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समय है अपना बॉस खुद बनने का

चाहे अपना बॉस खुद बनने की खुशी हो या अपने सपने साकार करने का मौका, देशभर के आठ अनोखे उद्यमियों ने सोनाली आचार्जी से अपनी लाइफ के खुशी और गम के लम्हों को साझा किया है.

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मूजिक कंपनी के संस्‍थापक कुमारन महेंद्रन और नेहा
मूजिक कंपनी के संस्‍थापक कुमारन महेंद्रन और नेहा

चाहे अपना बॉस खुद बनने की खुशी हो या अपने सपने साकार करने का मौका, देशभर के आठ अनोखे उद्यमियों ने सोनाली आचार्जी से अपनी लाइफ के खुशी और गम के लम्हों को साझा किया है.

एक एयरोनॉटिकल इंजीनियर ने अपना प्रोफेशन बदलने का मन बनाया और पुणे में मशहूर डांस एकेडमी खोल ली. एक एकाउंटेंट ने आंकड़ों का खेल छोड़कर अपना फैशन ब्रांड शुरू किया. जानिए उन्हें अपनी कंपनी शुरू करने में किस तरह की मुश्किलों को झेलना पड़ा.

कंपनी: मूजिक की कहानी
क्या करती है: डिजिटल जूकबॉक्स है जो कस्टमर को कैटलॉग में चुनने का मौका मुहैया कराती है और पब्लिक प्लेसेज पर पसंदीदा गाना पहुंचाती है. कैफे, रेस्तरां और सैलून में इसके ऐप्स 2,000 रु. प्रति माह में इंस्टाल किए जा सकते हैं.

किसने बनाई: कुमारन महेंद्रन और नेहा बेहानी

कहानी: महेंद्रन और बेहानी मनीला में एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट से एमबीए करने के दौरान पहली बार मिले. बेहानी कहती हैं, ''हम दोनों मिले और चीजें क्लिक कर गईं. हम दोनों ने मिलकर कम-से-कम 700 बिजनेस प्लान तो बनाए ही होंगे लेकिन उनमें से एक पर भी काम नहीं हो सका. ' ग्रेजुएशन के बाद बेहानी एचपी में काम करने सिंगापुर चली गईं और महेंद्रन मनीला में ही एक कंसल्टिंग फर्म में काम करने लगे. कुमारन बताते हैं, '2010 में हम दोनों ने अपनी नौकरी छोड़ी और मुंबई लौट आए. हम अपने लिए काम करना चाहते थे और तिनके से कंपनी खड़ा करना चाहते थे. शुरू में हमने दो वेंचर पर हाथ आजमाए लेकिन दोनों फेल हो गए. एक दिन अचानक एक कैफे में बैठे-बैठे यह आइडिया आया कि क्यों न पब्लिक जूकबॉक्स के रूप में एक ऐप तैयार की जाए. इस तरह पिछले साल नवंबर में हमने मूजिक की शुरुआत की.'

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टर्निंग पॉइंट: बेहानी कहती हैं, 'हाल में गूगल इंडिया के राजन आनंदन ने हमारी फर्म में इन्वेस्ट करने का फैसला किया. वह वाकई लाजवाब लम्हा था. 'मूजिक देशभर में करीब 300 स्टोर में चलाती है. इनमें प्रमुख मेनलैंड चाइना, ओ कलकत्ता, कैफे कॉफी डे, एनरिच सैलून और ब्लू वल्र्ड कैफे है.

खुशी के लम्हे: बेहानी कहती हैं, 'रोजाना सुबह आठ बजे नहीं उठना और दिन के अंत में यह एहसास कि जो काम हमने किया वह अपने खुद के लिए था, ऐसा काम जिसमें हम यकीन करते हैं. काफी संतोषजनक है.'

मुश्किल लम्हे: महेंद्रन कहते हैं, 'हमें संपर्क कायम करने में कुछ वक्त लगा. सपने देखना एक बात है लेकिन उसे जमीन पर उतारना एकदम अलग.'

कंपनी: सेंटर स्टेज डांस कंपनी
क्या करती है: पुणे स्थित आर्टिस्ट एकेडमी जो करीब 15 अलग-अलग स्टाइल के डांस सिखाती है.

किसने बनाई: अविक भट्टाचार्य

कहानी: पुणे में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का कोर्स पूरा करने के बाद भट्टाचार्य ने करियर बदल लेने का फैसला किया और डांसिंग को अपना लिया. भट्टाचार्य कहते हैं, ''मैं कलाकारों की फैमिली से हूं. मेरी मां गीतकार और पिता कोलकाता में फिल्ममेकर हैं. जो भी हो इंजीनियरिंग मेरा मैदान नहीं था. मैं तीन साल की उम्र से मंच पर परफॉर्मेंस दे रहा हूं और मंच पर मैं सबसे सहज महसूस करता हूं. ' सो, शियामक डावर के स्पेशल पोटेंशियल ग्रुप में साढ़े तीन साल की ट्रेनिंग के बाद वे मृडांस, टेरेंस लुइस कंपनी और नाच जैसी कई डांस एकेडमियों में काम करते रहे. फिर, 2011 में उन्होंने अपना डांस स्कूल शुरू करने का फैसला किया. वे कहते हैं, 'तब तक मैं डांस थेरेपी, हिप हॉप, जैज, कंटेंपररी और करीब दर्जन भर डांस स्टाइल में माहिर हो चुका था. मैं डांस की अपनी दुनिया बनाना चाहता था. हम सिर्फ डांस ही नहीं सिखाते, बल्कि कुछ सामाजिक कार्य भी करते हैं जैसे जुवेनाइल प्रिजन में मुफ्त वर्कशॉप चलाना वगैरह. हमें इसके लिए महाराष्ट्र सरकार से सराहना में स्पेशल सर्टिफिकेट भी मिला है.'

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टर्निंग पॉइंट: आठ ब्रांच और 500 स्टुडेंट्स के साथ सेंटर स्टेज डांस कंपनी की पॉपुलेरिटी तेजी से बढ़ रही है. अब इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस से एमबीए कर रहे भट्टाचार्य कहते हैं, 'हम एक्सेंचर, टेक महिंद्रा और टीसीएस जैसे 16 विभिन्न कॉर्पोरेट घरानों के साथ काम कर रहे हैं. पिछले साल हमने पुणे में एक्सेंचर के लिए आठ घंटे का फ्लैश मॉब परफॉर्मेंस किया. '

खुशी के लम्हे: बकौल भट्टाचार्य, 'किसी और की कंपनी में काम करने से मुझे पंख तो मिले लेकिन वे कभी मुझे उडऩे नहीं देते.'

मुश्किल लम्हे: वे बताते हैं, 'कभी-कभी कोई अपने सपने और रचनात्मकता में इतना खो जाता है कि बिजनेस प्लान बनाना मुश्किल हो जाता है.'

कंपनी: सेल योर टैलेंट
क्या करती है: वीक-एंड प्रोग्राम है जिसमें लोगों को एक-दूसरे से नए स्किल्स सीखने और सिखाने का मौका मिलता है.

संस्थापक: अनुराधा तिवारी

कहानी: इंजीनियरिंग करने से लेकर खुद की आइआइटी कोचिंग और एनजीओ खोलने तक तिवारी ने हमेशा कुछ अलग करना चाहा है. वे कहती हैं, 'मैं हमेशा अपने काम को मायने देना चाहती हूं . इसलिए मैंने डिजाइन इंजीनियर का करियर छोड़ सोशल आन्ट्रेप्रेन्योर का काम शुरू किया. ' 2012 में तिवारी को द मेंअपने घर के बाहर के एक पार्क में वीकली प्रोग्राम आयोजित करने का आइडिया आया. वे कहती हैं, 'मैंने अपने दोनों पुराने संस्थान बेच दिए हैं और दूसरे प्रोजेक्ट पर काम करना चाहती हूं. ' प्रेरणाओं के ज्वार ने उनकी योजनाओं के कोर्स को बदल दिया और वे अब अनोखे स्किल्स बढ़ाने में जुटी हैं. सेल योर टैलेंट लोगों को जुटने और एक-दूसरे से नए स्किल्स सीखने या बनाने का मौका देता है. इसमें अचार या पापड़ बनाने, योग, कथक और कुश्ती से लेकर कई तरह के स्किल्स सीखने के मौके होते हैं. तिवारी कहती हैं, 'यह सामुदायिक रूप से जोडऩे के साथ एक्सरसाइज शेयर कराता है.'


कंपनी सेल योर टैलेंट की फाउंडर अनुराधा तिवारी

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टर्निंग पॉइंट: सेल योर टैलेंट में शुरू में महज 30 प्रतिभागी जुटे थे. 'अब कई तरह के इंट्रेस्ट वाले 1,000 लोग हर हफ्ते शामिल होते हैं''

खुशी के लम्हे: तिवारी कहती हैं, 'इससे बेहतर क्या हो सकता है कि आप किसी के चेहरे पर खुशी दे पा रहे हैं और आपको भी उतनी ही खुशी मिल रही है.'

मुश्किल लम्हे: वे बताती हैं, 'शुरू करना मुश्किल है और जैसा नजर आता है जगह, लोग और संसाधन जुटाना उससे कहीं ज्यादा मुश्किल.'

कंपनी: आइ वियर माइ स्टाइल
क्या करती है
: सस्ते में बेहतर फैशन लेबल

संस्थापक: मणि अग्रवाल

कहानी: बी.कॉम ग्रेजुएट अग्रवाल जब 2010 में डीलॉयट ऐंड टच में एक ऑडिट असिस्टेंट के तौर पर काम कर रही थीं, तो उन दो वर्षों के दौरान ही उन्होंने सोच लिया था कि वे खुद अपना फैशन लेबल लॉन्च करेंगी. अग्रवाल कहती हैं, 'मैं कॉर्पोरेट ऑर्गेनाइजेशन में काम करके ऊब चुकी थी. काफी एक्सपेरिमेंट और विमर्श के बाद मैंने खुद 'आइ वियर माइ स्टाइल' की सिर्फ एक लैपटॉप के दम पर शुरुआत की. ' निजी सोशल मार्केटिंग, 25 ई-कॉमर्स वेबसाइट्स के साथ टाइ-अप करके उन्हें आकार बढ़ाना है, इंटरनेशनल कलेक्शन, विभिन्न फेसबुक गिवअवेज बनाना है. इस तरह से उन्हें अब ई-कॉमर्स स्पेस में अपने ब्रांड के लिए जगह बनानी है.

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टर्निंग पॉइंट: आइ वियर माइ स्टाइल अब फ्लिपकार्ट और स्नैपडील पर भी उपलब्ध है. इसने अब तक 12,000 ऑर्डर्स पूरे किए हैं. अग्रवाल बताती हैं, 'हमारे ब्रांड की बात लोगों तक पहुंचाने के लिए फेसबुक ने हमारी बहुत मदद की है. आज हमारे 33,000 फॉलोअर्स हैं. यह हमने छोटे से इन्वेस्टमेंट में ही पूरा कर लिया है.'

खुशी के लम्हे: अग्रवाल कहती हैं, 'अपनी बदौलत इस तरह कुछ खड़ा करना और इसे असल जिंदगी में पूरा होते हुए देखना रोमांचक अनुभव है. कॉर्पोरेट आर्र्गेनाइजेशन में काम करते हुए किसी को कभी संतुष्टि नहीं मिल सकती है. '

मुश्किल लम्हे: वे बताती हैं, 'स्ट्रेटजी बनाना और कॉस्ट-इफेक्टिव बिजनेस प्लान थकाऊ हो सकता है.'

कंपनी: क्रिएटिस्ट
क्या करती है:
क्रिएटिस्ट एक रियल-टाइम एक्टिव लर्निंग एंटरप्राइज टूल है जो टीचर्स को यह सुविधा देती है कि वे इंटरैक्टिव लर्निंग पैकेज को डिजाइन, मैनेज और डिलिवर कर सकें.

संस्थापक: शौविक धर

कहानी: इंजीनियरिंग ग्रेजुएट धर ने चार साल तक डिफेंस रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन में काम किया और इसके बाद इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आइएसबी) हैदराबाद, ज्वाइन किया. उन्होंने बताया, 'मेरे परिवार में बिजनेस चलाने का कोई बैकग्राउंड नहीं था, इसलिए मैंने कुछ छोटा बिजनेस शुरू करने का फैसला किया जिसमें एंट्री बैरियर कम हो. इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के फाइनल टर्म में ही मैंने अपनी पहली कंपनी थिंकएडमिट की शुरुआत की. ' धर ने क्रिएटिस्ट की शुरुआत से पहले एक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट कंपनी करियर एसेज की शुरुआत की. धर ने बताया, 'क्रिएटिस्ट ऐसा प्रोडक्ट है जिसने लोगों को लर्निंग और टीचिंग के अपने तरीके को डिजाइन करने का मौका दिया.'

कंपनी क्रिएटिस्‍ट के फाउंडर शौविक धर

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टर्निंग पॉइंट: इसे डेवलप करने के 15 महीने के भीतर ही भारत की पांच, अमेरिका की दो और दक्षिण कोरिया की एक यूनिवर्सिटी में इस प्रोडक्ट का इस्तेमाल होने लगा है. क्रिएटिस्ट के पास अभी 13 पेंडिंग क्लेम हैं और इसने माइक्रोसॉफ्ट विजपार्क तथा सैमसंग इंटरप्राइज अलायंस के साथ साझेदारी की है. इस प्रोडक्ट और कॉन्सेप्ट को हाल में आयोजित इंटरनेशनल टेक्नोलॉजी, एजुकेशन ऐंड डेवलपमेंट कॉन्फ्रेंस, आइएनटीईडी, वलेंसिया, 2014 में शामिल किया गया था.

खुशी के लम्हे: धर कहते हैं, 'यह देखना जबरदस्त अनुभव होता है कि जो कुछ आपने डेवलप किया वह एक्सपैंड हो रहा है और ग्रो कर रहा है. यह एक सर्वोत्तम अनुभव है जो निराशा के दिनों से किसी को भी उबार सकता है.'

मुश्किल लम्हे: उन्होंने कहा, 'अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ के बीच संतुलन बनाना एक चुनौती है.'

कंपनी: जॉस्टेल
क्या करती है:
बैकपैकर्स के लिए भारत का पहला हॉस्टल चेन, जिसमें एक रात रहने का किराया 470 रु. से शुरू होता है, ब्रेकफास्ट और वाइ-फाइ सहित.

संस्थापक: यह कुछ दोस्तों (धरमवीर सिंह चौहान, पवन नंदा, अखिल मलिक, तरुण तिवारी, चेतन सिंह चौहान, अभिषेक भुतरा और सिद्धार्थ जंघू) जॉइंट वेंचर है.

कहानी: पहले जॉस्टेल की शुरुआत 15 अगस्त, 2013 को जोधपुर में सात दोस्तों ने की. नंदा ने बताया, 'हममें से चार लोग आइआइएम- कलकत्ता से ग्रेजुएट और तीन अन्य आइआइटी-बीएचयू से हैं. हम सब खूब घूमे हैं और हमें यह बात अजीब लगी कि भारत जैसे देश में जहां इतने ज्यादा युवा और ट्रैवलर हैं, अब भी अच्छी क्वालिटी के हॉस्टल नहीं हैं. हमने प्लेसमेंट से बाहर रहने का निर्णय लिया और इसके छह माह के भीतर पहला जॉस्टेल शुरू हो गया और चल रहा है.'कंफर्टेबल डॉर्म, हर समय सुरक्षा, अल्ट्रा फास्ट वाइ-फाइ, लॉन्ड्री, एक कॉमन रूम, बोर्ड गेम, टीवी और एक छोटी-सी लाइब्रेरी जॉस्टेल की अनोखी विशेषताएं हैं.

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टर्निंग पॉइंट: पिछले महीने मलेशिया के इन्वेस्टर प्रेशा परागाश ने जॉस्टेल में 5 करोड़ रु. का इन्वेस्टमेंट किया है. इस चेन की फिलहाल एक ब्रांच जोधपुर में और एक जयपुर में है. नंदा ने बताया, 'हम जल्द ही आगरा, वाराणसी, मुंबई और अन्य लोकप्रिय ट्रैवल डेस्टिनेशन तक अपना विस्तार करना चाहते हैं.'

खुशी के लम्हे: नंदा कहते हैं, 'जब आप अपनी कंपनी चलाते हैं तो क्रिएटिविटी की काफी आजादी होती है.'

मुश्किल लम्हे: ''पहली पीढ़ी के आन्ट्रेप्रेन्योर के लिए चीजों को एक लय में लाना और बिजनेस को स्थापित करना एक चुनौती होती है. इसके लिए मूल बात है फोकस बनाए रखना.'

कंपनी: वॉयसट्री टेक्नोलॉजीज
क्या करती है:
वॉयसट्री कई तरह की वॉयस टेक्नोलॉजी पर काम करती है और उसने Myoperator तैयार किया है जो एसएमई के लिए क्लाउड आधारित कॉल मैनेजमेंट सिस्टम है.

संस्थापक: अंकित जैन

कहानी: जैन कहते हैं, 'वॉयस को कम्युनिकेशंस का प्रमुख साधन बनाने का आइडिया तब से विकसित होना शुरू हुआ था जब मैं बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा में इंजीनियरिंग कर रहा था. शुरू में वॉयसट्री का फोकस ग्रामीण क्षेत्र के लिए वॉयस आधारित इन्फोटेनमेंट मोबाइल चैनल बनाने पर था. इसमें हमने अच्छा कॉल वॉल्यूम हासिल किया, लेकिन हम पर्याप्त रेवेन्यू हासिल करने में विफल रहे. ' इससे हतोत्साहित होकर 2012 में जैन ने कंपनी छोडऩे का फैसला किया, लेकिन वॉयस टेक्नोलॉजी में उनकी दिलचस्पी बनी हुई थी. जैन ने कहा, 'हमने एक और मौका लिया तथा अपने कैश फ्लो को मैनेज करने के लिए सॉल्युशंस तलाशने शुरू किए. ' वॉयसट्री रिवाइव हो गया और एसएमई को लक्ष्य कर मार्च, 2013 में क्लाउड आधारित कॉल मैनेजमेंट सिस्टम Myoperator की शुरुआत हुई. टर्निंग पॉइंट: आज यह सिस्टम करीब 6,000 बिजनेस तक पहुंच चुका है.

वॉयस ट्री टेक्‍नोलॉजीज के फाउंडर अंकित जैन

खुशी के लम्हे: 'आन्ट्रेप्रेन्योरशिप से आपको यह सीखने का मौका मिलता है कि मुश्किल फैसले कैसे लें, लोगों को एक विजन से कैसे जोड़ें और फाइनेंस को कैसे मैनेज करें. '

मुश्किल लम्हे: टीम बनाना, सही कॉन्सेप्ट के साथ आगे आना और निवेश तलाशना हमारे रास्ते की कुछ प्रमुख चुनौतियां रहीं.

कंपनी: नर्चरिंग ग्रीन
क्या करती है:
ग्रीन रिटेल स्टोर चेन जिसमें कई तरह के पौधों की बिक्री गिफ्ट आइटम के रूप में की जाती है.

संस्थापक: अनू ग्रोवर

कहानी: प्लांट गिफ्टिंग का आइडिया सबसे पहले ग्रोवर के दिमाग में तब आया जब वे ऑस्ट्रिया के एफएच जोआनियम से एमबीए की पढ़ाई कर रहे थे. ग्रोवर ने बताया, 'मेरे एक दोस्त ने मुझे जोडिऐक प्लांट गिफ्ट किया और मुझे यह बहुत पसंद आया. मुझे यह बात भा गई कि प्लांट इतना वंडरफुल गिफ्ट हो सकता है और फूलों या मिठाई के विपरीत यह लंबे समय तक चलता है. ' वे 2009 में भारत लौट आए और एक साल के बाद नर्चरिंग ग्रीन की शुरुआत की. ग्रोवर कहते हैं, 'प्लांट्स की बिक्री से हम न सिर्फ लोगों की मदद मेमोरी क्रिएट करने में कर रहे हैं बल्कि एक ग्रीन इकोसिस्टम को भी बढ़ावा देने के काम को अंजाम दे रहे हैं. '

टर्निंग पॉइंट: अप्रैल, 2011 में कंपनी को मिडल ईस्ट की कंपनी आइ3 कंसल्टिंग से 80 लाख रु. का फंड हासिल हुआ, आइ3 की स्थापना मैकिंजे ऐंड कंपनी के कुछ पूर्व कर्मचारियों ने की है. ग्रोवर कहते हैं, 'हम अब तक लंबा रास्ता तय कर चुके हैं. आज हमारे पास एक ऑनलाइन स्टोर और पूरी दिल्ली के विभिन्न मॉल्स में ऑफलाइन स्टोर्स हैं. हमारे पास टोयोटा के कुछ डीलरशिप और नोएडा गोल्फ क्लब सहित करीब 50 निजी ग्राहक भी हैं. '

खुशी के लम्हे: ग्रोवर ने सवाल किया, 'मैं आन्ट्रेप्रेन्योर्स के परिवार से हूं, इसलिए कंपनी चलाना हमेशा से मेरा सपना रहा है. मेरा मानना है कि जब आपको कड़ी मेहनत करनी है तो अपने लिए क्यों न करें? '

चुनौती: 'दोस्तों और परिवारवालों को यह समझना मुश्किल था कि पौधे बेचने को भी प्रॉफिटेबल बिजनेस बनाया जा सकता है. यह काफी अनऑर्गेनाइज्ड सेक्टर है जिस पर नर्सरियों का प्रभुत्व है.

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