चीन ने ताइवान को चारों तरफ से घेरकर युद्धाभ्यास शुरू कर दिया है. सोमवार को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने 'जस्टिस मिशन 2025' नाम से बड़े सैन्य अभ्यास शुरू किए जिसमें थल सेना, नौसेना, वायुसेना की यूनिटस को ताइवान के चारों तरफ तैनात किया गया है. चीन के इस शक्ति प्रदर्शन के बीच अब उसके इस वॉर गेम को रूस का खुला समर्थन मिल गया है. रूस ने कहा है कि ताइवान चीन का अविभाज्य हिस्सा है और रूस किसी भी रूप में द्वीप की स्वतंत्रता का कड़ा विरोध करता है.
रविवार को रूसी न्यूज एजेंसी TASS को दिए एक इंटरव्यू में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने ये बात कही. लावरोव ने कहा कि रूस का मानना है कि ताइवान का मुद्दा चीन का घरेलू मामला है. उन्होंने कहा कि चीन को अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने का पूरा अधिकार है.
लावरोव के अनुसार, 'ताइवान को लेकर गतिरोध पर अक्सर वास्तविकता से कटकर और तथ्यों में हेरफेर करके' चर्चा की जाती है. उन्होंने कहा कि कुछ देश 'वन चाइना पॉलिसी' के प्रति प्रतिबद्धता जताने के बावजूद अपना व्यवहार नहीं बदल रहे हैं, जिसका वास्तविक अर्थ 'चीन के राष्ट्रीय पुनर्एकीकरण के सिद्धांत से उनकी असहमति' है.
उन्होंने यह भी कहा कि ताइवान का इस्तेमाल इस समय चीन के खिलाफ 'सैन्य-रणनीतिक प्रतिरोध' के एक औजार के रूप में किया जा रहा है. लावरोव के मुताबिक, कुछ पश्चिमी देश ताइवान के धन और तकनीक से लाभ कमाना चाहते हैं, जिनमें ताइवान को महंगे अमेरिकी हथियार बेचना भी शामिल है.
लावरोव ने याद दिलाया कि जुलाई 2001 में रूस और चीन के बीच 'Treaty of Good-Neighborliness and Friendly Cooperation' नामक संधि हुई थी जिसमें रूस ने ताइवान पर समर्थन का वादा किया था. उन्होंने जोर देकर कहा कि इस संधि के बुनियादी सिद्धांतों में से एक 'राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा में पारस्परिक समर्थन' है.
1949 में चीनी गृहयुद्ध के बाद ताइवान एक स्वशासित क्षेत्र बना जब राष्ट्रवादी ताकतें मेनलैंड चीन में कम्युनिस्टों से हार के बाद द्वीप पर चली गईं. औपचारिक रूप से वन चाइना पॉलिसी का पालन करने के बावजूद, अमेरिका ताइवान के साथ करीबी अनौपचारिक संबंध बनाए हुए हैं. उसके शीर्ष सांसद चीन की आपत्ति के बावजूद ताइवान जाते हैं और उसके प्रति अपना समर्थन जताते हैं.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बार-बार ताइवान के साथ शांतिपूर्ण पुनर्एकीकरण को अपनी प्राथमिकता बताया है. हालांकि, इसके लिए बल प्रयोग के विकल्प को उन्होंने कभी खारिज नहीं किया है. उसके साथ ही, उन्होंने ताइवान पर अलगाववाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है.
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