संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने पाकिस्तान के हालिया संवैधानिक संशोधन पर गहरी चिंता जताई है. उन्होंने कहा कि यह संशोधन देश की न्यायिक स्वतंत्रता, सेना की जवाबदेही और कानून के शासन के लिए एक गंभीर चुनौती है. एक प्रेस विज्ञप्ति में टर्क ने कहा कि यह संशोधन जल्दबाजी में और बिना किसी सार्वजनिक या कानूनी परामर्श के पारित किया गया है, जो पिछले साल के 26वें संशोधन की ही तरह है, जिसमें भी न्यायपालिका और नागरिक समाज से संवाद को नजरअंदाज किया गया था.
'सुप्रीम कोर्ट को दरकिनार करने वाला संशोधन'
टर्क ने कहा कि इस तरह की एकतरफा कार्रवाइयां शक्ति के विभाजन के उस मूल सिद्धांत के खिलाफ हैं, जो लोकतंत्र की नींव है और मानवाधिकारों की सुरक्षा करता है. 13 नवंबर को पारित इस संशोधन के तहत एक नया फेडरल कांस्टीट्यूशनल कोर्ट (FCC) बनाया गया है, जो सभी संवैधानिक मामलों की सुनवाई करेगा. इससे सुप्रीम कोर्ट को लगभग दरकिनार कर दिया गया है और उसका अधिकार क्षेत्र केवल दीवानी और आपराधिक मामलों तक सीमित कर दिया गया है.
'न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के लिए गंभीर खतरा'
टर्क के अनुसार, नए कोर्ट की स्थापना और सरकार के निर्देश पर होने वाली न्यायिक नियुक्तियां, पाकिस्तान की न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के लिए गंभीर खतरा हैं. उन्होंने कहा कि इन बदलावों से न्यायपालिका को राजनीतिक दखल और कार्यपालिका के नियंत्रण में लाने का जोखिम पैदा हो गया है. न्यायाधीशों का राजनीतिक प्रभाव से मुक्त होना न्याय और कानून के समक्ष समानता के लिए जरूरी है.
'खत्म हो जाएगी सत्ता में बैठे लोगों की जवाबदेही'
उन्होंने न्यायिक नियुक्ति, पदोन्नति और तबादलों की संशोधित प्रक्रिया की भी आलोचना की और कहा कि इससे अदालतों की संरचनात्मक स्वतंत्रता कमजोर होती है. टर्क ने बताया कि FCC के पहले मुख्य न्यायाधीश और जजों की नियुक्ति सीधे राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री की सलाह पर की, जो न्यायपालिका की ऑटोनॉमी से समझौता है.
टर्क ने विशेष रूप से उस प्रावधान को बेहद चिंताजनक बताया, जिसमें राष्ट्रपति, फील्ड मार्शल, वायुसेना प्रमुख और नौसेना प्रमुख जैसे शीर्ष पदाधिकारियों को आजीवन आपराधिक मुकदमे और गिरफ्तारी से छूट दी गई है. उन्होंने चेतावनी दी कि इस तरह के प्रावधान सत्ता में बैठे लोगों की जवाबदेही की किसी भी संभावना को खत्म कर देते हैं.
'पाकिस्तान के लोकतांत्रिक ढांचे पर दूरगामी परिणाम होंगे'
टर्क ने कहा कि ये प्रावधान लोकतांत्रिक निगरानी और मानवाधिकारों की बुनियाद को कमजोर करते हैं और इसके पाकिस्तान के लोकतांत्रिक ढांचे पर दूरगामी परिणाम हो सकते हैं. उन्होंने पाकिस्तान सरकार से इस कानून पर पुनर्विचार करने की अपील की और जोर दिया कि सभी नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रताओं की रक्षा के लिए न्यायिक स्वतंत्रता और कानून के शासन का सम्मान जरूरी है.
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