आपको घर बैठे ही मिल जाते हैं. आप जब पढ़ते हैं, अलग-अलग लोगों को, तो आप अलग-अलग लोगों से मिल लेते हैं और जगह घूम लेते हैं. 

कुन फाया कुन लिखने की इस्पिरेशन 

इरशाद बोले- ये यहीं दिल्ली की बात थी, रॉकस्टार शूट हो रही थी. ये कॉम्पोजिशन बन के आ चुकी थी. जब मैं इसे लिख चुका था और रिकॉर्ड करने चेन्नई गया था तब मुझे महसूस हो रहा था कि ये उस तरह की चीज हो रही है जो कहीं पहुंच सकती है. मैं अपना कोई गाना अगर कभी सुनता हूं, जब मेरा मन कुछ ठीक नहीं हो, तो मैं कुन फाया कुन सुनता हूं. मुझे याद है, रात में करीब ढाई बजे ए आर रहमान साहब ने मोमबत्ती जलाई और बड़े ही अकीदत के साथ, बहुत ही एहतराम के साथ इसकी रिकॉर्डिंग शुरू हुई. उसे बयां करना मुश्किल है, लेकिन एहसास हो गया कि कुछ बड़ी ही नायाब चीज हो गई है.

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मैंने निकलने के बाद डायरेक्टर को फोन किया और कहा कि यार महसूस हो रहा है कि बहुत ही अच्छी चीज हुई है, तुम्हें यहां आकर उसे सुनना चाहिए. ये शुरुआत में बहुत बड़ी कव्वाली बनी थी, लेकिन फिल्म में इसे रखना मुश्किल होता है. लेकिन मुझे लगता है जब लोग कुछ महसूस करने लगते हैं तो कुछ भी लंबा नहीं होता. वहीं अगर मैं ये सोचकर लिखता कि कमाल का लिखना है तो नहीं लिख पाता. बस, उस मोमेंट में बह जाना होता है. 

इम्तियाज अली से है गहरा और पुराना नाता

अपने रिश्तों पर बात करते हुए इरशाद ने कहा कि- हम एक दूसरे को तबसे जानते हैं जब वो सिर्फ इम्तियाज थे और मैं इरशाद. हम उस वक्त से साथ हैं, तो अब बातें वैसी कमर्शियल नहीं होती, अब वो होता है कि ये अच्छा नहीं है, ये सही नहीं है. जैसे जब लव आजकल फिल्म बन गई थी तब हमें लगा कि ये लव स्टोरी है, और लव सॉन्ग तो है ही नहीं. फिर प्रीतम दा और मैंने इम्तियाज को फोन करके कहा कि एक लव सॉन्ग की इसमें जरूरत है, तो इम्तियाज ने कहा कि मैं फिल्म एडिट कर चुका हूं. तो हमने कहा कि डेढ़ मिनट का अगर मोन्टाज सीन निकल आए तो हम कर सकते हैं. तो हम ऐसा सहयोग करते हैं. ऐसा ही हमारा रिश्ता है.

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क्या है सैयारा का असली मतलब?

आगे इरशाद ने सैयारा शब्द को लेकर हुई कंफ्यूजन पर बात की. और बताया कि कैसे पहले मटरगश्ती, कुन फाया कुन जैसे शब्द भी लोगों को पता नहीं थे. कई बार गाने भी हमें नए शब्द सिखा देते हैं. अब इस तरह के शब्द आपके जहन में क्या नई सोच देती है ये कमाल है. 

इस तरह के शब्द आपके लेखन में नया पड़ाव लाने का काम करते हैं. जब सैयारा फिल्म शुरू होती है- तो बताती है कि- वो तारा. सैयारा का मतलब भी वही है. सैयारा का मतलब एक ग्रह, जैसे एक इंसान. हम सब अपने-अपने ग्रह में घूम रहे हैं. हम सब एक टापू हैं, कई बार क्या होता है हम सब घूम तो रहे हैं लेकिन चाहते हैं वो ग्रह या वो टापू मेरे पास हो, जिसे मैं चाहता हूं. तो लिखने के दौरान ये मायने खुलते हैं. तो हम सब सैयारा हैं. जो ऑर्बिट में घूम रहे हैं, किसी ग्रह के पास जाकर हमें अच्छा लगता है, कोई हमारी रोशनी रोक लेता है. ये पूरा एक्सप्लेनेशन फिल्म में दिया गया है.

'फिर ले आया दिल...' का दर्द

इरशाद ने कहा- जब चीजें लिखी जाती हैं तो आप खुद के लिए नहीं लिख रहे होते हो. जब कोई गीतकार कोई गाना लिखता है, वो अपने लिए नहीं वो किरदार के लिए लिख रही होता है. जो रॉकस्टार के गाने हैं वो जॉर्डन के गाने हैं. जो तमाशा के गाने हैं वो वेद के हैं, इरशाद कामिल एक जरिया बना है. कुंदन अगर रांझणा में शायर होता तो क्या लिखता- मेरी हर मनमानी बस तुमतक.. तो गीतकार एक जरिया है बस. ऐसे ही फिर ले आया दिल का दर्द भी इरशाद का नहीं बल्कि बर्फी का था. 

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हर पल कुछ ढूंढता है एक शायर

इरशाद के अंदर का शायर कभी खामोश नहीं बैठता, हमेशा उसके अंदर भावनाएं उमड़ती हैं. वो बोले- बहुत तकलीफ देता है. शायर बड़ा संवेदनशील किस्म का इंसान होता है, और संवेदना कई बार आपको ऐसी स्थिति में डाल देती है जो आपके लिए बड़ी तकलीफदेह हो जाती है. वो इस तरह से कि - कहीं कुछ हुआ होता है जिसका नाता आपसे हो ना हो, आप भावुक हो जाते हैं. आपको तकलीफ में डाल ही देती है. तो इरशाद कामिल जो एक शायर है वो हर वक्त संजीदा रहता है, हर वक्त एक सोच में रहता है, उसको नहीं पता उसका क्या खो गया है, लेकिन वो उसे हर पल ढूंढता रहता है. 

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