'राम जन्मभूमि मामले में मुझ पर फैसला ना सुनाने का 'दबाव' था,' बोले इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में हाई कोर्ट की बेंच का हिस्सा रहे जज (सेवानिवृत्त) सुधीर अग्रवाल ने बड़ा दावा किया है. उन्होंने शनिवार को मेरठ में एक बयान में कहा- मुझ पर फैसला नहीं देने का 'दबाव' था. उन्होंने कहा, अगर उन्होंने निर्णय नहीं दिया होता तो अगले 200 वर्षों तक इस मामले में कोई फैसला नहीं आता.

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण जोरों पर चल रहा है. (फाइल फोटो) सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण जोरों पर चल रहा है. (फाइल फोटो)

aajtak.in

  • मेरठ,
  • 03 जून 2023,
  • अपडेटेड 8:12 PM IST

अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में फैसला सुनाने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज (सेवानिवृत्त) सुधीर अग्रवाल ने चौंकाने वाला खुलासा किया है. शनिवार को अग्रवाल ने यूपी के मेरठ में कहा, रामजन्मभूमि मामले में मुझे पर फैसला नहीं सुनाने का दबाव था. हालांकि, उन्होंने निर्णय नहीं दिया होता तो अगले 200 साल तक इस मामले में कोई फैसला नहीं आता. अग्रवाल मेरठ में एक कार्यक्रम में शामिल होने आए थे.

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बता दें कि जस्टिस सुधीर अग्रवाल 2010 में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में महत्वपूर्ण निर्णय देने वाली इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ का हिस्सा थे. वे 23 अप्रैल, 2020 को हाई कोर्ट से सेवानिवृत्त हुए.

'मुझ पर फैसला टालने का दबाव था'

पत्रकारों से बातचीत में जस्टिस अग्रवाल ने कहा, फैसला सुनाने के बाद... मैं धन्य महसूस कर रहा हूं. मुझ पर मामले में फैसला टालने का दबाव था. घर के अंदर भी दबाव था और बाहर से भी. उन्होंने कहा कि परिवार के सदस्य और रिश्तेदार सलाह देते थे कि किसी तरह समय कटने का इंतजार करो और फैसला मत सुनाओ.

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'तो 200 साल तक फैसला नहीं आता'

उन्होंने कहा कि अगर राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में 30 सितंबर, 2010 को फैसला नहीं सुनाया गया होता तो अगले 200 साल तक इस मामले में कोई फैसला नहीं आता. बता दें कि 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2:1 के बहुमत के साथ अपना फैसला सुनाया था और कहा था कि अयोध्या में स्थित 2.77 एकड़ भूमि को तीन पक्षों - सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और 'राम लला' में समान रूप से विभाजित किया जाएगा.

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'SC ने वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ प्लॉट देने का आदेश दिया'

हाई कोर्ट की बेंच में जस्टिस एसयू खान, सुधीर अग्रवाल और डीवी शर्मा शामिल थे. बाद में नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा, अयोध्या में विवादित भूमि पर मंदिर बनाया जाएगा और केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि नई मस्जिद के निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ का प्लॉट मुहैया कराया जाए. 

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क्या था इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट से पहले इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 में अपना फैसला सुनाया था. हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अयोध्या के विवादित स्थल को राम जन्मभूमि करार दिया था. हाई कोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन का बंटवारा कर दिया गया था. कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्माही अखाड़ा और रामलला के बीच जमीन बराबर बांटने का आदेश दिया था. केस से जुड़ी तीनों पार्टियां निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी वक्फ बोर्ड और रामलला विराजमान ने यह फैसला मानने से इनकार कर दिया था. हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 अपील दायर की गई. यह मामला पिछले 9 वर्षों से सुप्रीम कोर्ट में लंबित था.

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