मुजफ्फरनगर दंगे के आरोपी बीएसपी सांसद कादिर राणा से केस वापसी के लिए रिपोर्ट मांगे जाने के बाद कई सवाल उठ खड़े हुए हैं. सवाल उठ रहे हैं कि क्या कादिर हाथी से उतरकर साइकिल की सवारी करेंगे?
लंबे समय से कादिर की चुप्पी और सार्वजनिक कार्यक्रमों से किनारा करने को उनके नजदीकी नए राजनीतिक समीकरणों की ओर इशारा कर रहे हैं. मुजफ्फरनगर की सियासत में कादिर को कद्दावर नेता माना जाता है. वे सपा से विधान परिषद सदस्य, रालोद से विधायक रहने के बाद अब बीएसपी से सांसद हैं. वे कांग्रेस में भी रह चुके हैं.
कवाल में पिछले 27 अगस्त को दो समुदायों के तीन युवाओं की हत्या के बाद पनपे आक्रोश के माहौल में वे काफी सक्रिय रहे. भाकियू ने 31 अगस्त को कवाल में पंचायत करने की घोषणा की तो कादिर राणा ने 30 अगस्त को अपने गढ़ खालापार में जुमे की नमाज के बाद पंचायत बुला ली. इसमें सभी दलों के मुस्लिम नेता शामिल हुए. इसी पंचायत में भडक़ाऊ भाषण और अन्य आरोपों पर उनके खिलाफ केस दर्ज हुआ.
सपा सरकार कादिर राणा के खिलाफ इसी पंचायत में दिए गए भड़काऊ भाषण का केस वापस लेना चाहती है. इसके लिए न्याय विभाग ने डीएम से राय मांगी है. राजनीतिक हलकों में यह सवाल उठ रहा है कि कादिर राणा पर इतनी मेहरबानी क्यों? क्या यह महज मुस्लिम कार्ड है या कादिर राणा की सपा के साथ खिचड़ी पक रही है.
भड़काऊ भाषण देने के आरोप में बीजेपी विधायक सुरेश राणा और संगीत सोम पर रासुका के तहत केस दर्ज किया गया, उन्हीं आरोपों में कादिर राणा ने तीन माह से ज्यादा समय बीतने पर सरेंडर किया. कादिर राणा के तार सपा से जुड़े बताए जा रहे हैं. कुछ सपा नेताओं ने कादिर के सामने मुजफ्फरनगर संसदीय सीट से चुनाव लडऩे का विकल्प रखा है. अभी वहां से सपा प्रत्याशी गौरव स्वरूप हैं. उनके पिता चितरंजन स्वरूप मुजफ्फरनगर से विधायक और राज्यमंत्री हैं. दंगे के बाद बदले हालात में गौरव का टिकट कटना तय माना जा रहा है. सपा मुस्लिम प्रत्याशी उतारना चाहती है. उसके सांचे में कादिर राणा फिट बैठते हैं. वे पहले सपा में रह भी चुके हैं. समझ जा रहा है कि कादिर से मुकदमे वापसी की तैयारी उन्हें सपा में लाने की रणनीति का हिस्सा है.