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बिजनेस

भारत के बाजार में कितना घुसा है चीन, क्या मुमकिन है बायकॉट?

जानेंः भारत के बाजार में कितना घुसा हुआ है चीन, क्या मुमकिन है बायकॉट?
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चीन से सीमा पर जारी भारी तनाव के बीच एक बार फिर से चीनी माल के बहिष्कार और चीन से व्यापार रोकने की आवाजें तेज हो गई हैं. लेकिन कड़वा सच यह है कि चीन हमारे देश के टॉप 10 कारोबारी साझेदार में से है और यहां के कई सेक्टर में उसकी जबरदस्त घुसपैठ है. स्मार्टफोन के 65 फीसदी बाजार पर चीनी कंपनियों का कब्जा है. यही नहीं, भारत के कई बड़े और चर्चित स्टार्टअप में चीनी कंपिनयों ने अरबों डालर का निवेश कर रखा है.
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भारत-चीन सीमा पर हिंसक झड़पें हुई हैं जिसके बाद एक बार फिर देश में बायकॉट चाइना आंदोलन जोर पकड़ता दिख रहा है. चीन हमारे देश के इलेक्ट्रॉनिक्स, ई-कॉमर्स, हॉस्पिटलिटी और ई-लर्निंग जैसे सेक्टर में गहराई तक घुस चुका है. तो क्या बायकॉट चीन का आंदोलन सफल हो सकता है? क्या हम चीनी माल के बिना गुजारा कर सकते हैं? क्या हैं वास्तविक हालात इस पर एक नजर डालते हैं.
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हमारे कुल विदेशी व्यापार में चीन का हिस्सा 10 फीसदी से ज्यादा है, इसलिए भारत के लिए अचानक इस कारोबार को रोक देना संभव नहीं है. भारत के कुल विदेशी व्यापार में चीन का हिस्सा जहां 10.1 फीसदी तक है, वहीं चीन के विदेश व्यापार में भारत का हिस्सा महज 2.1 फीसदी है. वित्त वर्ष 2018-19 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत के कुल निर्यात में चीन का हिस्सा महज 5.3 फीसदी है, जबकि कुल आयात में चीन का हिस्सा 14 फीसदी है. यही नहीं, चीन के कुल आयात में तो भारत का हिस्सा महज 0.9 फीसदी है.

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चीन और हांगकांग को जोड़ लें तो ये भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार हैं. अमेरिका इसके बाद दूसरे स्थान पर आता है. वर्ष 2019-20 में चीन-हांगकांग से भारत का कुल व्यापार 103.53 अरब डॉलर (करीब 7,88,759 करोड़ रुपये) का हुआ. इस दौरान अमेरिका के साथ भारत का व्यापार 82.97 अरब डॉलर (करीब 6,32,120 करोड़ रुपये) का हुआ.
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राहत की बात
चीन, अमेरिका के अलावा भारत के 10 बड़े व्यापारिक साझेदारों में यूएई, सउदी अरब, इराक, सिंगापुर, जर्मनी, दक्षिण कोरिया और इंडोने​शिया शामिल हैं. इन देशों का भारत के कुल विदेश व्यापार में हिस्सा 50 फीसदी से ज्यादा है.
हाल में चीन और हांगकांग के साथ व्यापार में कुछ राहत के बिंदु सामने आए हैं. भारत का अब चीन के साथ व्यापार थोड़ा कम हो रहा है और दूसरे देशों से व्यापार बढ़ रहा है. वर्ष 2019-20 में चीन-हांगकांग के साथ भारत का व्यापार 7 फीसदी घटकर 109.76 अरब डॉलर (करीब 8,36,200 करोड़ रुपये) तक पहुंच गया. यह पिछले सात साल की सबसे बड़ी गिरावट है.
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लेकिन चीन के साथ व्यापार में बड़ी चिंता की बात है उसके साथ भारत का व्यापार घाटा. भारत के कुल विदेशी व्यापार घाटे में चीन का हिस्सा साल 2007-08 के 18.7 फीसदी से बढ़कर साल 2016-17 में 47.1 फीसदी तक पहुंच गया. हालांकि 2019-20 में यह थोड़ा घटकर 30.3 फीसदी तक आ गया है. जब किसी देश से हमारा निर्यात के मुकाबले आयात व्यापार ज्यादा होता है तो यह जितना ज्यादा होता है उतना ही व्यापार घाटा माना जाता है.
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इन वस्तुओं का होता है प्रमुख व्यापार
चीन से भारत को आयात होने वाली मुख्य वस्तुओं में इलेक्ट्रिक मशीनरी एवं इक्विपमेंट, रिएक्टर्स, बॉयलर्स मशीनरी, मेकैनिकल अप्लायंसेज, आर्गेनिक केमिकल्स एवं दवाइयां, प्लास्टिक, इलेक्ट्रॉनिक्स और उर्वरक शामिल हैं.
दूसरी तरफ, चीन को भारत आर्गेनिक केमिकल्स, स्लग एवं ऐश, मिनरल फ्यूल एवं मिनरल ऑयल, मछली और समुद्री उत्पादों, इलेक्ट्रिक मशीनरी एवं इक्विपमेंट का निर्यात करता है.
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मोबाइल फोन बाजार पर कब्जा
भारत के मोबाइल फोन बाजार पर चीन कंपिनयों का कब्जा है. भारत के स्मार्टफोन बाजार के 65 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर चीनी कंपनियों का कब्जा है. साल 2019 में चीनी कंपनी शाओमी की बाजार हिस्सेदारी 28.6 फीसदी, वीवो की 15.6 फीसदी, ओप्पो की 10.7 फीसदी और रियल मी की 10.6 फीसदी रही है. इसी तरह स्मार्ट टीवी बाजार के करीब 35 फीसदी हिस्से पर चीनी कंपनियों का कब्जा है.
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भारतीय स्टार्टअप में चीनी निवेश
भारत के कई प्रमुख स्टार्टअप में चीनी कंपनियों ने मोटा निवेश कर रखा है. पेटीएम में चीनी कंपनियों का निवेश 3.53 अरब डॉलर (करीब 26,894 करोड़ रुपये),  ओला में 3.28 अरब डॉलर (करीब 25,000 करोड़ रुपये), ओयो रूम्स में 3.2 अरब डॉलर (करीब 24,380 करोड़ रुपये), स्नैपडील में 1.8 अरब डॉलर (करीब 13,714 करोड़ रुपये) और बाइजू में 1.47 अरब डॉलर (करीब 11,199 करोड़ रुपये) का निवेश चीनी कंपनियों ने कर रखा है.
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हालांकि चीन से आने वाला प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बहुत कम है. पिछले दो दशकों में चीन से महज 2.4 अरब डॉलर (करीब 18,285 करोड़ रुपये) का विदेशी निवेश आया, जो कि देश में आने वाले कुल एफडीआई का महज आधा फीसदी है. जानकार इसकी वजह यह बताते हैं कि चीन से आने वाला ज्यादातर एफडीआई अब सिंगापुर और हॉन्ग कॉन्ग से होकर आता है.
(www.businesstoday.in के इनपुट पर आधारित)
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