Sahitya Aajtak 2024: सुरों और अल्फाजों के महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2024' का आगाज 22 नवंबर से हो गया है, जो 24 नवंबर तक चलेगा. तीन दिन चलने वाले इस कार्य में देश के जाने-माने शायर, लेखक, साहित्यकार, कलाकार और इतिहासकार शामिल हो रहे हैं. पहले दिन अन्य कार्यक्रमों के साथ 'धर्म और भारतीय राष्ट्रीयता' कार्यक्रम भी आयोजित किया गया.
'धर्म और भारतीय राष्ट्रीयता' सत्र में लेखक और इतिहासकार एस. इरफ़ान हबीब और Conflict Resolution The RSS Way, RSS From An Organisation To A Movement, RSS360, संघ और स्वराज के लेखक रतन शारदा शिरकत करने पहुंचे. इस कार्यक्रम में धर्म और भारतीय राष्ट्रीयता पर विद्वानों ने खुलकर अपने-अपने तर्क रखे. इस सेशन को जानी-मानी एंकर श्वेता सिंह ने मॉडरेट किया.
धर्म और राष्ट्रीयता अलग-अलग है या नहीं?
इस सवाल पर रतन शारदा ने कहा कि मुझे नहीं लगता इसमें कोई टकराव है, क्योंकि राष्ट्रीयता और धर्म के विषय पर आरएसएस 1925 से बात कर रहा है. सबसे उनकी मित्रता है इसलिए नए लोग उनसे जुड़ते हैं. धर्म कोई मजहब या पंथ या संप्रदाय नहीं है, यह भारत की आत्मा है. पिता का धर्म है, पुत्र का धर्म है, गुरु का धर्म है, राजा का धर्म है... ये सारे पंथों और संप्रदायों से अलग है इससे ऊपर है. चाहे रामायण हो या महाभारत सारे इसी आधार पर बिना किसी पंथ का नाम लिए बने हैं.
राष्ट्रीयता के विवाद पर बोलते हुए रतन शारदा ने आगे कहा कि क्या भारत नया राष्ट्र था, क्या भारत 15 अगस्त 1947 को पैदा हुआ? भारत 10 हजार साल पुराना एक जीवंत राष्ट्र था सांस्कृतिक और भौगोलिक दृष्टि से जिसमें कई राजा हुए होंगे, लेकिन ये पुरातन काल से राष्ट्र माना जा रहा है. वेदों में, रामायाण में और महाभारत में भारत का जिक्र होता रहा है. इसके बाद भी भारत एक मात्र ऐसा देश है जहां आजादी के 75 साल बाद भी हम कौन हैं, हमारा राष्ट्र कैसा है? इस पर प्रश्न उठाया जाता है. बाकी किसी देश को इस पर कोई आशंका नहीं है.
'धर्म का राष्ट्रीयता से जोड़ना सही नहीं है'
इस मुद्दे पर एस. इरफ़ान हबीब ने कहा कि आज हम ऐसे समय में जी रहा हैं जहां आज और कल पर ज्यादा बात होती है. सबसे पहले धर्म एक अलग स्थान रखता है, इसे राष्ट्रवाद से जोड़ना सही नहीं है. राष्ट्रीयता और धर्म अलग चीज हैं इन्हें एक नहीं मान सकते हैं. एक राष्ट्र के अंदर कई धर्म हो सकते हैं इसकी बहुत सी संभावनाए हैं. अगर धर्म को जोड़कर राष्ट्र बनाएंगे तो उसमें बहुत सी कठिनाइयां हैं.
भगत सिंह से बड़ा राष्ट्रभक्त शायद ही कोई हो सकता है: एस. इरफ़ान हबीब
एस. इरफ़ान ने कहा कि भगत सिंह ने सबसे महत्वपूर्ण निबंध लिखा 'मैं नास्तिक क्यों हूं?'. यह 1930 में लाला लाजपत राय द्वारा निकाले गए अखबार 'द पीपुल' में यह निंबध पहली बार छपा था. लाहौर जेल से स्मगल करके बाहर आया और भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह ने लालाजी को वो निबंध पत्र दिया. उसमें भगत सिंह खुद को नास्तिक बता रहे हैं (वो अपनी जगह है), जो आदमी अपने आप को नास्तिक बता रहा है अगर धर्म और राष्ट्रीयता में कुछ गठजोड़ है तो आप भगत सिंह जैसे लोगों को कहां रखेंगे. जो अपने आप को धार्मिक नहीं मानता, धर्म छोड़ आया, धर्म के बारे में नेगेटिव बाते कहता है लेकिन इसके बाद भी वह राष्ट्रवादी है.
उन्होंने आगे कहा कि भगत जैसे लोगों को भारत से प्रेम है, भारतीयता से प्रेम है, भारतीय संस्कृति से प्रेम है लेकिन कोई धर्म नहीं है. ऐसे मामले में आपको राष्ट्रीयता और धर्म को अलग रखना पड़ेगा. आप राष्ट्रवादी हो सकते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि आपके पास कोई धर्म हो जैसे भगत सिंह के पास नहीं था. भारत एक ऐसा देश है, जहां लोग धर्म के नाम पर जुड़ते हैं और धर्म के नाम पर लड़ते भी हैं. लेकिन धर्म को राष्ट्र से नहीं जोड़ना चाहिए.