सोशल मीडिया पर एक वायरल हो रहा है, जिसमें एक यात्री की ओर से ट्रेन में मिलने वाले चाय के पैकेट पर लगे हलाल सर्टिफिकेशन टैग को लेकर हंगामा हो रहा है. इस वीडियो के वायरल होने के बाद IRCTC ने वीडियो को लेकर जवाब भी दिया है. अब सवाल है कि आखिर चाय के पैकेट पर हलाल सर्टिफिकेशन होने का क्या मतलब है और किस वजह से ये सर्टिफिकेशन दिया जाता है. साथ ही जानते हैं इस पूरे मामले में IRCTC का क्या कहना है?
क्या है मामला?
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में दिख रहा है कि एक यात्री ट्रेन में मिलने वाले चाय के पैकेट पर लिखे हलाल सर्टिफिकेशन की बात पर आपत्ति दर्ज कर रहा है. यात्री का कहना है कि सावन के महीने में ऐसा करना हमारी भावनाओं के साथ खिलवाड़ है. वहीं, ट्रेन के कर्मचारी यात्री को समझाने की कोशिश करते हैं कि ये नॉनवेज नहीं बल्कि वेज है और चाय वेज ही होती है. इस वीडियों में ट्रेन स्टाफ और यात्री के बीच बहस देखने को मिल रही है. वैसे ये वीडियो काफी पुराना है और बार-बार सोशल मीडिया पर चर्चा में आ जाता है. अब आईआरसीटीसी ने इस पर जवाब दिया है.
IRCTC ने क्या कहा?
इस वीडियो पर आईआरसीटीसी ने कहा है, 'ये भ्रामक वीडियो है. कृपया इस पर विश्वास न करें और इसे आगे न बढ़ाएं. आईआरसीटीसी को अपने खानपानी की चीजों को लिए सिर्फ Fssai की पालना करने की जरुरत होती है.' एक बार पहले भी इस वीडियो के वायरल होने पर IRCTC ने कहा था कि इन ब्रांड में FSSAI सर्टिफिकेशन होना जरूरी है. ग्रीन डॉट के साथ ये एकदम वेज है.'
क्या है हलाल सर्टिफिकेशन?
हलाल सर्टिफिकेशन के बारे में जानने से पहले बताते हैं कि आखिर हलाल क्या है. दरअसल, जब भी मीट के लिए जानवर को जिबह यानी जानवर के गले को पूरी तरह काटकर, उसका खून निकालकर उसे काटा जाता है तो उसे हलाल करना कहते हैं. एक दूसरे तरीके में एक झटके में जानवर की गर्दन काट दी जाती है. कुछ धर्म हलाल मीट ही खाते हैं. ऐसे में जब किसी को बताना हो कि पैकेट के अंदर हलाल मीट ही है तो उसका हलाल सर्टिफिकेशन किया जाता है. ऐसे में मीट वाले प्रोडक्ट्स पर ये लिखकर बताया जाता है कि ये हलाल मीट है और हलाल मीट खाने वाले लोग उसे खा सकते हैं.
अब सवाल है कि आखिर चाय जैसी वेज चीजों पर इसकी जरुरत क्यों है? अब इसका जवाब है कि वेज आइटम पर इसके सर्टिफिकेशन का कोई मतलब नहीं है. लेकिन, जब कंपनियां विदेश में भी अपना सामान बेचती है तो वो किसी भी विवाद से बचने के लिए ऐसा करती हैं और सभी खाने के प्रोडक्ट पर हलाल सर्टिफिकेट लगा देती हैं, जिससे प्रोडक्ट्स को बिना किसी संकोच खाया जा सकता है.
भारत में हलाल सर्टिफिकेशन की शुरुआत 1974 में हुई थी और 1993 में ये सर्टिफिकेशन सिर्फ मीट का ही होता था. इसके बाद दवाइयों, खाने के अन्य आइटम का भी सर्फिकेशन होने लगा. हालांकि भारत में खाने पीने के हर सामान के लिए हलाल सर्टिफिकेट जरूरी नहीं है, जबकि कंपनियों को FSSAI सर्टिफिकेट की जरुरत होती है. वहीं, भारत में हलाल सर्टिफिकेशन के लिए कोई सरकारी संस्था नहीं है, जबकि कुछ कंपनियां ऐसा करती है.
चाय का क्यों था हलाल सर्टिफिकेशन?
वहीं, चाय पर लगे हलाल सर्टिफिकेशन की बात करें तो इस पर आईआरसीटीसी ने बताया है कि चाय बनाने वाली कंपनी इस प्रोडक्ट को विदेश में भी एक्सपोर्ट करती है, जिस वजह से उन्हें अपने प्रोडक्ट पर लिखना होता है. ये भारत नहीं, बल्कि दूसरे देशों के हिसाब से होता है. लेकिन, हलाल सर्टिफिकेशन का मतलब ये नॉनवेज नहीं है. ये पूरी तरह वेज है, जिसका वेजेटेरियन भी सेवन कर सकता है.
