मध्य प्रदेश में जब विधानसभा चुनाव को चार महीने भी नहीं बचे हैं, सरकार ने मदरसों में भी गीता पढ़ाना अनिवार्य कर नए विवाद को जन्म दे दिया है. मदरसों की पहली और दूसरी क्लास के 'विशिष्ट उर्दू' और 'विशिष्ट अंग्रेजी' की किताब में इसी सेशन से गीता का एक अध्याय जोड़ने की अधिसूचना जारी कर दी गई है. तीसरी से आठवीं तक की जनरल हिंदी की किताब में भी गीता के प्रसंग जोड़े जाएंगे. इसके लिए सरकार ने पाठ्य पुस्तक अधिनियम में संशोधन किया है.
शिवराज सरकार पहले से ही शिक्षा के भगवाकरण के आरोपों से घिरी रही है. राज्य सरकार ने सबसे पहले 2011 में गीता को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने की घोषणा की थी. इसका अल्पसंख्यक समाज ने पुरजोर विरोध किया था. इसके बावजूद, प्रदेश के कई हिस्सों में स्कूलों में गीता पढ़ाई जा रही है. लेकिन यह पहली बार होगा कि पहली और दूसरी क्लास की 'विशिष्ट उर्दू' की किताब में गीता के प्रसंग शामिल किए जाएंगे.
सरकार के इस फैसले का लगे हाथ विरोध भी शुरू हो गया है. शिक्षा के भगवाकरण की लंबे समय से मुखालफत कर रहे मध्य प्रदेश लोक संघर्ष साझा मंच के सचिव जावेद अनीस ने कहा, 'हम शिक्षा में धर्म के घालमेल के खिलाफ रहे हैं. इसका मासूम बच्चों के दिलो-दिमाग पर बुरा असर पड़ेगा.' उन्होंने कहा कि जो संगठन इस फैसले के खिलाफ हैं, वे जल्द ही एक साथ बैठेंगे और आगे की रणनीति तय करेंगे.
हालांकि प्रदेश की शिक्षा मंत्री अर्चना चिटनिस ने इसका बच्चों पर गलत असर पड़ने की बात से इंकार किया है. उन्होंने कहा, 'यह सिर्फ सरकारी उर्दू स्कूलों में लागू होगा. जो पढ़ाया जाएगा वह भगवदगीता का धार्मिक रूप नहीं होगा. हमने कर्तव्य, आज्ञापालन, प्रेम और जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाने वाले कुछ प्रसंग भर चुने हैं. इसे शिक्षा का भगवाकरण कहना ठीक नहीं है.'