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दिल्ली सरकार का दावा, फॉरेंसिक लैब में 80 फीसदी तक कम हुए लंबित मामले

हाई कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि जिन फॉरेंसिक व साइंटिफिक सबूतों को पुलिस इकट्ठा करती है, उनका सही तरीके से रख-रखाव जरूरी है, जिससे आपराधिक मामलों में असली आरोपियों को पहचाना जा सकें और जांच में कोर्ट के सामने एक मजबूत केस पेश किया जा सके.

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दिल्ली हाई कोर्ट
दिल्ली हाई कोर्ट

देश की राजधानी मे फारेंसिक सबूतों को सही तरीके से संग्रहित करने और समय पर उनकी रिपोर्ट आने को लेकर जब तब सवाल उठते रहे हैं. लेकिन महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट को दिल्ली सरकार ने बताया है कि रोहिणी और चाणक्यपुरी मे चल रही फॉरेंसिक लैब में अप्रैल से अब तक 80 फीसदी लंबित मामले मे रिपोर्ट लैब ने दे दी है. दरअसल मई मे दिल्ली सरकार ने करीब 117 नए स्टाफ को इस फॉरेंसिक लैब मे रखा है.

हाई कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि जिन फॉरेंसिक व साइंटिफिक सबूतों को पुलिस इकट्ठा करती है, उनका सही तरीके से रख-रखाव जरूरी है, जिससे आपराधिक मामलों में असली आरोपियों को पहचाना जा सकें और जांच में कोर्ट के सामने एक मजबूत केस पेश किया जा सके.

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कोर्ट ने की निंदा
कोर्ट ने सवाल उठाया कि पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक अपराध के हर तथ्य पर ध्यान देने के लिए अलग-अलग विभाग है, लेकिन ऐसा कागजातों में ही है. जमीनी हकीकत में ऐसा कुछ काम नहीं होता है. कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से पूछा है कि बॉयोलाजी या कैमिस्ट्री सैंपल फारेंसिक लैब में जमा कराने से पहले किस तरीके से थाने या मालखाने में रखा जाता है. कोर्ट ने कहा कि अगर इसके लिए सही प्रक्रिया का पालन किया जाता है तो पुलिस आपराधिक मामलों में असली अपराधी को पकड़ सकती है नहीं तो निर्दोष लोगों को ही सजा दे दी जाती है.

कोर्ट ने डीएलएसए को दिए निर्देश
कोर्ट ने पुलिस से पूछा कि क्या उनके पास कोई ऐसा डाटा है, जिससे यह पता चले कि कितने आरोपी फॉरेंसिक एवीडेंस के आधार पर पकड़े गए हैं. कोर्ट ने इस मामले में डीएलएसए (दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण) को निर्देश दिया है कि वह पुलिस के मालखानों का दौरा करके पता करें कि सैंपल को किस तरह से रखा जाता है इसकी जानकारी कोर्ट को दे.

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