'चुंबन की आवाज तोप के धमाके की तरह जोरदार नहीं होती, लेकिन इसका करंट लंबे समय तक अनुगूंज पैदा करता रहता है.' शीत युद्ध की सर्वाधिक चर्चित तस्वीरों में से एक ये फोटो (ऊपर) अमेरिकी कवि ओलिवर वेंनडेल की अभिव्यक्ति को सटीक ढंग से कैद करता है. ओलिवर वेंनडेल ने 1859 में अपने लेख ऑटोक्रेट ऑफ द ब्रेकफास्ट टेबल में लिखा था- 'The sound of a kiss is not so loud as that of a cannon, but its echo lasts a great deal longer.' यूं तो इन लाइनों में ओलिवर का ये संदेश छिपा है कि प्रेम और स्नेह हिंसा और टकराव से अधिक महत्वपूर्ण है.
लेकिन त्रासदी ये रही कि जिस राजनीतिक पृष्ठभूमि में इस चुंबन को दो कॉमरेड्स ने एक दूसरे के अधरों पर अंकित किया वो समय आधुनिक इतिहास में दो महाशक्तियों के जबरदस्त टकराव भरे दौर की याद दिलाता है.
वो दौर था कोल्ड वार का. सेकेंड वर्ल्ड वार के बाद विश्व के देश दो खेमों में बंट चुके थे. कम्युनिस्ट ब्लॉक का लीडर सोवियत रूस था और कैपिटलिस्ट मोर्चे का कर्ता-धर्ता था संयुक्त राज्य अमेरिका.
जब मिले आधे यूरोप का किस्मत लिखने वाले दो दिग्गज कम्युनिस्ट
इसी परिस्थिति में आज से ठीक 44 साल पहले यानी कि 7 अक्टूबर 1979 को वो दो स्टेट्समैन मिले जो आधे यूरोप का भाग्य निर्धारित करते थे. एक ओर थे सोवियत रूस (USSR)के राष्ट्रपति लियोनिद ईलिच ब्रेझनेव (Leonid Ilyich Brezhnev). ब्रेझनेव उस वक्त सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी की केन्द्रीय समिति के महासचिव थे. दूसरी ओर थे पूंजीवादी अमेरिका के प्रभाव को नकार कर बनने वाले पूर्वी जर्मनी के चीफ लीडर एरिच अर्नेस्ट पॉल होन्कर (Erich Ernst Paul Honecker). एरिच होन्कर पूर्वी जर्मनी की सोशलिस्ट एकता पार्टी के महासचिव थे. पूर्वी जर्मनी तब यूरोप में कम्युनिस्ट विचारधारा का झंडाबरदार था जो पूंजीवादी अमेरिका के साथ टकराव में सोवियत रूस के साथ तनकर खड़ा था. कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रति समर्पित ये दोनों कॉमरेड तब अमेरिकी कैपिटलिज्म को जोरदार टक्कर दे रहे थे
दो राष्ट्राध्यक्षों के मिलन का मूल्यांकन और कवरेज यूं तो राजनीतिक और रणनीतिक प्रिज्म से होता है, लेकिन इस मीटिंग में कुछ ऐसा हुआ जिसने इस मुलाकात को कैद करने के लिए लैंस लेकर तैयार बैठे फोटो पत्रकारों को सुखद आश्चर्य या अद्भुत हैरानी से भर दिया. पर इस मोमेंट को सटीक अपने कैमरे में कैद करने वाला लकी फोटो जर्नलिस्ट सिर्फ एक था. कौन था वो फोटोग्राफर?
पब्लिक व्यू में चुंबन तो सुर्खियां बनता ही है
क्या था वो मोमेंट? अब जरा ठहरिए. पब्लिक व्यू में चुंबन तो सुर्खियां बनता ही है. हाल फिलहाल की बात करें तो मैडोना-ब्रिटनी स्पीयर्स, ब्रैडपीट-एंजलीना, प्रिंस विलियम और केन मिडिटन के स्कैंडलकारी चुंबन काफी चर्चा में रहे. पर कुछ साल पहले भी ऐसी घटनाओं को प्रेस में अच्छा खासा कवरेज मिलता था.
और अगर दो मर्द सार्वजनिक मंच पर लिपलॉक करें तो हंगामा तो होता ही. और तब क्या बात होगी जब एक दूसरे के होठों पर किस करने वाले ये मर्द एक कट्टर विचारधारा के प्रति समर्पित दो मुल्कों के राष्ट्रपति हों.
तो ये मोमेंट वही था. तारीख थी 7 अक्टूबर 1979. जब सोवियत रूस के राष्ट्रपति कॉमरेड ब्रेझनेव समूचे प्रेस के सामने पूर्व जर्मनी के राष्ट्राध्यक्ष कॉमरेड एनिक होन्कर को चूमने लगे. लेकिन साम्यवादी भाईचारे वाले इस चुंबन की असली कहानी सेकेंड वर्ल्ड वार में जर्मनी की हार से शुरू होती है.
हार के बाद चार हिस्सों में बंटा जर्मनी
द्वितीय विश्व युद्ध में हिलटर के पतन के बाद जर्मनी की स्थिति विकट हो गई थी. इस शक्तिशाली देश को मित्र राष्ट्रों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और सोवियत रूस ने चार भागों में बांट दिया. हर देश ने राजधानी बर्लिन को अपने-अपने सेक्टरों में बांट रखा था. जर्मनी की स्थिति टापू जैसी हो गई थी.
जर्मनी में प्रशासन के तरीके को लेकर सोवियत रूस और अमेरिका के बीच तनातनी थी. स्टालिन का कब्जा पूर्वी जर्मनी के हिस्सों पर था और वो वहां कम्युनिस्ट आइडियोलॉजी की सरकार चाहता था. लेकिन इसी जर्मनी के पश्चिमी हिस्सों पर अमेरिका और ब्रिटेन-फ्रांस का कब्जा था जहां पूंजीवादी व्यवस्था थी. लिहाजा इन दोनों ब्लॉक में टकराव लाजिमी था.
स्टालिन और USA के हितों का टकराव और पूर्वी जर्मनी का जन्म
1945 में युद्ध खत्म हुआ. अगले दो तीन सालों में अमेरिका ने दुनिया पर राज करने के लिए अपना एजेंडा तैयार कर लिया. इसके तहत 1948 में अमेरिका ने पश्चिमी यूरोप में मार्शल प्लान लागू करना चाहा. इसका उद्देश्य युद्ध में ध्वस्त हो चुके यूरोप के पुनर्निर्माण के लिए आर्थिक सहायता देना था. साथ ही पश्चिमी जर्मनी का भी निर्माण करना था. लेकिन स्टालिन कभी नहीं चाहता था कि उसके प्रभाव वाले क्षेत्र के बगल में ही अमेरिकी पूंजी की नींव पर पोस्ट वार की इमारतें खड़ी हों. इससे निश्चित रूप से उसकी प्रतिष्ठा में कमी होती. स्टालिन ने पूर्वी जर्मनी के लिए साम्यवादी व्यवस्था का खांका खींचा था.
लिहाजा अमेरिका के इस प्लान को USSR ने हरी झंडी नहीं दी. बर्लिन की नाकेबंदी की जाने लगी. स्टालिन ने पूर्वी हिस्सों से लगने वाले पश्चिमी बर्लिन के हिस्सों को काट दिया. इस बीच मौका देखकर 7 अक्टूबर 1949 को सोवियत संघ ने जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य (German Democratic Republic) के अस्तित्व की घोषणा कर दी, जिसे पूर्वी जर्मनी भी कहा जाता है. इसमें USSR के प्रभाव वाले क्षेत्र थे. पूर्वी जर्मनी अलग देश जरूर था. इसे कुछ देशों की मान्यता भी मिली लेकिन इसे सोवियत संघ के कठपुतली देश के तौर पर ही देखा जाता था.
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पूर्वी जर्मनी बन जाने के बाद अमेरिका और सोवियत रूस का टकराव और भी बढ़ गया फिर साल 1961 में 13 अगस्त की रात को बर्लिन में पूर्वी जर्मनी ने एक दीवार खड़ी कर दी. इस दीवार ने बर्लिन को भौतिक एवं वैचारिक रूप से दो हिस्सों में विभाजित कर दिया था.
सोवियत रूस का क्रिएशन होने की वजह से पूर्वी जर्मनी का एक मॉडल के रूप में विकसित होना, इसका सफल होना कम्युनिस्ट ब्लॉक की नैतिक जिम्मेदारी बन गई थी.
यहां से शुरू होती है चर्चित चुंबन की कहानी
1979 में इसी पूर्वी जर्मनी की 30वीं वर्षगांठ थी. साम्यवादी अर्थव्यवस्था की राह पर चलने वाले पूर्वी जर्मनी की इकोनॉमी रफ्ता-रफ्ता आगे बढ़ रही थी. लेकिन इस बार जश्न बड़ा होने वाला था. पूर्वी जर्मनी के राष्ट्राध्यक्ष होन्कर ने इस जश्न में शामिल होने के लिए न्यौता भेजा था सोवियत रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति लियोनिद ईलिच ब्रेझनेव को.
ब्रेझनेव मुख्य आयोजन से 3 दिन पहले यानी कि 4 अक्टूबर को ही बर्लिन पहुंच चुके थे. 5 अक्टूबर 1979 को द टाइम्स अखबार में संवाददाता जॉन विनोकर ने इस घटना का कवरेज करते हुए लिखा है. 'जब 72 वर्षीय ब्रेझनेव शोनफेल्ड हवाई अड्डे से सरकारी अतिथि निवास नीडेर्सचोनहौसेन पैलेस तक शहर से होकर गुजरे तो हजारों लोगों की अनुशासित भीड़ ने उनका स्वागत किया. इस दौरान ब्रेझनेव ने एक ओवरकोट और स्कार्फ पहना था और जब वह पूर्वी जर्मन नेता एरिच होन्कर को गले लगाने के लिए अपने विमान की सीढ़ियों से नीचे उतर रहे थे तो उन्हें सहारे की जरूरत थी.'
7 अक्टूबर को एनिच होन्कर ने ब्रेझनेव को 'हीरो ऑफ द जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक' और कार्ल मार्क्स मेडल से सम्मानित किया. फिर ब्रेझनेव ने कम्युनिस्ट भाईचारे की एकता का जोशीला भाषण दिया.
गले लगाया...फिर दुनिया को हैरान कर दिया
अपना भाषण देने के बाद ब्रेझनेव ने एरिक होन्कर की ओर रुख किया, फिर उन्हें गले लगाया और फिर पूरी दुनिया को आश्चर्यचकित करते हुए और फोटो पत्रकारों की आनंदित करते हुए दोनों नेताओं ने एक-दूसरे को लंबे समय तक चूमा. मौके पर मौजूद फोटोग्राफर रेगिस बोसु ( Regis Bossu) ने इस क्षण को अपने कैमरे में कैद कर पूरी तरह से अमर बना दिया. अगले दिन दुनिया भर के प्रकाशनों ने इस तस्वीर को छापा और इसका सरल लेकिन असरदार कैप्शन लिखा- The kiss.
भाईचारे वाला चुंबन: कम्युनिस्ट नेता, कैडर और कमिटमेंट
भाईचारा चुंबन या भ्रातृ चुंबन (Fraternal Kiss) का ये तरीका कम्युनिस्ट देशों के नेताओं के बीच अभिवादन का एक विशेष रूप था. यह 20वीं सदी के मध्य में शुरू हुआ और शीत युद्ध के दौरान अपने चरम पर पहुंच गया. कट्टर विचारधारा के उस दौर में कम्युनिस्ट नेता और कैडर इस चुंबन के जरिए एक दूसरे के प्रति अपना कमिटमेंट दिखाते थे. भ्रातृ चुंबन में दो लोग गालों पर एक-दूसरे को चूमते हैं, अक्सर तीन बार, बारी-बारी से. लेकिन कुछ दफे चुंबन का ये सिलसिला मुंह पर भी चलता था. अभिवादन का यह तरीका गाढ़ी दोस्ती और बेझिझक सॉलिडरिटी का प्रतीक था.
समाजवादी और वामपंथी राजनेता के साथ साथ क्रांतिकारी और सामाजिक आंदोलन के कार्यकर्ता भी इस चुंबन को देते हुए देखे जाते थे. हालांकि हाल के वर्षों में इसे असहज माना जाने लगा है और इसका चलन कम हो गया है.
हालांकि चीन यहां भी इसका अपवाद रहा. 1960 के दशक में जब चीन और सोवियत रूस के रिश्तों में खटास आई तो चीनी अधिकारी रूसियों को गले लगाने से परहेज करते. दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधरने के बाद चीन के राजनयिक अपनी हैंडशेक परंपरा पर ही टिके रहे.
ब्रेझनेव इस चुंबन से क्या जताना चाहते थे?
दरअसल ब्रेझनेव इस दौरे से अमेरिका को स्पष्ट संदेश देना चाहते थे कि साम्यवाद की विचारधारा और पूर्वी जर्मनी का सवाल सोवियत रूस के एजेंडे से अबतक बाहर नहीं हुआ है. उन्होंने जता दिया कि अमेरिकी पूंजीवाद की धार के सामने फिलहाल सोवियत रूस का साम्यवाद पूर्वी जर्मनी में डिगने वाला नहीं है.
ब्रेझनेव और होन्कर के बीच का ये चुंबन अंतरराष्ट्रीय संबंधों में सिम्बोलिज्म (symbolism) की ताकत को दर्शाता है और एकजुटता के सार्वजनिक प्रदर्शन के महत्व की भी याद दिलाता है. 79 की घटना और इसके प्रचार ने अमेरिका को और पूरी दुनिया को ये बता दिया कि शीत युद्ध के दशक अभी खत्म नहीं हुए है. इसके साथ ही ब्रेझनेव ने एक बार फिर साबित किया कि वे तत्कालीन समय में कम्युनिस्ट के गुट के सर्वमान्य नेता थे.
The kiss के 10 साल बाद खत्म हो गया पूर्वी जर्मनी
विचारधारा के टकराव में पूर्वी जर्मनी 1949 में वजूद में आया. भाईचारे का साम्यवादी चुंबन की विख्यात घटना 1979 में हुई. लेकिन राजनीति की रस्साकशी ऐसी रही कि अगला 10 साल गुजरते गुजरते 1989 में पूर्वी जर्मनी खत्म हो गया. इस तरह ये देश मात्र 40 साल दुनिया के नक्शे पर रहा. 1989 में होन्कर और सोवियत नेता गोर्बाचोव के बीच रिश्ते बिगड़ने लगे. क्योंकि घोर कम्युनिस्ट होन्कर गोर्बाचोव की उदारवाद की नीति ग्लास्तनोस्त और पेरेस्त्रोइका को लागू नहीं करना चाहते थे. इसके कारणों पर आज भी राजनीति शास्त्र की कक्षाओं में चर्चे होते हैं.
पर ये जान लें कि ये इतिहास का वो मोड़ था जब साम्यवाद अपनी चमक खो रहा था. USSR बिखर रहा था. नई पीढ़ी आर्थिक आजादी के सपने देख रही थी. लिब्रलाइजेशन-ग्लोबलाइजेशन की नाव पर सवार अमेरिका दुनिया को अपनी आर्थिक ताकत से भौचक्का करता जा रहा था. धुआंधार उत्पादन और डॉलर की ताकत दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं को अपने ग्रिप में ले रही थी.
भला इसी परिस्थिति में पूर्वी जर्मनी पूंजीवाद की प्रचंड आंधी के सामने कैसे टिक पाता? 1989 में पूर्वी जर्मनी में कम्युनिस्ट पार्टी का पतन हो गया. 9 नवम्बर, 1989 को बर्लिन की दीवार तोड़ दी गई. जुलाई, 1990 में सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचोव ने हवा के रुख को पहचाना. उन्होंने पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के एकीकरण का रास्ता साफ कर दिया. फिर 3 अक्टूबर 1990 को पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी एक हो गए.
पन्ना लाल