डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति के तौर पर दूसरे कार्यकाल के शुरुआत से ही भारत-अमेरिका के रिश्तों में बड़ा बदलाव होते नज़र आ रहा है. टैरिफ़ की वजह से दोनों मुल्कों के बीच कड़वाहट भी देखने को मिली. अब अमेरिका ने साफ़ कर दिया है कि वह भारत के साथ कैसे रिश्ते रखने वाला है.
अमेरिका की नई नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटजी 2025 में भारत की स्थिति बदल गई है. पहले अमेरिका भारत को चीन के खिलाफ एक मजबूत लोकतांत्रिक साझेदार मानता था, लेकिन अब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई रणनीति में भारत को सिर्फ व्यावहारिक और लेन-देन वाले सहयोगी के तौर पर देखा जा रहा है.
पूरे दस्तावेज में भारत का नाम सिर्फ चार बार आया है और हर बार इसका संदर्भ उपयोगिता से जुड़ा है. अमेरिका अब भारत के साथ व्यापार को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सुरक्षा योगदान से जोड़कर देख रहा है. यानी अब रिश्ते भरोसे और साझा मूल्यों पर नहीं, बल्कि शर्तों और फायदे पर आधारित हो रहे हैं. इसे रणनीतिक मित्रता की जगह रणनीतिक भर्ती कहा जा सकता है.
बाइडन सरकार के समय भारत के विकास को अमेरिका के हित में देखा जाता था और दोनों देशों के बीच लंबी साझेदारी की बात होती थी. लेकिन 2025 की नई रणनीति से साफ है कि अमेरिका की प्राथमिकताएं बदल गई हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका अब भारत को बहुत स्वतंत्र और अलग-अलग देशों से जुड़ने वाला देश मानता है, जो किसी एक खेमे में फिट नहीं बैठता.
ट्रंप की सोच इस रणनीति में साफ दिखती है. अमेरिका अब वैश्विक जिम्मेदारियों से दूरी बना रहा है और अपने पश्चिमी गोलार्ध, सीमा सुरक्षा, आव्रजन नियंत्रण और घरेलू अर्थव्यवस्था पर ज्यादा ध्यान दे रहा है. इंडो-पैसिफिक अब भी जरूरी है, लेकिन अब यह अमेरिकी नीति का केंद्र नहीं रहा. साथी देशों से अपेक्षा की जा रही है कि वे खुद ज्यादा जिम्मेदारी उठाएं.
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भारत के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण है. व्यापार, रक्षा खरीद और रणनीतिक स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर अमेरिका का दबाव बढ़ सकता है. इमिग्रेशन पॉलिसी में भी संकेत मिल रहे हैं कि भारतीय स्किल्ड प्रोफेशनल के लिए रास्ते सीमित हो सकते हैं.
साथ ही, चीन के साथ भारत के सीमा विवादों पर अमेरिकी रणनीति की चुप्पी बताती है कि अमेरिका ऐसे टकरावों से दूर रहना चाहता है जो सीधे उसे प्रभावित नहीं करते.
यह रणनीति भारत के प्रति दुश्मनी नहीं, बल्कि भावनात्मक दूरी को दर्शाती है. अब भारत के सामने चुनौती यह है कि वह अपनी उपयोगिता बनाए रखते हुए अपनी स्वतंत्रता और संतुलित विदेश नीति से समझौता न करे. भारत को अब ऐसी रणनीति बनानी होगी जो अमेरिकी अपेक्षाओं और अपने राष्ट्रीय हितों के बीच संतुलन बना सके.
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