भगत सिंह की फांसी के 92 साल बाद पाकिस्तान में क्यों हो रहा है बवाल?

भगत सिंह पर ब्रिटिश शासन के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में मुकदमा चलाया गया था. उन्हें राजगुरु और सुखदेव के साथ 19 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई थी. भगत सिंह को पहले अंग्रेजों ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी, लेकिन बाद में एक 'मनगढ़ंत मामले' में आरोपी बनाते हुए फांसी की सुना दी थी.

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भगत सिंह भगत सिंह

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 17 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 7:13 AM IST

पाकिस्तान में भगत सिंह की फांसी की सजा पर 92 साल बाद एक बार फिर से हंगामा मचा हुआ है. लाहौर हाईकोर्ट ने स्वतंत्रता संग्राम के नायक भगत सिह की 1931 में हुई फांसी की सजा के मामले को फिर से खोलने पर आपत्ति जताई है. सिंह को मरणोपरांत सम्मानित करने की मांग की गई थी. अदालत ने इस पर आपत्ति जताई है.

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भगत सिंह पर ब्रिटिश शासन के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में मुकदमा चलाया गया था. उन्हें राजगुरु और सुखदेव के साथ 19 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई थी. भगत सिंह को पहले अंग्रेजों ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी, लेकिन बाद में एक 'मनगढ़ंत मामले' में आरोपी बनाते हुए फांसी की सुना दी थी.

वकीलों के पैनल ने भगत सिंह की सजा रद्द करने की मांग को लेकर लाहौर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. पैनल से जुड़े वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने बताया कि हाईकोर्ट ने भगत सिंह के मामले को दोबारा खोलने और इसकी तुरंत सुनवाई के लिए संवैधानिक बेंच के गठन पर आपत्ति जताई है. अदालत ने कहा कि ये मामला बड़ी बेंच के पास सुनवाई के लायक नहीं है.

कुरैशी ने बताया कि हाईकोर्ट में उनकी याचिका एक दशक से लंबित है. 2013 में जस्टिस शुजात अली खान ने बड़ी बेंच के गठन के लिए मामले को चीफ जस्टिस के पास भेजा था. तभी से ये याचिका लंबित है.

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याचिका में क्या की गई है मांग?

याचिका में कहा गया है कि भगत सिंह ने आजादी के लिए जंग लड़ी. भगत सिंह का सिर्फ सिख और हिंदू ही नहीं बल्कि मुसलमान भी सम्मान करते हैं. पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने दो बार सेंट्रल असेंबली में अपने भाषण के दौरान भगत सिंह को श्रद्धांजलि दी थी. कुरैशी ने दलील दी कि ये मामला राष्ट्रीय महत्व से जुड़ा है और इसे बड़ी बेंच के पास सुना जाना चाहिए.

उन्होंने दावा किया कि ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सैंडर्स की हत्या की एफआईआर में भगत सिंह का नाम नहीं था, जिसके लिए उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी.

उन्होंने बताया कि करीब एक दशक पहले कोर्ट के आदेश पर लाहौर पुलिस ने अनारकली थाने के रिकॉर्ड खंगाले थे और सैंडर्स की हत्या की एफआईआर ढूंढ निकाली थी. उर्दू में लिखी गई ये एफआईआर 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे दो अज्ञात बंदूकधारियों के खिलाफ अनारकली थाने में दर्ज हुई थी. उस समय ये मामला आईपीसी की धारा 302, 120 और 109 के तहत दर्ज किया गया था.

कुरैशी ने दावा किया कि उस समय भगत सिंह के मामले की सुनवाई कर रहे जजों ने 450 गवाहों को सुने बिना फांसी की सजा सुनाई थी. भगत सिंह के वकीलों को जिरह करने का मौका भी नहीं दिया गया. उन्होंने कहा कि हम सैंडर्स मामले में भगत सिंह की बेगुनाही साबित करेंगे.

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